कागजी बनकर रह गई विदेश अध्ययन की योजना

विदेश अध्ययन
  • 6 साल में एक भी श्रमिक के बेटा-बेटी को नहीं मिला  विदेश अध्ययन का लाभ

गौरव चौहान/बिच्छू डॉट कॉम।   मप्र में श्रमिकों के बच्चे अध्ययन के लिए विदेश जा सकें, इसके लिए कर्मकार कल्याण मंडल ने योजना बनाई है। इस योजना के माध्यम से श्रमिकों के बच्चों का भी विदेश में पढ़ाई करने का सपना पूरा हो सकेगा। लेकिन विडंबना यह है कि योजना का प्रचार-प्रसार नहीं होने के कारण पिछले 6 साल में एक भी श्रमिक का बेटा-बेटी विदेश अध्ययन का लाभ अर्जित नहीं कर सके हैं। यानी योजना पूरी तरह कागजी बन कर रह गई है। गौरतलब है कि मप्र संनिर्माण कर्मकार मंडल पंजीकृत श्रमिकों के बच्चों को विदेश में पढ़ाई के लिए वित्तीय सहायता प्रदान करता है। यह विदेश अध्ययन हेतु नि:शुल्क शिक्षा योजना के अंतर्गत आता है, जो 2019 से लागू है। योजना के तहत, पंजीकृत निर्माण श्रमिकों के बच्चों को विदेश में उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए वित्तीय सहायता दी जाती है।
जानकारी के अनुसार इस योजना के तहत हर साल अधिकतम 50 छात्रों को स्नातकोत्तर और शोध उपाधि (पीएचडी) पाठ्यक्रमों के लिए विदेश में दो वर्ष तक छात्रवृत्ति और अन्य लाभ देने का प्रावधान है। योजना का लाभ लेने के लिए, श्रमिक का पंजीकृत होना आवश्यक है और उसका बच्चा विदेश में मान्यता प्राप्त संस्थान में उच्च शिक्षा के लिए आवेदन करना चाहिए। गौरतलब है कि मप्र सन्निर्माण कर्मकार मंडल के श्रमिकों के बच्चों के विदेश पढ़ाई पर मप्र सरकार के पास 44 लाख रुपए प्रति छात्र प्रति वर्ष खर्च करने की योजना है, पर विडंबना है कि पिछले छह वर्ष में एक भी परिवार इस नि:शुल्क सहायता लेने के लिए आगे नहीं आया। विदेश अध्ययन कोर्स में एमबीए के लिए यूएस, कनाडा के यनिवर्सिटिज, यूके में अध्ययन के लिए आईईएलटीएस या पीटीई, सीईएलपीआईपी में प्रवेश एवं यूके में अध्ययन के लिए अनिवार्य है। एमएस के लिए स्टैण्डराइज्ड टेस्ट जीआरई एवं देश विशेष में भाषा संबंधित परीक्षा उत्तीर्ण होने पर ही सहायता का लाभ मिल सकेगा। लेकिन एक भी छात्र नहीं मिला, क्योंकि एमबीए, पीएचडी करने में बच्चों की रुचि नहीं है।
एक भी आवेदन नहीं
प्रदेश में कुल 63 लाख से अधिक श्रमिक परिवार रजिस्टर्ड हैं।  लेकिन विडंबना यह है कि योजना की जानकारी नहीं होने के कारण छह साल में एक भी आवेदन नहीं हुए हैं। जबकि योजना के तहत राज्य सरकार ऐसे परिवारों के होनहार बच्चों को एमबीए आदि कोर्स के लिए यूएस, कनाडा के विश्वविद्यालयों में पढ़ाई का पूरा खर्च उठाती है। पर एक भी परिवार आज तक श्रम विभाग के पास नहीं आया। यह जानकारी सरकार के अफसरों ने ही दी। मप्र सरकार श्रमिकों के बेटा-बेटियों के लिए कितनी भी योजनाएं शुरू कर लें, लेकिन जानकारी की अभाव में योजनाओं का लाभ गरीब तबके के लोगों को नहीं मिल पाता। ऐसी ही एक योजना विदेश अध्ययन की है, जिसके लिए मप्र सरकार 44 लाख रुपए प्रत्येक छात्र पर खर्च करने को तैयार है। पिछले छह साल में एक भी छात्र विदेश में पढ़ाई करने नहीं गया। मप्र भवन एवं अन्य संनिर्माण कर्मकार कल्याण योजना के तहत मप्र सरकार नै विदेश अध्ययन के लिए नि: शुल्क शिक्षा योजना 2019 में शुरू की थी। इस योजना में औद्योगिक इकाईयों, स्थापना में कार्यरत ऐसे वर्षों से लगातार श्रमिक परिचय पत्र धारी हैं। ऐसे ऐसे श्रमिकों पर लागू की गई है, जो अधिनियम के तहत श्रमिक की परिभाषा में आते हैं। इसमें ऐसे अभिभावकों के बच्चों का चयन किया जाना है, जो 5 वर्षों से। परिवारों की संख्या मप्र में 63 लाख 12 हजार 210 है। इनमें पंजीकृत निर्माण श्रमिकों की संख्या 17 लाख 62 हजार 872 है, जबकि श्रमिक परिवारों की संख्या 17 लाख 40 हजार 555 है। वर्ष 2019 में शुरु की गई इस योजना के बाद मजदूरों का एक भी छात्र ऐसा नहीं निकला, जो विदेश में पढ़ाई कर सके। वैसे एमपीपीएससी और यूपीएससी की परीक्षा में सफलता पाने वाले अभ्यर्थियों की संख्या भी सिर्फ 21 है, जिन्हें सरकार ने स्कॉलरशिप के रूप में 4 लाख 95 हजार रुपए की राशि बांटी है।
44 लाख रुपए सालाना खर्च करती है सरकार
मप्र सरकार विदेश में एमबीए, पीएचडी आदि की पढ़ाई करने वाले प्रत्येक छात्र को सरकार सालाना 40 हजार यूएस डॉलर यानि 34 लाख 14 हजार रुपए की स्कॉलरशिप देती है। साथ ही रहने, खाने आदि की व्यवस्था पर 10 हजार यूएस डॉलर यानि 8 लाख 53 हजार रुपए है। इस तरह सरकार कुल 50 हजार डॉलर खर्च करने को तैयार है, जो आज की स्थिति में 44 लाख 67 हजार रुपए बनता है, इसके बावजूद मजदूरों के बच्चे विदेश में पढ़ाई के लिए सरकार भेजने में असमर्थ है। पीएचडी उपाधि के लिए स्रातकोत्तर डिग्री में 60 प्रतिशत अंकों सहित प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण छात्रों को दो साल के लिए अध्यापन, शोध, एमफिल उपाधि होना आवश्यक है। यदि पूर्व में समतुल्य समकक्ष किसी भी संकाय में अध्ययन कर लिया है, तो पुन: समकक्ष उपाधि के लिए योजना का लाभदेय नहीं होगा। आवेदक विदेश स्थित मान्यता प्राप्त संस्थानों में गुणवत्तापूर्ण उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए सरकार प्रतिवर्ष अधिकतम 50 छात्र-छात्राओं को विदेश अध्ययन के लिए सहायता राशि प्रदान करती है। इसके लिए चयनित विद्यार्थियों को विदेशों में 2 साल तक स्रातकोत्तर के पाठ्यक्रमों, शोध उपाधि, पीएचडी के लिए छात्रवृत्ति का नाभ मिलेगा। इस योजना का लाभकेवल निर्माण श्रमिकों की संतानों को ही देने का प्रावधान किया गया है।

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