मप्र के लोकसभा चुनाव में… परिवारवाद का बोलबाला

  • कोई दल किसी से कम नहीं
  • विनोद उपाध्याय
लोकसभा चुनाव

१८वीं लोकसभा चुनाव में परिवारवाद एक बड़ा मुद्दा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सहित लगभग पूरी भाजपा परिवारवाद को लेकर विपक्ष पर हमलावर है। लेकिन मप्र के लोकसभा चुनाव में परिवारवाद का बोलबाला है। प्रदेश की करीब आधी सीटों पर परिवारवाद की छाया भी नजर आ रही है। यहां सियासी घरानों के प्रतिनिधि ताल ठोकते नजर आ रहे हैं। इस मामले में कोई भी पार्टी किसी से पीछे नहीं है। अहम बात यह है कि जिन जगहों पर इन घरानों के प्रतिनिधि मैदान में हैं, वहां चुनाव रोचक भी है।
मप्र में लोकसभा चुनाव प्रचार की गर्माहट धीरे-धीरे बढऩे लगी है और प्रचार अभियान भी गति पकड़ रहा है। राज्य में लोकसभा की 29 सीटें हैं। भाजपा सभी तो कांग्रेस 28 सीटों पर चुनाव लड़ रही है। प्रदेश के लोकसभा चुनाव में आधी से अधिक सीटों पर दोनों ही दलों के प्रत्याशी अपनी पारिवारिक राजनीतिक विरासत की ध्वज पताका फहरा रहे हैं। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि राजनीतिक दल परिवारवाद को महत्व न देने की बात करते हैं, राजनीति के लिए सबसे नुकसानदायक बताने में भी नहीं चूकते। मगर, जब चुनाव आते हैं तो हर दल अपने-अपने तरह से परिवारवाद को परिभाषित करने लगता है। कोई घोषित उम्मीदवार की योग्यताएं बताने लगता है तो कोई चुनाव जीतने को महत्वपूर्ण बताता है। मप्र भाजपा प्रवक्ता डॉ. हितेष वाजपेयी कहते हैं कि भाजपा में परिवार के सदस्य अपने काम के आधार पर और राजनीतिक आयु से टिकट के दावेदार बनते हैं, जबकि कांग्रेस में दावेदार डीएनए के आधार पर आते हैं।
पारिवारिक विरासत बचाने मैदान में
भाजपा के कार्यक्रमों में पीएम नरेंद्र मोदी सहित संगठन प्रमुख इस मुद्दे पर अपनी सख्त राय दे चुके हैं। यही वजह है कि भाजपा ने परिवारवाद के मुद्दे पर कई नेताओं की अगली पीढ़ी को टिकट से नवाजने में परहेज किया। हालांकि कांग्रेस में ऐसे प्रत्याशियों की संख्या ज्यादा है। गुना में केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया भाजपा के टिकट पर पहली बार लोकसभा चुनाव लड़ रहे हैं। इसके पहले इसी सीट से वह कांग्रेस से सांसद व केंद्र में मंत्री भी रह चुके हैं। उनकी दादी विजयाराजे सिंधिया जनसंघ और भाजपा की संस्थापक सदस्यों में रही हैं। रतलाम जैसी आदिवासी बहुल सीट पर कांग्रेस के दिग्गज आदिवासी नेता कांतिलाल भूरिया के खिलाफ भाजपा ने इस बार प्रदेश के वन मंत्री नागर सिंह चौहान की पत्नी को उम्मीदवारी सौंपी है। अनीता के रूप में भाजपा ने उच्च शिक्षित चेहरे पर दांव लगाया है। शहडोल में भी भाजपा प्रत्याशी हिमाद्री अपनी पारिवारिक विरासत को आगे बढ़ा रही है। वह दूसरी बार चुनाव मैदान में हैं। उनके पिता कांग्रेस नेता पूर्व केंद्रीय मंत्री दलबीर सिंह और मां नंदिनी सिंह सांसद रह चुकी हैं। कांग्रेस में परिवारवाद की फेहरिश्त लंबी है। इस बार कांग्रेस के सियासी परिवारों के प्रत्याशी एक दर्जन सीटों पर ताल ठोक रहे हैं। राजगढ़ के प्रत्याशी दिग्विजय सिंह स्वयं 10 साल प्रदेश के सीएम रह चुके हैं। छिंदवाड़ा से नकुलनाथ दूसरी बार चुनाव मैदान में हैं। इस सीट पर उनके पिता पूर्व सीएम कमलनाथ 9 बार और एक बार उनकी पत्नी भी सांसद रह चुकी हैं। सत्यपाल सिंह सिकरवार मुरैना के पिता और भाई-भाभी राजनीति में हैं। अरुण श्रीवास्तव भोपाल, सम्राट सरस्वार बालाघाट, नरेंद्र पटेल खंडवा, सिद्धार्थ कुशवाहा सतना, नीलम मिश्रा रीवा, सहित कमलेश्वर पटेल सीधी, यादवेंद्र सिंह गुना, राजेंद्र मालवीय देवास और गुड्डू राजा बुंदेला सागर से परिवार की सियासी विरासत को आगे बढ़ा रहे हैं। वैसे देखा जाए तो मप्र के राजनीतिक परिदृश्य पर हमेशा से ही मजबूत वंशवादी राजनेताओं का दबदबा रहा है। पं. रविशंकर शुक्ल-श्यामा चरण शुक्ल और वीसी शुक्ल (अविभाजित मप्र में) से लेकर राजमाता विजया राजे सिंधिया-माधव राव सिंधिया-ज्योतिरादित्य और अर्जुन सिंह-अजय सिंह से लेकर दिग्विजय सिंह-लक्ष्मण सिंह और जयवर्धन सिंह तक कुछ बदला नहीं है।
इन सीटों पर परिवारवाद की छाया
प्रदेश की जिन लोकसभा सीटों पर परिवारवाद की छाया दिख रही है उनमें रतलाम में प्रदेश के वन मंत्री नागर सिंह चौहान की पत्नी अनीता चौहान, गुना में केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया और शहडोल सीट पर भाजपा प्रत्याशी सांसद हिमाद्री सिंह के मामले में पारिवारिक विरासत सामने है। कांग्रेस के नकुलनाथ छिंदवाड़ा, कमलेश्वर पटेल सीधी, राव यादवेंद्र सिंह गुना, राजेंद्र मालवीय देवास और गुड्डू राजा बुंदेला सागर सहित 15 प्रत्याशी चुनाव मैदान में हैं। गुना संसदीय क्षेत्र से सिंधिया राजघराने के प्रतिनिधि के तौर पर केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया एक बार फिर चुनाव मैदान में हैं। सिंधिया राजघराने के कई प्रतिनिधि सियासत में सक्रिय रहे हैं और सांसद से लेकर केंद्रीय मंत्री तक बने हैं। इसी सीट पर कांग्रेस ने भी परिवारवाद को महत्व दिया है और राव यादवेंद्र सिंह को उम्मीदवार बनाया है। उनके पिता भाजपा से कई बार विधायक रहे हैं। बात राजगढ़ की करें तो यहां से पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह कांग्रेस के उम्मीदवार के तौर पर मैदान में हैं। उनके बेटे जयवर्धन सिंह राघौगढ़ से विधायक हैं।

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