अपनों को आर्थिक मदद देगा वन अमला

वन अमला
  • बंद पड़ी परोपकार निधि को फिर से सक्रिय करने पर जोर

भोपाल/विनोद उपाध्याय/बिच्छू डॉट कॉम। विपरीत परिस्थियों में जंगल महकमे के छोटे कर्मचारियों को न्याय पाने के लिए अपनी जेब से पैसा खर्च करना पड़ता है,  जिसकी वजह से उनके साथ ही उनका परिवार भी आर्थिक संकट का सामना करने पर मजबूर हो जाता है।  इस स्थिति को देखते हुए अब विभाग के मुखिया ने इसका तोड़ तलाशते हुए परोपकार निधि को एक बार फिर से सक्रिय करने का फैसला किया है। अहम बात यह है कि इस निधि में आने वाली राशि विभाग के ही कर्मचारियों के अंशदान से आएगी। यह निधि पूर्णतया गैर सरकारी होगी। इस निधि में छोटे कर्मचारियों से लेकर विभाग के बड़े अफसर तक अपना अंशदान देंगे। यह अंशदान किसे और कितना देना है, यह कर्मचारियों के विवेक पर निर्भर रहेगा। इस निधि को आर्थिक रूप से सशक्त बनाने के लिए विभाग के मुखिया आर के गुप्ता ने स्वयं पहल करते हुए विभाग के तहत आने वाली संस्थाओं से लेकर विभाग के सभी अफसरों को पत्र भी लिखा है। जिन संस्था प्रमुखों को पत्र लिखा गया है, उनमें प्रबंध संचालक, वन विकास निगम, एमडी राज्य लघु वनोपज संघ, पीसीसीएफ वन्य प्राणी, पीसीसीएफ, एपीपीसीएफ, सीसीएफ और सभी डीएफओ शामिल हैं। इस पत्र में सभी से अनिवार्य रूप से वार्षिक अंशदान, आजीवन अशदान बैंक खाते में जमा करने के लिए व्यक्तिगत प्रयास कर कर्मचारियों की मदद करने को कहा गया है। इसके लिए दो समितियों को का गठन किया गया है। मुख्यालय स्तर पर वन परोपकार निधि के लिए एक केंद्रीय समिति और दूसरी सर्किल स्तरीय समिति का गठन किया है।  यह दोनों समितियां मदद के लिए आए आवेदन पर विचार और संपूर्ण जमा राशि का 40 प्रतिशत तक की सहायता राशि मंजूर कर सकेंगी। इसके अलावा अति विशिष्ट परिस्थिति में अधिकतम 60 प्रतिशत तक की राशि मंजूर करने का अधिकार भी इसके पास होगा। अधिकतम निधि जमा करने के लिए प्रोत्साहित करने के लिए इसमें कुछ प्रावधान भी किए गए हैं, जैसे जो कर्मचारी या फिर अफसर एक लाख रुपए जमा करता है तो उसे समिति में बतौर संरक्षक का पद दिया जाएगा , इसी तरह से जो कर्मचारी लगातार दस सालों तक निधि जमा कराते हैं, तो उन्हें समिति का आजीवन सदस्य बना दिया जाएगा।
पैरवी के लिए भी दी जाएगी मदद
कई बार विभाग के निचले मैदानी अमले को ड्यूटी के दौरान बने हालातों की वजह से आपराधिक मुकदमों तक का सामना करना पड़ता है। ऐसे मामलों में कर्मचारियों को खुद की जेब से राशि खर्च कर पैरवी करनी पड़ती है। इसका बड़ा उदाहरण विदिशा जिले की लटेरी की घटना है। उस घटना के मामले में वन कर्मचारियों को आपराधिक मामले का सामना करना पड़ रहा है। जिसका खर्च स्वयं कर्मचारियों को उठाना पड़ रहा है। यही वजह है कि वनपाल प्रमुख  ने मप्र वन परोपकार निधि में संशोधन कर इस तरह के मामलों में भी आर्थिक मदद का प्रावधान शामिल करवाया है। इसके तहत अब यदि किसी कर्मचारी की ड्यूटी के दौरान मुकदमा दर्ज होता है तो उसकी पैरवी के लिए निधि से भी मदद दी जा सकेगी।
एक दशक से थी निष्क्रीय
वैसे तो इस निधि का गठन चार दशक पहले 1981 में किया गया था। करीब तीन दशक तक सक्रिय रही इस निधि में रुचि नहीं लेने से यह एक दशक से यानी कि 2012 से निष्क्रिय हो गई थी। इसकी वजह रही इस निधि के उपयोग को लेकर कुछ अफसरों पर लगने वाले आरोप। इसकी वजह रही है,अयोग्य अफसरों को उनके रसूख के आधार पर अंश राशि को दिया जाना और योग्य कर्मचारियों को सहायता नहीं मिल पाना। इसकी वजह से ही परोपकार निधि की सक्रियता समाप्त हो गई थी। कोरोना काल के समय अपने अधिकारियों एवं कर्मचारियों की आर्थिक सहायता नहीं कर पाने से वन बल प्रमुख आरके गुप्ता को मायूसी का सामना करना पड़ा, जिसके बाद उनके द्वारा अधिकारियों के साथ मिलकर इस  वन परोपकार निधि का पुन: सक्रिय करने का निर्णय लिया गया है। 

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