प्रभारी के नाम से कर्मचारियों को मिलेगी मुक्ति

  • दो की जगह एक ही मिलेगी पदोन्नति
  • गौरव चौहान
मोहन यादव

नौ साल बाद भले ही मोहन यादव सरकार ने कर्मचारियों को  पदोन्नति पर लगी रोक हटाने की घोषणा कर दी है, लेकिन इसके बाद भी करीब पौने तीन लाख कर्मचारियों को एक पदोन्नति से वंचित रहना पड़ेगा। इसकी वजह है सरकार ने फिल्हाल एक पदोन्नति देने का तय किया है, जबकि करीब नौन्े तीन लाख कर्मचारी ऐसे हैं, जो बीते नौ सालों में दो-दो पदोन्नति के लिए पात्र हो चुके हैं। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने कर्मचारियों को प्रमोशन देने के लिए जल्द कैबिनेट बैठक में निर्णय लेने की बात कही है। इससे नौ साल से पदोन्नति की राह देख रहे कर्मचारियों में गजब का उत्साह है। इस फैसले से करीब पौने पांच लाख अधिकारी कर्मचारी लाभान्वित होंगे। हालांकि सरकार तो दोनों पदोन्नति देना चाहती है , लेकिन उसके पास इतने पद ही नहीं हैं कि वह दे सके। फिलहाल करीब सवा लाख पद रिक्त होने के कारण इतने ही पात्र कर्मचारियों को दो पदोन्नतियां दी जा  सकती हैं, लेकिन इससे उन कर्मचारियों में असंतोष बढऩे के आसार हैं, जिन्हें पात्र होते हुए भी दो पदोन्नतियां नहीं मिलेंगी। एक बार पदोन्नति का रास्ता साफ होने पर आने वाले साल में पात्र कर्मचारियों को एक और पदोन्नति दी जा सकती है। ऐसे में दूसरी पदोन्नति के लिए कर्मचारियों को अभी कम से कम एक साल का इंतजार करना होगा।
 2016 से लगी हुई है पदोन्नति पर रोक
मप्र में अधिकारी, कर्मचारियों की पदोन्नति पर पिछले नौ साल से रोक लगी है। मप्र हाईकोर्ट ने 30 अप्रैल, 2016 को मप्र लोक सेवा (पदोन्नति) अधिनियम-2002 खारिज कर दिया था। कोर्ट ने 2002 के बाद पदोन्नति पाने वाले आरक्षित वर्ग के कर्मचारियों को पदावनत करने का आदेश दिया था। राज्य सरकार ने इस फैसले के खिलाफ 12 मई, 2016 को सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की। मामला अभी सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन है। पदोन्नति के इंतजार में नौ साल में करीब एक लाख अधिकारी-कर्मचारी सेवानिवृत्त हो चुके हैं। तत्कालीन शिवराज सरकार ने अधिकारी-कर्मचारियों को उच्च पद का प्रभार देकर पदनाम देने को लेकर दिसंबर, 2020 में उच्च स्तरीय समिति का गठन किया।
पिछले माह से तेज हुई पदोन्नति की मांग
पदोन्नति का मामला सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन होने के बाद भी पिछले वर्षों में विभिन्न विभागों मे कर्मचारियों को पदोन्नति मिलती रही, इनमें वे कर्मचारी शामिल है, जो हाईकोर्ट चले गए थे। पिछले महीने हाईकोर्ट के आदेश पर विधि एवं विधायी कार्य विभाग में 78 कर्मचारियों को पदोन्नति दी गई थी। ऐसे में नगरीय विकास एवं आवास विभाग में कुछ कर्मचारियों को प्रमोशन मिल था। इसके बाद विभिन्न कर्मचारी संगठनों ने एकजुट होकर सरकार पर सभी विभागों में कर्मचारियों को पदोन्नति दिए जाने की मांग तेज कर दी थी।
एक साल से जारी था मंथन  
अधिकारियों की माने तो मुख्यमंत्री डॉ. यादव के निर्देश पर सामान्य प्रशासन विभाग द्वारा बीते एक साल से कर्मचारियों को पदोन्नति दिए जाने के लिए मंथन किया जा रहा था। इस दौरान अधिकारियों ने पदोन्नति के कुछ विकल्पों का प्रारुप तैयार किया था। इसमें एक विकल्प पदोन्नति में मेरिट के साथ वरिष्ठता को प्राथमिकता देने का है। इसमें विभागीय पदोन्नति समिति (डीपीसी) की बैठक कर पदोन्नति के आदेश जारी होंगे। इयी तरह से उसमें दूसरा प्रारुप वर्टिकल रिजर्वेशन पर आधारित है। इसमें कर्मचारी जिस श्रेणी (एससी, एसटी, सामान्य) में एक साथ नियुक्त हुआ है, वह प्रमोशन में भी उसी श्रेणी में आगे बढ़ेगा। जितने पद रिक्त होंगे, उतने पद उसी वर्ग में बांटे जाएंगे। अन्य वर्ग के कर्मचारी उन पदों पर दावा नहीं कर सकेंगे, भले पद रिक्त रह जाएं।
नहीं पड़ेगा खजाने पर भार  
कर्मचारियों को पदोन्नति देने से सरकारी खजाने पर भी कोई अतिरिक्त भार नहीं आने वाला है। इसकी वजह है अधिकांश कर्मचरियों को वरिष्ठता के हिसाब से समयमान वेतनमान का लाभ पहले से ही मिल चुका है।  

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