बूथ मैनेजमेंट और… शक्ति केंद्रों पर फोकस

  • मप्र की तर्ज पर भाजपा लड़ रही बिहार चुनाव
  • कमजोर बूथों पर भाजपा ने झोंकी पूरी ताकत
  • गौरव चौहान
बूथ मैनेजमेंट

मप्र में भाजपा ने जिस रणनीति से विधानसभा और लोकसभा चुनाव में जीत दर्ज की थी, अब उसी रणनीति  से बिहार विधानसभा चुनाव भी लड़ रही है। यानी बूथ जीतों चुनाव जीतों की रणनीति के तहत भाजपा ने बिहार में कमजोर बूथों पर पूरी ताकत झोंक दी है। पिछले चुनाव में भाजपा जिन बूथों पर कमजोर रही थी, उन पर अधिक जोर दिया जा रहा है।
गौरतलब है कि बिहार में विधानसभा चुनाव को लेकर भाजपा ने कमर कस ली है। मप्र भाजपा के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा को बिहार चुनाव में बड़ी जिम्मेदारी मिली है। वीडी शर्मा पटना जोन की 8 लोकसभा और 42 विधानसभा सीट का कमान संभाल रहे हैं। दरअसल, भाजपा ने मप्र की तर्ज पर बिहार में बूथ मैनेजमेंट का प्लान बनाया है। जिसमें वीडी शर्मा की भूमिका अहम है। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के निर्देश के बाद वीडी शर्मा ने पटना में मोर्चा संभाल लिया है। उनका बूथ मैनेजमेंट और शक्ति केंद्रों पर फोकस रहेगा। मप्र में पिछले विधानसभा चुनाव में भाजपा ने बूथस्तर तक प्रबंधन कर कांग्रेस को एकतरफा पटकनी दी थी। बिहार में भी लगभग इसी मॉडल पर चुनाव लडऩे की रणनीति तय कर इस पर काम किया जा रहा है। इसमें मध्यप्रदेश के सौ से अधिक नेता और कई कार्यकर्ता भी लगाए गए हैं।
मप्र के अधिकांश नेताओं की बिहार में ड्यूटी
प्रत्येक विधानसभा क्षेत्र में अलग-अलग प्रभारी बनाकर स्थानीय कार्यकर्ताओं के साथ मिलकर माइक्रो लेवल मैनेजमेंट किया जा रहा है। पार्टी का मानना है कि मध्य प्रदेश के नेताओं ने बीते चुनावों में बूथ सशक्तिकरण, लाभार्थी संपर्क और मतदाता संवाद जैसे अभियानों में शानदार परिणाम दिए हैं और यही अनुभव अब बिहार में काम आएगा। गौरतलब है कि मध्यप्रदेश को भाजपा की नर्सरी माना जाता है। प्रदेश भाजपा का संगठन भी पूरे देश में उत्कृष्ट माना जाता है। यही वजह है कि प्रदेश के अधिकांश नेताओं की ड्यूटी बिहार चुनाव में लगाई लगाई है। इससे पहले दौ सौ से अधिक विस्तारक बिहार भेजे जा चुके हैं। क्षेत्रीय संगठन महामंत्री अजय जामवाल तो पिछले छह महीने से बिहार में ही डेरा डाले हुए हैं। प्रदेश के पूर्व संगठन महामंत्री और अब राष्ट्रीय मंत्री अरविंद मेनन और हितानंद भी ज्यादातर समय बिहार में ही बिता रहे हैं। इसके अलावा प्रदेश के कई मंत्रियों सांसदों और विधायकों को भी बिहार में सक्रिय किया गया है और इन्हें विधानसभा वार जिम्मेवारी दी गई है। ये वे नेता है जो प्रदेश की चुनाव टीम का हिस्सा तो रह ही चुके हैं। किसी भी प्रदेश में होने वाले विधानसभा चुनाव में इन्हें भेजा जाता है। इन नेताओं को बूथ प्रबंधन में भी माहिर माना जाता है।
बूथ से लेकर मंडल तक मजबूती
