वित्तीय संकट ने बढ़ाई नई सरकार की परेशानी

वित्तीय संकट
  • तीन दर्जन विभाग जूझ रहे गंभीर आर्थिक संकट से

गौरव चौहान/बिच्छू डॉट कॉम। मप्र में नई सरकार के सामने सबसे बड़ी चुनौती वित्तीय संकट के बीच काम करने की है। खाली होते खजाने व योजनाओं के बढ़ते बोझ को देखते हुए सरकार ने कई विभागों के व्यय पर रोक लगा दी है। सरकार ने इसके आदेश भी विभागों को भेज दिए हैं। साथ ही सरकार प्रदेश की योजनाओं के संचालन के लिए कर्ज लेगी। बता दें, वर्तमान स्थिति में मध्यप्रदेश सरकार पर 331000 करोड़ रुपये से अधिक का कर्ज है। हालांकि राज्य सरकार की वित्तीय स्थिति के अनुसार अभी भी सरकार 15,000 करोड़ रुपये का कर्ज ले सकती है। इधर, बताया जा रहा है कि जरूरी योजनाओं को पूरा करने के लिए सरकार जल्द ही अनुपूरक बजट भी ला सकती है।
वित्तीय संकट से उबरने के लिए मध्य प्रदेश सरकार ने सभी विभागों को खर्च पर कटौती करने के निर्देश दिए हैं। इसके साथ ही विभागों राजस्व संग्रहण बढ़ाने के लिए भी कहा गया है। सरकार के निर्देश के अनुसार विभागों को हर हाल में राजस्व संग्रहण का निर्धारित लक्ष्य समय से पूरा करना है। इसके साथ ही विभागों को राजस्व एकत्रित करने के लिए अन्य नए सोर्स भी विकसित करने के लिए कहा गया है। सरकार ने जिन कामों पर बिना अनुमति खर्च किए जाने पर रोक लगाई है। इनमें गृह विभाग के अंतर्गत थानों के डेवलपमेंट, परिवहन विभाग की ग्रामीण परिवहन नीति के क्रियान्वयन, खेल विभाग के खेलो इंडिया एमपी, सहकारिता विभाग की मुख्यमंत्री ऋण समाधान योजना, लोक निर्माण विभाग की विभाग विभागीय संपत्तियों के संधारण, स्कूल शिक्षा विभाग की निशुल्क पाठ्य सामग्री के प्रदाय, प्रतिभाशाली विद्यार्थियों को लैपटॉप प्रदाय, एनसीसी के विकास एवं डेवलपमेंट, जनजातीय कार्य विभाग टंट्या भील मंदिर के रिनोवेशन, उच्च शिक्षा विभाग की योजना विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग के नए आईटी पार्क की स्थापना, विमानन विभाग की भू अर्जन के लिए मुआवजा, ग्रामीण विकास विभाग की पीएम सडक़ योजना में निर्मित सडक़ों का नवीनीकरण और महिला एवं बाल विकास विभाग की आंगनवाड़ी केंद्रों के लिए भवन निर्माण सहित अन्य योजनाओं में बिना वित्त विभाग की अनुमति के खर्च नहीं किया जा सकेगा। इसके अलावा अपंजीकृत निर्माण मजदूरों को अंत्येष्टि एवं अनुग्रह राशि देने की योजना भी समाप्त कर दी गई है।
योजनाओं पर कटौती की तलवार
