असमंजस में हैं मध्यप्रदेश के वन ग्राम

वन ग्राम

भोपाल/अपूर्व चतुर्वेदी/बिच्छू डॉट कॉम। प्रदेश में अब भी करीब छह सैकड़ा से अधिक ऐसे वन ग्राम हैं, जिनको लेकर असमंजस की स्थिति बनी हुई है। इन वन ग्रामें को लेकर बीते चार दशक में भी केन्द्र व राज्य सरकार मिलकर कोई फैसला नहीं कर सकीं हैं। दरअसल वन क्षेत्र के आसपास के वनग्राम आज भी राज्य और केंद्र सरकार के बीच कागजी प्रक्रिया से बाहर नहीं निकल पा रहे हैं। इसकी वजह से इन ग्रामों की सरकारी कागजों में दर्ज वनभूमि राजस्व विभाग की जमीन में दर्ज नहीं हो पा रही है। जिसकी वजह से ऐसे गांवों में विकास के काम भी पूरी तरह से नहीं हो पा रहे हैं। हद तो यह है कि ऐसे गांवों में रहने वाले लोगों के पट्टे भी बीते डेढ़ दशक से नवीनीकरण का इंतजार कर रहे हैं। चुनाव आते ही एक बार फिर से सरकार को इस तरह के गांवों में रहने वाले लोगों की याद आना शुरु हो गई है। यही वजह है कि एक बार फिर राज्य सरकार ने वन ग्रामों को राजस्व गांव बनाने की घोषणा की है,लेकिन इस घोषणा के अमल में पुरानी कानूनी अड़चनें हैं , जिन्हें अब तक दूर नहीं किया गया है।
गौरतलब है कि वर्ष 1980 के पहले सरकार ने 662 वनग्रामों को प्रबंधन और नियंत्रण के लिए राजस्व विभाग को सौंपे जाने के आदेश जारी किए थे। इसके बाद वन विभाग ने 536 गांव राजस्व विभाग को सौंप दिया था। शेष 126 गांव जंगलों के मध्य में होने की वजह से राजस्व विभाग को नहीं सौंपे गए थे। यह बात अलग है कि सौंपे गए वन ग्राम अब भी कागजों में ही राजस्व गांव है। इसकी वजह है उनकी हालात वन ग्रामों के जैसी ही बनी हुई है। इसकी वजह है राजस्व विभाग को सौंपे गए इन गांवों की जमीन अब भी वनभूमि के रुप में सरकारी रिकॉर्ड में दर्ज है।इसकी वजह है सुप्रीम कोर्ट द्वारा वर्ष 2000 से वनभूमियों के निवीनीकरण पर रोक लगा कर रखना। इसके वलते अब कानूनी पेंचेदगियों से बचने के लिए राज्य शासन ने वन ग्रामों में ही राजस्व सुविधा उपलब्ध कराने का फैसला लिया है। इसके तहत वन ग्रामों में सडक़, बिजली और पानी जैसी जरूरी सुविधाएं मुहैया कराई जा सकेंगी। इसके साथ ही पट्टे की वन भूमि को बैंक में गिरवी रखकर कर्जा लेने की सुविधाएं भी देने की तैयारी है। हाल में हुई  उच्च स्तरीय बैठक में जंगल महकमे के सीनियर अधिकारियों से चर्चा के बाद 827 वन ग्रामों को राजस्व गांव बदलने के लिए डिनोटिफाई करने से पहले राज्य सरकार को इतनी ही राजस्व भूमि वन विभाग को स्थानांतरित करनी होगी। यही नहीं, वन संरक्षण एक्ट के अंतर्गत वन भूमि को डिनोटिफाई करने से पहले राज्य सरकार को सुप्रीम कोर्ट से अनुमति भी लेनी होगी।
केन्द्र की शर्तें भी बनी मुश्किल
राज्य सरकार के वन महकमे ने साल 2002 से 2004 के बीच 827 वनग्रामों को राजस्व ग्राम बनाए जाने का प्रस्ताव केन्द्र सरकार को भेजा था। इसके बाद केन्द्र सरकार ने महज 310 गांवों को राजस्व ग्राम बनाए जाने की मंजूरी दी थी, लेकिन स्वीकृति की शर्तें बेहद कठिन होने की वजह से ये गांव राजस्व गांव नहीं बन पाए।
केंन्द्र में अटका प्रस्ताव
अब वनग्रामों में रहने वालों के पट्टों का नवीनीकरण नहीं हो पा रहा है। मप्र सरकार ने 1976 तक के पात्रों को 15 साल के पट्टे दिए थे। इनकी अवधि 1992 में समाप्त होने पर 1996 में इन पट्टों का नवीनीकरण किया गया। इनकी अवधि 2007 में समाप्त होने पर पट्टी के नवीनीकरण के लिए भारत सरकार पर्यावरण वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय को कई बार भेजा जा चुका है, लेकिन नवीनीकरण की स्वीकृति ही नहीं दी जा रही है। जिसकी वजह से बीते 16 सालों से इन गांव के लोग बगैर पट्टा नवीनीकरण के ही रहने को मजबूर बने हुए हैं।

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