मध्य प्रदेश से भेजे गए नेताओं को बिहार के विभिन्न जिलों में कार्यकर्ताओं के साथ समन्वय और प्रचार रणनीति तय करने की जिम्मेदारी दी गई है। वे स्थानीय भाषा और जनभावनाओं को ध्यान में रखते हुए संगठन को दिशा देंगे। इन नेताओं को यह भी जिम्मा सौंपा गया है कि वे क्षेत्रवार रिपोर्ट तैयार करें और मतदाताओं के मुद्दों को केंद्र में लाकर प्रचार सामग्री को उसी अनुरूप ढालें। भाजपा नेतृत्व का मानना है कि बिहार में एनडीए की सफलता के लिए संगठनात्मक समन्वय और ग्राउंड मैनेजमेंट बेहद जरूरी है। इसीलिए मध्य प्रदेश के नेताओं को उन क्षेत्रों में भेजा गया है, जहां पार्टी का पिछला प्रदर्शन अपेक्षाकृत कमजोर था। भाजपा का लक्ष्य है कि बूथ से लेकर मंडल तक संगठन को एकजुट किया जाए और विकासए राष्ट्रवाद व सुशासन के मुद्दों को केंद्र में रखकर मतदाताओं से जुड़ा जाए।
मप्र कार्यकारिणी में 60 फीसदी तक बदलाव
प्रदेश भाजपा में संगठन विस्तार की प्रक्रिया चल रही है। इसमें इस बार कुछ अहम बदलाव भी हो सकती है। संगठन को मजबूत करने के लिए संघ की पृष्ठभूमि वाले नेताओं को संभाग स्तर पर एक बार फिर कमान सौंपे जाने की तैयारी शुरू हो गई है। इसको लेकर दिल्ली तक बैठकों का दौर भाजपा में शुरू हो गया है। गौरतलब है कि प्रदेश अध्यक्ष हेमंत खंडेलवाल अगले विधानसभा और लोकसभा चुनाव को देखते हुए पार्टी में बदलाव और जमावट करने में जुटे हैं। प्रदेश अध्यक्ष इसको लेकर भाजपा के वरिष्ठ नेताओं से वन-टू-वन मुलाकात भी कर चुके हैं। पार्टी के उपेक्षित वरिष्ठ नेताओं को भी इस बार अहम जिम्मेदारी सौंपी जा सकती है। इस वजह से जिला कार्यकारिणी से लेकर प्रदेश कार्यकारिणी के गठन में भी देरी हो रही है। प्रदेश के सभी जिलों की जिला कार्यकारिणी तक अब तक घोषित नहीं हो पाई है। प्रदेश कार्यकारिणी के गठन की प्रक्रिया भी अभी अटकी हुई है। इससे पहले संगठन में पुरानी व्यवस्था को बहाल करने की तैयारी पार्टी में शुरू हो गई है। माना जा रहा है कि पार्टी को जमीनी स्तर पर और अधिक मजबूत करने के लिए यह बदलाव किया जा रहा है। इस बार भाजपा की प्रदेश कार्यकारिणी में भी बड़े बदलाव हो सकते हैं। प्रदेश कार्यकारिणी में 60 फीसदी तक बदलाव हो सकते हैं। पांच साल पहले तक भाजपा में संभागीय संगठन महामंत्री और जिला संगठन महामंत्री तक का प्रावधान था। प्रभात झा जब भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष थे, तब 30 संगठन महामंत्री थी। इनमें संभागीय और जिला स्तर पर संगठन महामंत्री के पद थे। धीरे-धीरे इस व्यवस्था को समाप्त कर दिया था। पहले दो जिलों में एक संगठन महामंत्री का पद किया। बाद में सिर्फ 6 संगठन महामंत्री के पद पार्टी में बचे थे। इन पदों को फिर एक साथ समाप्त कर दिया था। अब इस व्यवस्था को दोबारा बहाल करने की तैयारी भाजपा में शुरू हो गई है। वर्तमान व्यवस्था के तहत भाजपा में प्रदेश संगठन महामंत्री का पद है।

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