सोशल इंजीनियरिंग के तहत… सभी वर्गों को साधने की कवायद

सोशल इंजीनियरिंग
  • जनहितैषी योजनाओं पर सरकार कर रही 40,660 करोड़ खर्च …

भोपाल/गौरव चौहान/बिच्छू डॉट कॉम। सरकार सोशल इंजीनियरिंग के तहत सभी वर्गों को साधने के लिए कई योजनाएं संचालित कर रही हैं। लोकलुभावन योजनाओं को संचालित करने में मप्र अन्य राज्यों से काफी आगे है। किसान, अनुसूचित जाति एवं जनजाति सहित अन्य वर्गों को साधने के लिए कमाई का 16.31 फीसदी हिस्सा खर्च किया जा रहा है। इसका खुलासा भारतीय स्टेट बैंक की एक रिसर्च रिपोर्ट में हुआ है। रिपोर्ट के अनुसार लोकलुभावनी योजनाओं पर सरकार 40,660 करोड़ रुपए खर्च कर रही है, जो कमाई का 16.31 प्रतिशत हिस्सा है।  गौरतलब है कि प्रदेश में  22 हजार करोड़ रुपये तो केवल बिजली अनुदान पर खर्च किए जा रहे हैं। सरकार ने हाल ही में छह हजार करोड़ रुपये के बिजली बिल माफ किए हैं। डिफाल्टर किसानों को लगभग 85 करोड़ रुपये ब्याज माफ करने की घोषणा की जा चुकी है। पांच करोड़ से ज्यादा उपभोक्ताओं को एक किलोग्राम की दर से गेहूं और चावल देने के लिए चार सौ करोड़ रुपये सालाना व्यय किए जा रहे हैं। लाड़ली लक्ष्मी, तीर्थदर्शन, कन्यादान, सहरिया, भारिया और बैगा जनजातीय परिवारों को विशेष पोषण भत्ता सहित अन्य योजनाएं संचालित हैं।
सबसे बड़ा खर्च बिजली पर
सरकार सोशल इंजीनियरिंग के तहत सभी वर्गों को साधने के लिए कई योजनाएं संचालित कर रही हैं। सबसे बड़ा खर्च बिजली पर दिए जाने वाले अनुदान है। डेढ़ सौ यूनिट तक बिजली का उपयोग करने वाले उपभोक्ताओं से मात्र एक रुपये यूनिट की दर से बिल लिया जा रहा है, जबकि इसकी लागत कहीं अधिक होती है।
22 हजार करोड़ रुपये सालाना सरकार बिजली कंपनियों को अनुदान की राशि देती है। कोरोना काल में उपभोक्ता बिल जमा नहीं कर पाए तो समाधान योजना लागू करके सरचार्ज पूरा माफ कर दिया। इसके बाद भी वसूली नहीं हुई तो सरकार ने छह हजार करोड़ रुपये का बकाया बिल ही माफ कर दिया। किसानों को साधने के लिए ब्याज रहित ऋण दिया जा रहा है। इसकी प्रतिपूर्ति सहकारी बैंकों को ब्याज अनुदान के रूप में करनी होती है। इस पर प्रतिवर्ष 800 करोड़ रुपये खर्च होते हैं। हालांकि, इस वर्ष आधार दर में कमी करने से यह राशि छह सौ करोड़ रुपये के आसपास रहने की संभावना है। असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों के लिए मुख्यमंत्री जनकल्याण (संबल) योजना लागू की गई है। इसके लिए 600 करोड़ रुपये का प्रविधान रखा है। इसी तरह शिवराज सरकार की महत्वाकांक्षी लाड़ली लक्ष्मी योजना में 922 करोड़ रुपये व्यय किए जाएंगे। अब सरकार योजना का दूसरा चरण लागू करने जा रही है।
मुफ्त की योजनाएं ला सकती हैं आर्थिक तबाही
भारतीय स्टेट बैंक की एक रिसर्च रिपोर्ट में कहा गया है कि मुफ्त की योजनाएं राज्यों में आर्थिक तबाही ला सकती है। इस रिपोर्ट में मध्यप्रदेश के आर्थिक आंकड़ों का मूल्यांकन नहीं किया गया है, क्योंकि बैंक के पास यहां के आंकड़े नहीं थे। हालांकि जिन मापदंडों के आधार पर राज्यों को वित्तीय तबाही आने की चेतावनी दी गई है, उन्हीं मापदंडों पर मप्र के आर्थिक हालात भी चिंताजनक हैं। राज्य सरकार को मिलने वाले कर राजस्व का बड़ा हिस्सा लोकलुभावनी योजनाओं पर खर्च हो रहा है। इसके चलते राज्य का वित्तीय घाटा 4.56 प्रतिशत तक पहुंच सकता है। इन योजनाओं में धन जुटाने के लिए सरकार के पास बाजार से उधारी उठाने के अतिरिक्त कोई चारा नहीं होगा। जानकार कहते हैं कि सरकार को बाजार से ज्यादा कर्ज उठाने के बजाय कर्ज का बोझ कम करना चाहिए। एसबीआई  के मुख्य आर्थिक सलाहकार डॉ. सोम्यकांति घोष के अनुसार लोकलुभावनी योजनाएं राज्यों की वित्तीय सेहत बिगाड़ रहीं हैं। ये आर्थिक तबाही ला सकती हैं। अगर सरकार ऐसी योजनाओं में सीमा से अधिक धन खर्च कर रही है और उसका वित्तीय घाटा 4.56 प्रतिशत है तो यह खतरे की घंटी है। हालांकि वित्त विभाग के एसीएस मनोज गोविल कहते हैं कि मप्र की वित्तीय सेहत बेहतर है। मौद्रिक घाटा केंद्र सरकार की गाइडलाइन पर ही है। पिछले सालों में हमने पूंजीगत व्यय और निवेश बढ़ाया था।
अन्य योजनाओं पर खर्च का गणित
प्रदेश में कन्यादान निकाह योजना के तहत प्रत्येक विवाह के लिए राशि 51 से बढ़ाकर 55 हजार रुपए की गई। सरकार 540 करोड़ रुपए खर्च करेगी। लाडली लक्ष्मी योजना पर इस वर्ष 1400 करोड़ रुपए का प्रावधान है। वृद्धावस्था और नि:शक्तजन पेंशन योजना में सामाजिक सुरक्षा के लिए इन पर कुल 12,000 करोड़ रुपए से अधिक खर्च किए जा रहे हैं। लघु उद्योगों को सब्सिडी में इस साल 3390 करोड़ रुपए की सब्सिडी दी जानी है। इसमें 2,890 करोड़ रुपए और निर्यात प्रोत्साहन योजना में 500 करोड़ रुपए दिए जाएंगे। निर्यात प्रोत्साहन योजना में बड़े उद्योगों को निर्यात प्रोत्साहन के लिए 610 करोड़ रुपए की रियायत दी जानी है। मुख्यमंत्री कर्ज समाधान योजना में 750 करोड़ रुपए और ब्याज अनुदान 600 करोड़ रुपए यानी कुल 1,350 करोड़ कर्ज का समाधान करना है।

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