जांच पूरी होने के बाद भी खोली जा रही फाइलें

लोकायुक्त-ईओडब्ल्यू
  • लोकायुक्त-ईओडब्ल्यू की कार्रवाई पर उठ रहे सवाल

भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम। मप्र में लोकायुक्त और ईओडब्ल्यू की जांच पर लगातार सवाल उठते रहते हैं। कई बार तो ऐसी स्थिति बन जाती है कि जांच पूरी होने के बाद भी अदालत के हस्तक्षेप से फाइलें खोलनी पड़ती हैं। पूर्व परिवहन आरक्षक सौरभ शर्मा के विरुद्ध अनुपातहीन संपत्ति का मामला हो या फिर आजीविका मिशन घोटाले के आरोपित ललित मोहन बेलवाल का या दूसरे प्रकरण हो, जांच एजेंसियां लोकायुक्त और ईओडब्ल्यू की कार्रवाई पर कई बार सवाल उठते रहे हैं।
लोकायुक्त और ईओडब्ल्यू की जांच को लेकर विपक्ष सरकार को घेरता रहता है। इसकी वजह है की जांच एजेंसियां छोटे कर्मचारियों पर तो तत्काल कार्रवाई कर देती हैं, लेकिन बड़े अफसरों के मामले दबे रहते हैं। ऐसे ही मामलों को लेकर विपक्ष सडक़ से सदन तक मुद्दे उठाता है। सरकार की घेराबंदी भी होती है, पर कई बड़े मामलों की कार्रवाई में तेजी नहीं दिखती।  ऐसे एक नहीं कई उदाहरण हैं, जब आय से अधिक संपत्ति के मामले में जांच नहीं हुई तो शिकायतकर्ता को हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाना पड़ा। ताजा मामला पूर्व मंत्री गौरी शंकर बिसेन का है, जिसमें शिकायतकर्ता पूर्व विधायक किशोर समरोते ने हाई कोर्ट में याचिका दायर की, तब जांच प्रारंभ हुई।
जांच पर उठ रही आंच
प्रदेश में ऐसे मामले भी हैं, जब जांच एजेंसी  ने पर्याप्त साक्ष्य नहीं होने का हवाला देकर कोर्ट में खात्मा रिपोर्ट प्रस्तुत कर दी, पर कोर्ट ने रिपोर्ट को अस्वीकार कर दोबारा जांच करने के लिए कहा। माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्वविद्यालय में नियुक्तियों में गड़बड़ी और अन्य मामलों में पूर्व कुलपति बीके कुठियाला की जांच बंद करने के बाद कोर्ट के निर्देश पर ईओडब्ल्यू को वर्ष 2022 में फाइल फिर खोलनी पड़ी। मामले में कुठियाला सहित विश्वविद्यालय के 19 लोगों को आरोपी बनाया गया था। इसमें नियुक्तियों में गड़बड़ी और आर्थिक अनियमितता का आरोप था। लगभग तीन हजार करोड़ के बहुचर्चित ई-टेंडर घोटाले में ईओडब्ल्यू ने विशेष न्यायालय में वर्ष 2024 में खात्मा रिपोर्ट प्रस्तुत कर दी थी। कोर्ट ने मामले की गंभीरता को देखते हुए कुछ बिंदुओं पर नए सिरे से जांच करने के लिए कहा था, जिसकी जांच जारी है। मामला वर्ष 2018 में शिवराज सरकार के समय सामने आया था, जिसमें वर्ष 2019 में कमल नाथ सरकार के समय केस दर्ज हुआ था। ई-टेंडर में छेड़छाड़ कर चहेती फर्मों को लाभ पहुंचाने का आरोप था। तत्कालीन जल संसाधन मंत्री के निज सहायक वीरेंद्र पांडे और निर्मल अवस्थी भी आरोपी थे। ईओडब्ल्यू ने दोनों को गिरफ्तार भी किया था। वहीं आजीविका मिशन के तत्कालीन सीईओ ललित मोहन बेलवाल के विरुद्ध लोकायुक्त में आठ शिकायतें सामाजिक कार्यकर्ता भूपेंद्र प्रजापति ने की थीं। इनकी जांच खुद बेलवाल के मार्गदर्शन में मिशन कार्यालय में हुई। जांच करने वाली आइएएस अधिकारी नेहा मारख्या ने अपनी रिपोर्ट के अभिमत में लिखा है कि जिसके विरुद्ध शिकायत की जा रही है। जब उसी के द्वारा शिकायत की जांच की जाएगी तो वह शिकायत तो निराधार बताएगा ही।
