सिर्फ तीसरी आंख के भरोसे है प्रदेश में वाहनों की फिटनेस

वाहनों की फिटनेस
  • परिवहन विभाग  में मोटर व्हीकल इंस्पेक्टर के रिक्त पड़े हैं पद

भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम। प्रदेश की सडक़ों पर अनफिट वाहन धड़ल्ले से दौड़ रहे हैं। इसकी वजह से आए दिन सडक़ दुर्घटनांए होती रहती हैं। बावजूद इसके परिवहन विभाग से लेकर प्रशासन  तक गंभीर नजर नहीं आती है। हालत यह है कि प्रदेश में मोटर व्हीकल इंस्पेक्टर के 45 पद रिक्त पड़े हुए हैं। इसकी वजह से वाहनों के फिटनेस का काम तीसरी आंख के भरोसे छोड़ दिया गया है। इसकी वजह से ही प्रदेश में इंजीनियर का काम कैमरा अब पूरी तरह से कर रहा है। जिसकी वजह से वाहनों की जांच कैसी हो रही होगी समझा जा सकता है। कैमरा सिर्फ फोटो खींच सकता है न की वाहन के अंदर की स्थिति पता कर सकता है। ऐसे में यह पता ही नहीं चल पाता है कि वाहन सडक़ पर चलने लायक है या नहीं। वाहन के टायर किस स्थिति में हैं । यही नहीं ब्रेक, स्टेयरिंग, बॉडी, हेडलाइट, गियर सही से काम कर रहे हैं या नहीं यह भी पता नहीं चल पाता है। इसके बाद भी कैमरे से फोटो खींचकर फिटनेस सर्टिफिकेट बांटे जा रहे हैं। परिवहन विभाग का मौजूदा अमला भी यह देखने की हिम्मत नहीं जुटा पाता है कि वाहन कितना पुराना है, उसके कागजात भी हैं या नहीं। यही वाहन  प्रदेश में हादसे की वजह बन रहे हैं। गुना का हादसा प्रदेश में चौथा दिल दहलाने वाली घटना है। इससे पहले सेंधवा, पन्ना व सीधी में बड़े बस हादसे हो चुके हैं। इसके बाद भी जिम्मेदारों ने कोई सबक नहीं सीखा है। यही वजह है कि प्रदेश में बदहाल वाहनों से इस तरह के हादसे होते आ रहे हैं।  गुना हादसे की बस भी अनफिट निकली। हद तो यह है कि उसका बीमा तक नहीं था। इस मामले में अब तक बस संचालक पर कोई कार्रवाई तक नहीं की गई है। दिखाने के लिए अफसरों के तबादले कर दिए गए। जबकि उन पर प्रभावी कार्रवाई की जानी चाहिए थी। दरअसल प्रदेश के आरटीओ में मोटर व्हीकल इंस्पेक्टर के पद तो हैं, लेकिन वे रिक्त पड़े हुए हैं, जिसकी वजह से कैमरे से फोटो खींचने के बाद एक फार्म पर टिक लगाया जाता है और उसके बाद फिटनेस सर्टिफिकेट थमा दिया जाता है।
यह है बसों के फिटनेस सर्टिफिकेट की प्रक्रिया
परिवहन विभाग में फिटनेस का ऑनलाइन टैक्स जमा होने के बाद फिटनेस की तारीख मिलती है। परिवहन कार्यालय पर वाहन को ले जाना होता है। इसके बाद वाहन को कैमरे के सामने खड़ा कर उसके आगे-पीछे से  फोटो खींच लिए जाते हैं। फोटो खिंचने के बाद उसे सर्टिफिकेट दे दिया जाता है। वाहन को फिटनेस देते वक्त उसके कलपुर्जों की जांच तक नहीं की जाती है। नियमानुसार फिटनेस के लिए आने वाले वाहनों को सबसे पहले मोटर व्हीकल सब इंस्पेक्टर गाड़ी चलाकर देखना होता है। इस दौरान वाहन के ब्रेक, इंजन, टायर, इंडिकेटर, लाइट जैसी अन्य जरूरी जांच होती है। इसके बाद अगर वाहन से कोई दुर्घटना होती है तो मोटर व्हीकल इंस्पेक्टर व फिटनेस सर्टिफिकेट जारी करने वाला जिम्मेदार माना जाता है।
वाहनों की यह उम्र है तय
सडक़ों पर चलने वाले वाहनों की उम्र प्रदेश में तय है, जिसके तहत दूसरे राज्यों में जाने वाली बस की उम्र 10 वर्ष तय ह,ै तो वहीं प्रदेश के अंदर चलने वाली बसों की उम्र 15 साल निर्धारित है। इसके बाद इन बसों का संचालन नहीं किया जा सकता है। नियमानुसार समय पर इनके फिटनेस टेस्ट भी कराने होते हैं।
खुलेआम दौड़ रही हैं कंडम बसें
गुना बस हादसे के बाद भी शहरी और ग्रामीण इलाकों से दौड़ने वाली खटारा बसों पर किसी तरह की कार्रवाई नजर नहीं आ रही है। दिखाने के लिए जरूर एक दो जगहों पर चेकिंग कर इतिश्री कर ली गई है। शहर से चलने वाली तमाम बसें खटारा नजर आती हैं। अधिकतर बसें 50 किमी के दायरे वाले रूट पर फर्राटा भरती रहती हैं। आइएसबीटी में प्रतिदिन 600 यात्री बसें आती जाती हैं। इनमें रोजाना करीब 25 हजार से अधिक लोग यात्रा करते है। जिनमें से करीब 15 फीसदी बसें तो तय उम्र को पूरा कर चुकी हैं। इसके बाद भी ऐसी बसों को सडक़ों पर से नहीं हटाया जा रहा है। अहम बात यह है कि  ग्रामीण अंचल की ओर जाने वाली बसों के तो फिटनेस टेस्ट तक नहीं कराया जाता है।

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