
भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम। मध्यप्रदेश को भले ही लगातार टाईगर स्टेट का तमगा मिल रहा है , लेकिन इसके बाद भी प्रदेश की पूर्ववर्ती सरकारों द्वारा उनकी सुरक्षा की ङ्क्षचता नहीं की गई है, फलस्वरुप बाघों की मौत आए दिन होती रहती है। अब नई सरकार बनने के बाद लोगों को लग रहा है कि शायद सरकार बाघों की सुरक्षा के लिए सख्त कदम उठा सकती है। दरअसल बाघों को प्रदेश की आबोहवा खूब रास आती । यही वजह है कि प्रदेश में इनकी संख्या में तेजी से वृद्धि हो रही है। इसकी वजह से ही प्रदेश को टाइगर स्टेट का गौरव मिला हुआ है, लेकिन अब इस तमगे पर दाग भी खूब लग रहे हैं। इसकी वजह है प्रदेश में तेजी से बढ़ती बाघों की संख्या और कम होता जंगल। इसकी वजह से प्रदेश में इनके बीच भूख मिटाने के लिए शिकार को लेकर संघर्ष की घटनाओं में लगातार होने वाली वृद्धि। प्रदेश में लगातार संघर्ष से कई बाघों की मृत्यु हो चुकी है। तेजी से कम होते जा रहे जंगलों और शिकार की कमी की वजह से अब उन्हें आबादी वाले इलाकों तक में जाना पड़ रहा है। जहां इनका सामना इंसानों व मवेशियों से हो रहा है। कई मामलों में घायल लोगों की मौत हो चुकी है। इस स्थिति को नियंत्रित करने के लिए एक से दूसरे टाइगर रिजर्व और बाघ मूवमेंट क्षेत्रों को जोड़ने वाले सात कॉरिडोर मजबूत किए जाने थे, लेकिन उन पर कोई कार्रवाई अब तक होती नजर ही नहीं आ रही है। इस बीच बाघों की मौत की खबरें जरुर बीच-बीच में आती रहती हैं।
बांधवगढ़ रिजर्व में बिगड़ रही स्थिति
बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व के कोर क्षेत्र में बाघों के बीच संघर्ष की स्थिति बन रही है। बीते पांच वर्ष में 21 से ज्यादा घटनाएं हो चुकी हैं। इनमें छह बाघों की मौत हो चुकी है। विशेषज्ञ पुष्पेंद्र नाथ द्विवेदी के मुताबिक बाघ, तेंदुओं के मूवमेंट से जुड़े सामान्य वन क्षेत्र भी अछूते नहीं है। प्रधान मुख्य वन संरक्षक वन्य प्राणी असीम श्रीवास्तव के अनुसार प्रदेश में सात से ज्यादा कॉरिडोर की संभावनाएं हैं। वैज्ञानिक अध्ययन के बाद रिपोर्ट के आधार पर इन्हें मजबूत करेंगे। एनटीसीए यानी राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण के मुताबिक साल 2023 में मध्यप्रदेश में 41 बाघों की मौत हुई है, जो साल 2022 में हुई मौतों से 30 फीसदी ज्यादा है। मध्यप्रदेश से ज्यादा सिर्फ महाराष्ट्र में 44 बाघों की मौत हुई है। मतलब इस दर्दनाक आंकड़ों की सूची में मध्यप्रदेश दूसरे पायदान पर है. परेशान करने वाली बात ये है कि इन 41 में से 30 बाघों की मौत टाइगर रिजर्व में हुई है। सबसे ज्यादा 13 मौतें बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व, 8 कान्हा टाइगर रिजर्व और इसके बाद 4 मौतें पन्ना टाइगर रिजर्व में हुई हैं. जिन बाघों की मौत हुई है उनमें 19 नर, 15 मादा हैं 7 के बारे में जानकारी नहीं मिल पाई।
भोजन व इलाके के लिए संघर्ष…
प्रदेश में अब बाघों की संख्या 526 से बढक़र 785 हो चुकी है। बाघों की संख्या के साथ ही अन्य तरह के वन्यप्राणियों की संख्या भी बढ़ी है, जबकि वन क्षेत्र में कमी आयी है। इस मामले में विशेषज्ञों का कहना है कि भोजन के लिए तो संघर्ष हो ही रहा है, साथ ही बाघ अपने विचरण क्षेत्र में दूसरे बाघ या तेंदुए को पसंद नहीं करता। इसकी वजह से भी संघर्ष होता है। यही नहीं बाघों द्वारा अपना रहवास क्षेत्र भी बनाया जाता है, जब एक बाघ दूसरे के क्षेत्र में घुसता है तो भी उनमें संषर्घ होता है। इसकी वजह है वन क्षेत्रों में लोगों का बढ़ता दखल।