खुद का  होगा लॉकअप और इंटरोगेशन रूम
लोकायुक्त, ईओडब्ल्यू, स्टेट सीआईडी या एसटीएफ के पास अब अपना खुद का लॉकअप और इंटेरोगेशन रूम होने वाला है। इसको लेकर राज्य के गृह विभाग ने निर्देश जारी कर दिए हैं। लंबे समय से यह जांच एजेंसियां आरोपियों को हिरासत में रखने और पूछताछ के लिए खुद के लॉकअप और इंटेरोगेशन रूम की मांग कर रही थीं, जिसे आखिरकार अब मान लिया गया है। गृह विभाग के सर्कुलर के तहत अब लोकायुक्त, ईओडब्ल्यू, सीआईडी, एसटीएफ, राज्य नारकोटिक्स को लॉकअप और इंटेरोगेशन रूम बनाने की अनुमति है। इसके लिए इन एजेंसियों को अपने कार्यालय में एक कक्ष चिह्नित करना होगा, जहां आरोपी को 5-6 घंटे तक पूछताछ के लिए रखा जा सकेगा। कमरे में एक टेबल होगी, जिस पर एक तरफ आरोपी और दूसरी तरफ जांच अधिकारी होंगे। रूम में एचडी कैमरे लगाए जाएंगे, जिसका लाइव आउटपुट वरिष्ठ अफसरों के केबिन में दिया जाएगा, जहां से वे पूछताछ को लाइव देख सकेंगे। आरोपी को हिरासत के दौरान यहीं पर खाना भी दिया जाएगा। इन जांच एजेंसियों के वर्तमान में जो संभागीय मुख्यालय हैं, वहां इसका निर्माण किया जाएगा। दरअसल, वर्तमान में यह जांच एजेंसियां जब किसी को हिरासत में लेती हैं तो इनसे जांच अधिकारी अपने कक्ष में पूछताछ करते हैं या बेहद संवेदनशील मामलों में आला अधिकारीयों के कमरे में पूछताछ की जाती है। पूछताछ खत्म होने के बाद आरोपियों को नजदीकी पुलिस थाने के लॉकअप में रात बिताने के लिए लाया जाता है। इससे समय भी लगता है और एक जगह से दूसरी जगह शिफ्ट करते समय आरोपियों की सुरक्षा पर भी ध्यान देना पड़ता है। हाल ही में लोकायुक्त की हिरासत में रहे आरटीओ के पूर्व कॉन्स्टेबल सौरभ शर्मा को लोकायुक्त कार्यालय के पास स्थित कोहेफिजा थाने में रखा गया था।
सौरभ का मामला दबा रहा
पूर्व परिवहन आरक्षक सौरभ शर्मा के विरुद्ध आर्थिक अपराध प्रकोष्ठ (ईओडब्ल्यू) में 15 नवंबर 2024 को शिकायत हुई थी। शिकायत में तथ्यात्मक आरोप भोपाल के ही एक शिकायतकर्ता ने लगाए थे। एक माह से अधिक समय तक जांच में कोई प्रगति नहीं होने पर शिकायतकर्ता ने लोकायुक्त में शिकायत की थी, जिसमें छापेमारी के बाद सौ करोड़ रुपये से अधिक की अनुपातहीन संपत्ति मिली है। आयकर विभाग और ईडी भी मामले की जांच कर रहे हैं। वहीं वर्ष 2019 तत्कालीन मुख्यमंत्री कमल नाथ के करीबियों यहां पड़े आयकर छापे में मिले दस्तावेज के आधार निर्वाचन आयोग ने मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी मप्र को दस्तावेज भेजकर तत्कालीन तीन आइपीएस अधिकारी वी मधु कुमार, संजय माने और सुशोभन बनर्जी के विरुद्ध जांच कर कार्रवाई करने को कहा था, पर जांच आगे नहीं बढ़ी। ईओडब्ल्यू अधिकारियों का तर्क है कि आयकर विभाग से संबंधित अधिकारियों के विरुद्ध दस्तावेज प्राप्त करने के लिए 25 से अधिक पत्र भेजे पर कुछ नहीं मिला। इनमें संजय माने का निधन हो चुका है। अधिकारियों को कोर्ट से स्टे मिला हुआ है। मधु कुमार और सुशोभन बनर्जी सेवानिवृत्त हो चुके हैं।

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