हर ढाई दिन में पकड़ा जाता है एक सरकारी अलम्बरदार रिश्वत लेते

सरकारी अलम्बरदार

भोपाल/गौरव चौहान/बिच्छू डॉट कॉम। प्रदेश सरकार सुशासन के कितने ही दावे करे, लेकिन वास्तविकता इससे अलग ही है। इसकी वजह है वह शासकीय अमला जो घूस लिए बगैर कोई भी काम करना पसंद नहीं करता है। इसकी वजह से ही लोकायुक्त पुलिस द्वारा लगभग हर ढाई दिन में एक सरकारी अलम्बरदार को रिश्वत लेते धर लिया जाता है। अगर बीते दो साल की बात की जाए तो लोकायुक्त पुलिस द्वारा करीब 290 कर्मचारियों को रिश्वत लेते पकड़ा गया है। खास बात यह है कि इनमें चपरासी से लेकर एसडीएम स्तर तक के अफसर धरे गए हैं। यह खुलासा हाल ही में सामान्य प्रशासन विभाग द्वारा दी गई जानकारी में हुआ है। इस जानकारी में बताया गया है कि वर्ष 2020 और 2021 में प्रदेश के अलग-अलग जिलों में लोकायुक्त पुलिस द्वारा की गई ढाई सौ से अधिक कार्रवाईयों में 290 शासकीय अधिकारी, कर्मचारी एवं इनके सहयोगी बाहरी व्यक्ति रिश्वत लेते रंगे हाथों पकड़े गए हैं। इस संबंध में विधानसभा में दी गई जानकारी में कहा गया है कि लोकायुक्त पुलिस द्वारा किसी भी भ्रष्ट अधिकारी/कर्मचारी की सेवा समाप्त करने के लिए संतुति नहीं की जाती है। इसमें कहा गया है कि अधिकारी या कर्मचारी पर दोष सिद्ध होने पर संबंधित विभाग का कर्तव्य है कि वह उचित कार्रवाई करे। बताया गया है कि विशेष पुलिस स्थापना (लोकायुत) द्वारा रिश्वत लेते हुए जिन अधिकारी/कर्मचारियों को पकड़ा जाता है उनके विरुद्ध अपराध दर्ज किया जाता है एवं उसके बाद जांच नहीं की जाती, बल्कि अपराध का अनुसंधान किया जाता है। भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम में अनुसंधान के लिए कोई समयसीमा तय नहीं है, परंतु अभियोजन स्वीकृति के लिए तीन माह का समय निर्धारित है। उल्लेखनीय है कि भ्रष्टाचार के मामलों में सरकार या विभाग से संबधितों के के खिलाफ चालान पेश करने की अनुमति लेनी होती है। यह अनुमति या तो लोकायुक्त पुलिस को मिलती नहीं है या फिर मिलती भी है तो इतनी देरी से की उसका औचित्य ही लगभग समाप्त हो जाता है। फिलहाल शासन के पास इस तरह के करीब दौ सैकड़ा मामले अनुमति के इंतजार में लंबित पड़े हुए हैं। इसकी वजह से जांच पूरी होने के बाद भी इन मामलों में कोई कार्रवाई नहीं हो पा रही है। इसकी वजह से भ्रष्ट अफसरों व शासकीय कर्मचारियों पर नकेल नहीं कसी जा पा रही है। इसकी वजह से समय-समय पर सरकार की मंशा पर भी सवाल खड़े होते रहते हैं। यही नहीं  प्रदेश में शासकीय सेवकों के भ्रष्टाचार के खिलाफ कार्रवाई के लिए अधिकृत दोनों ही प्रमुख एजेंसियां लोकायुक्त और आर्थिक अपराध अन्वेषण ब्यूरो के लगातार सक्रिय होने के बाद भी भ्रष्टाचार के मामलों में पकड़े जाने वाले शासकीय सेवकों के प्रकरणों के अनुसंधान के नाम पर की जा रही देरी और साक्ष्यों का अभाव दर्शाकर इन भ्रष्टाचार के दर्ज प्रकरणों में खात्मा रिपोर्ट लगवाई जा रही है, इससे जांच एजेंसियों के प्रति आमजन का विश्वास कम हो रहा है। उल्लेखनीय है कि जनवरी 2020 से नवबर 2021 की अवधि में लोकायुक्त में दर्ज 60 प्रकरणों में खात्मा रिपोर्ट लगाई गई है। इनमें ज्यादातर मामलों में साक्ष्यों का अभाव दर्शाकर खात्मा रिपोर्ट लगवाई गई है। जबकि कुछ मामलों में आरोपी की मौत एवं कुछ में उच्च न्यायालय के आदेश का हवाला