सरकार ने वित्तीय स्थिति को देखते हुए कई योजनाओं में कटौती की तैयारी कर रही है। इस कारण महाकाल परिसर, मेट्रो ट्रेन जैसी कई योजनाओं का काम प्रभावित हो सकता है। वित्त विभाग की मंजूरी बिना खजाने से कोई भी राशि जारी करने पर रोक लगा दी गई है। वित्तीय संकट के कारण कई योजनाओं का भार बढ़ गया है। स्कूटी वितरण योजना ने सरकार की परेशान बढ़ा दी है। पहले सिर्फ लड़कियों को ही देनी थी,  तब 75 करोड़ लगत थे, लेकिन चुनाव में लडक़ों को भी देने की घोषणा कर दी गई, लिहाजा अब 200 करोड़ रुपए खर्च आएगा। संविदा कर्मियों का वेतनमान बढ़ा दिया गया है। जिससे 2000 करोड़ रुपए का भार आ रहा है। उन्हें लैपटॉप देने की भी घोषणा की गई। पुलिस कर्मियों के वर्दी, भोजन और पेट्रोल समेत कई भत्ते बढ़ा दिए गए हैं। पेट्रोल पर ही हर माह एक पुलिसकर्मी पर 1500-2000 रुपए खर्च हो रहा है। वहीं लाड़ली बहना को 450 रुपए में सिलेंडर देने पर हर माह 80-90 करोड़ चाहिए। बचे 3 माह के लिए 300 करोड़ की जरूरत है। पहले इसे एक सावन मास के लिए रखा गया था, अब ऐसा नहीं है। पंचायत में सभी श्रेणियों में वेतन बढ़ा दिया गया। ग्रांट में जो राशि जारी होती थी, उसे वेतन मद में डाल दिया गया है। दरअसल, मप्र में 23 हजार रोजगार सहायकों का वेतन दोगुना हो गया है। वहीं कॉलेज के अतिथि विद्वानों का मानदेय 20 हजार रुपए बढ़ाया है। आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं का मानदेय भी बढ़ाया गया।
अब तक 40 हजार करोड़ कर्ज ले चुकी है सरकार
जनवरी 2023 से अभी तक राज्य सरकार करीब 40 हजार करोड़ कर्ज ले चुकी है। एक बार में सर्वाधिक कर्ज 4000 करोड़ लिया गया है। आरबीआई के ऑक्शन के जरिए यह कर्ज उठाया गया है। जानकारों का कहना है प्रदेश सरकार को इंफ्रा और वेलफेयर एक्टिविटी जरूरी है लेकिन इसमें फ्रीबीज को शामिल नहीं किया जाना चाहिए। वित्तीय संतुलन बनाए रखने के लिए अनप्रोडक्टिव खर्च खत्म किया जाना चाहिए। इवेंट मैनेजमेंट और उत्सव मनाने पर ज्यादा खर्च किया जाता है। इसी तरह अन्य ऐसे कार्य, जिससे सरकार को कोई फायदा नहीं हो रहा उससे बचना चाहिए। बैंक में भी कोई कर्ज लेते हैं तो एसेसमेंट होता है कि इसे वापस करने की कैपेसिटी है या नहीं। इसी तरह सरकार को भी ऑडिट करना चाहिए। फिस्कल रिस्पांसिबिलिटी एक्ट का पालन मप्र में नहीं किया जा रहा है। इससे साबित हो रहा है कि सरकार वित्तीय प्रबंधन में लापरवाही कर रही है। इस परिस्थिति में नागरिकों को इसे स्थानीय निर्वाचनों में एक मुद्दा बनाने का प्रयास करना चाहिए। आईआईएम इंदौर के  स्ट्रेटेजी एंड इंटरनेशनल बिजनेस प्रो. प्रशांत सल्वान का कहना है कि स्थापना व्यय तो कम हो नहीं सकता है, ऐसे में सरकार के पास विकास कार्यों के लिए अधिक राशि की व्यवस्था करने का एक ही रास्ता है कि स्वयं की आय बढ़ाई जाए। सरकार को इंटरनल और एक्टर्नल एजेंसियों से प्लानिंग और रिसर्च कराना चाहिए। इससे कस्टमर बिहेवियर का पता चल सकेगा। वहीं ग्राउंड रियालिटी के आधार पर नई प्लानिंग करना चाहिए। बिजली कंपनियों का भुगतान भी इस कर्ज का एक बड़ा कारण है। बिजली कंपनियों को आय के स्रोत और क्लाइंट बेस बढ़ाने की जरूरत है।
3 माह में 25 हजार करोड़ का कर्ज
