अनुशासन का चाबुक चलाने में भी ‘रसूख’ का ख्याल

निकाय चुनाव
  • भाजपा ने 400 कार्यकर्ताओं को ‘बागी बताकर किया बाहर, पदाधिकारियों, विधायकों को किया नजरअंदाज

भोपाल/विनोद उपाध्याय/बिच्छू डॉट कॉम। नगरीय निकाय चुनाव में पार्टी प्रत्याशी के खिलाफ बगावत करके चुनाव लड़ने  और लड़ाने वाले करीब 400 कार्यकर्ताओं के खिलाफ भाजपा ने अनुशासनात्मक कार्यवाही की है। लेकिन इस कार्यवाही में भी ‘रसूख’ का ख्याल रखा गया है। यानी बड़े पदाधिकारियों, विधायकों को नजरअंदाज कर दिया गया है। इससे पार्टी में असंतोष का महौल बना हुआ है।
भाजपा में टिकट वितरण को लेकर इतना ज्यादा असंतोष था कि पार्टी के 400 से ज्यादा कार्यकर्ता पार्टी प्रत्याशियों के खिलाफ खुद मैदान में उतरे या फिर उन्होंने अपने रिश्तेदारों को चुनाव लड़ाया। पार्टी ने ऐसे कार्यकर्ताओं को मनाने की पुरजोर कोशिश की, लेकिन ये नहीं माने तो उन्हें बागी बताकर पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया। ये भाजपा के वे कार्यकर्ता रहे हैं, जिन्होंने पार्टी के लिए दरी बिछाने से लेकर झंडा उठाने का काम किया। ये कार्यकर्ता पार्टी की टिकट चयन की प्रक्रिया से नाराज थे और उन्होंने खुद चुनाव में उतरने का फैसला किया। भाजपा में यह पहली बार है कि इतनी बड़ी संख्या में पार्टी के मूल कार्यकता्रओँ को बाहर किया गया है।
पदाधिकारियों को अभयदान
निकाय चुनाव के दंगल में मौजूद बागियों को लेकर भाजपा ने सख्त रवैया दिखाया। लेकिन कई जिलों में पार्टी ने अनुशासन की जो कार्रवाई की वह बड़ी दिलचस्प रही। मसलन मंडल अध्यक्ष अथवा सदस्य ने बगावत कर अपनी पत्नी को चुनाव मैदान में निर्दलीय उतार दिया तो पार्टी महज प्रत्याशी पर कार्रवाई करके दूर हो गईद्व जबकि पार्टी के पदाधिकारी-कार्यकर्ता का कुछ भी नहीं बिगड़ा। इसी तरह विधायक और बड़े नेताओं की अनुशासनहीनता के मुद्दे पर भाजपा मौन है। निकाय चुनाव में मालवा, निमाड़, महाकोशल और विंध्य सहित कतिपय अन्य जिलों में बड़ी संख्या में भाजपा के बागी भी चुनाव मैदान में ताल ठोक रहे हैं। इनकी मौजूदगी से अधिकृत प्रत्याशियों को नुकसान का सामना करना पड़ा। भाजपा संगठन ने बागी प्रत्याशियों के खिलाफ निष्कासन की कार्रवाई भी की है। प्रदेश कार्यसमिति सदस्य विजय गूजर ने अपने जिले में वार्ड पार्षद पद पर अपनी पत्नी रानी को उतार दिया। पार्टी ने कार्रवाई करते हुए प्रत्याशी रानी के खिलाफ निष्कासन की कार्रवाई कर दी। लेकिन दिलचस्प यह है कि रानी चुनाव लड़ने  के पहले तक पार्टी की सदस्य ही नहीं थी। इसी तरह एक मंडल उपाध्यक्ष अनूप माहेश्वरी ने भी अपनी पत्नी दिव्या को निर्दलीय चुनाव लड़ा दिया। भाजपा ने दिव्या के खिलाफ तो कार्रवाई कर दी, लेकिन पति यथावत अपने पद और पार्टी में बने हुए हैं। कतिपय अन्य जिलों में भी ऐसे ही मामले सामने आए हैं। भाजपा ने बागी नेताओं को अनुशासन के नाम पर बाहर का रास्ता दिखाया है। बाहर किए गए नेताओं ने पार्टी प्रत्याशियों के खिलाफ पूरी ताकत के साथ चुनाव लड़ा है। करीब भाजपा और पार्टी से जुड़े करीब 250 से ज्यादा नेताओं ने चुनाव मैदान में भाजपा के अधिकृत प्रत्याशियों को टक्कर दी। भाजपा ने प्रदेश भर में 400 से ज्यादा नेताओं को बाहर का रास्ता दिखाया है।
किसी पर रहम, किसी को किया बाहर
भाजपा में बागियों पर कार्रवाई करने के मामले में  पक्षपात करना भी   चर्चा मे है। पार्टी ने जिलाध्यक्षों की शिकायत पर बागियों को बाहर कर दिया। जबकि भोपाल नगर निगम के वार्ड 45 में पार्टी की अधिकृत प्रत्याशी वंदना जाचक ने संगठन को शिकायत भेजी की पार्टी नेता अंशुल तिवारी निर्दलीय प्रत्याशी के समर्थन में काम कर रहे हैं। भाजपा की महिला प्रत्याशी की शिकायत पर भाजपा संगठन ने चुप्पी साध रखी थी। खास बात यह है कि भाजपा ने जिन कार्यकर्ता एवं नेताओं को बाहर का रास्ता दिखाया है, उनमें से 90 फीसदी अजा, अजजा और अन्य पिछड़ा मोर्चा से जुड़े रहे हैं। भाजपा में हर चुनाव में टिकट बंटवारे के बाद कार्यकर्ताओं में नाराजगी देखने को मिलती है, लेकिन पहली बार कार्यकर्ता बड़ी संख्या में बगावत पर उतरे हैं। सामान्य रुप से भाजपा नाराज कार्यकर्ताओं को मनाने में सफल रहती है, लेकिन पहली बार है कि भाजपा कार्यकर्ताओं को  मनाने में सफल नहीं हो पाई है। यही वजह है कि पार्टी को बड़ी संख्या में पार्टी के बागी नेता एवं कार्यकर्ताओं को  बाहर का रास्ता दिखाना पड़ा है।
विधायकों पर कोई कार्यवाही नहीं
भाजपा विधायक नारायण त्रिपाठी का मामला भी दिलचस्प है। पिछले दो साल से वह बेबाकी से बयानबाजी करने और पार्टी लाइन से हटकर काम करने में सक्रिय हैं। मामला चाहे पृथक विंध्य आंदोलन का हो अथवा निकाय चुनाव के दौरान सीधे अपनी ही सरकार को कटघरे में खड़े करने का। एक अन्य वरिष्ठ विधायक अजय विश्नोई भी पार्टी लाइन के खिलाफ बेबाकी से अपनी बात रखने के लिए जाने जाते हैं।

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