दिया गया है।
अटका रहता है आला अफसरों का अनुसंधान!
भारतीय प्रशासनिक सेवा, भारतीय पुलिस सेवा और भारतीय वन सेवा एवं राज्य प्रशासनिक, राज्य पुलिस व राज्य वन सेवा के भी कई वरिष्ठ अधिकारियों विरुद्ध लोकायुक्त में दर्ज मामले ऐसे भी हैं जो अनुसंधान के नाम पर एक दशक से अटके हुए हैं। विशेष पुलिस स्थापना (लोकायुक्त) ने इन्हें अनुसंधान के नाम पर रोक रखा है। इसमें भी खास बात यह है कि रिश्वत लेते रंगे हाथों पकड़े गए अथवा अनुपातहीन संपत्ति के मामले लोकायुक्त में पंजीबद्ध होने के बाद भी कई मामलों के आरोपी अधिकारी या तो सेवानिवृत्त हो चुके हैं या फिर उनकी मौत हो चुकी है। मौत के बाद उनके मामलों में स्वत: खात्मा रिपोर्ट लगवा दी जाती है। जबकि छोटे अधिकारियों और कर्मचारियों के अधिकांश मामलों में न्यायालय से एक- दो साल में निर्णय हो जाता है। इनमें आरोपी कई अधिकारियों व कर्मचारियों को शासकीय सेवा से बर्खास्तगी  और जेल भी हो चुकी है। वहीं प्रभावशाली अधिकारी अपने प्रकरणों को अनुसंधान के नाम पर लोकायुक्त में अटकावाए रखते हैं।
खात्में वाले मामलों में जारी रहेगी जांच
लोकायुक्त पुलिस द्वारा अब ऐसे मामलों में जांच जारी रखी जा सकेगी, जो अभियोजन से जुड़े हैं या फिर उनमें बीते समय में खात्मा लगाया जा चुका है। यह वे मामले हैं जो तृतीय या फिर चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारियों से संबंधित हैं। पूर्व में हुई सुनवाई में इन मामलों में हाईकोर्ट द्वारा रोक लगा दी गई थी, लेकिन अब इस मामले में पेश किए गए अंतरिम आवेदन के बाद हाईकोर्ट ने जांच जारी रखने की अनुमति प्रदान कर दी है। दरअसल यह वे मामले हैं जिनमें खात्मा लगाने के अधिकार डीजी लोकायुक्त के पास रहते हैं। लोकायुक्त को शिकायत मिली थी की कई मामलों में डीजी स्तर पर खात्मा लगा दिया गया है। यह वे प्रकरण बताए जा रहे हैं, जिनमें जिला स्तर से एवं स्थानीय विशेष न्यायालयों में साक्ष्यों का अभाव दर्शाकर लगातार खात्मा रिपोर्ट लगवाई जा रही थीं। इसलिए लोकायुक्त कार्यालय ने महानिदेशक विशेष पुलिस स्थापना (लोकायुक्त) को पत्र लिखकर तृतीय एवं चतुर्थ श्रेणी के रंगे हाथों पकड़े गए एवं अनुपातहीन संपत्ति के 1 जून 2020 से 31 अगस्त 2021 की अवधि में न्यायालयों में प्रस्तुत खात्मा रिपोर्ट वापस लेने के निर्देश दिए गए थे। साथ ही इन प्रकरणों की प्रत्येक रिपोर्ट भी केश डायरी महानिदेशक विशेष पुलिस स्थापना कार्यालय की नस्ती के साथ लोकायुक्त के समक्ष पुर्नमूल्यांकन के लिए प्रस्तुत करने के निर्देश भी दिए गए। इनमें उन प्रकरणों की भी जानकारी मांगी गई थी, जिनमें विशेष न्यायालयों में खात्मा रिपोर्ट स्वीकार की जा चुकी थी।

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