जानकारी के अनुसार चुनावी साल में हुई घोषणाओं को पूरा करने के लिए मप्र सरकार को अगले तीन महीने में 25 हजार करोड़ रुपए कर्ज लेना पड़ेगा। इससे लाड़ली बहना के 4200 करोड़ और संविदा कर्मियों के बढ़ाए गए मानदेय को देने के लिए 1500 से 2000 करोड़ रुपए के साथ अन्य स्कीमों को पूरा करने पर लगने वाली राशि की भरपाई होगी। राज्य सरकार के पर जो पुराने लोन चल रहे हैं, उसका मूलधन भी नए कर्ज से लौटना है। साफ है कि नया कर्ज लेने के बाद वित्तीय वर्ष 2023-24 के खत्म होते-होते तक मप्र पर लगभग 4.30 लाख करोड़ रुपए तक का कर्ज होगा। खजाने की स्थिति को देखते हुए नई सरकार के गठन से लेकर हर दूसरे दिन वित्त विभाग को रिव्यू करना पड़ रहा है। हाल ही में विभाग ने एक सर्कुलर भी जारी कर दिया, जिसमें प्रमुख योजनाओं पर कटौती की तलवार लटका दी है। साथ ही कह दिया है कि बिना उनकी मंजूरी के खजाने से पैसा जारी न किया जाए। इन स्कीमों में महाकाल परिसर का विकास और मेट्रो ट्रेन जैसी स्कीमें भी शामिल हैं। सहकारी बैंकों को अंश पूंजी, तीर्थ यात्रा योजना, खेलो इंडिया मप्र, एफ टाइप और उससे नीचे के सरकारी मकानों की रखरखाव, आरटीई के तहत निजी स्कूलों में पढ़ रहे बच्चों की फीस, डॉ. टंट्या भील मंदिर जीर्णोद्धार जैसे काम भी शामिल हैं। मंत्रालय सूत्रों का कहना है कि 2024- 25 के लेखानुदान से पहले एक अनुपूरक लाने पर कवायद चल रही है, लेकिन अब तक सहमति नहीं बनी है।
38 विभागों की योजनओं पर लगी वित्तीय रोक
वित्त विभाग ने सभी विभागों को निर्देश दिए हैं कि राजस्व संग्रहण का निर्धारित लक्ष्य हर हाल में पूरा किया जाए। नई सरकार ने फिलहाल 38 विभागों की योजनाओं पर वित्तीय रोक लगा दी है। वित्त विभाग ने इसका आदेश भी जारी कर दिया है। उधर, प्रदेश के अपंजीकृत निर्माण मजदूरों को अंत्येष्टि एवं अनुग्रह राशि नहीं दी जाएगी। नई राज्य सरकार ने नौ साल पहले शिवराज सरकार के समय बनाई योजना, जिसमें अपंजीकृत निर्माण श्रमिकों को सामाजिक सुरक्षा देने के लिए उनकी दुर्घटना में मृत्यु पर तीन हजार रुपये अंत्येष्टि सहायता एवं एक लाख रुपये अनुग्रह राशि देने का प्रविधान था, को बंद कर दिया है। मध्य प्रदेश श्रम विभाग के अंतर्गत कार्यरत भवन एवं अन्य संनिर्माण कर्मकार मंडल ने चार दिसंबर 2014 को मंडल में अपंजीकृत निर्माण श्रमिकों को भी सामाजिक सुरक्षा देने की योजना जारी की थी। इसमें दुर्घटना में स्थाई अपंगता आने पर 75 हजार रुपये अनुग्रह राशि देने का भी प्रविधान था। 13 जनवरी 2017 में इस योजना में बदलाव कर प्रविधान किया गया था कि दुर्घटना में मृत्यु होने पर चार लाख रुपये एवं दुर्घटना में स्थाई अपंगता आने पर दो लाख रुपये अनुग्रह राशि दी जाएगी। अब यह योजना पूरी तरह बंद कर दी गई है।

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