
- सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद पहली बार हो रही मंत्री समूह की बैठक
भोपाल/प्रणव बजाज/बिच्छू डॉट कॉम। मध्यप्रदेश में पदोन्नति में आरक्षण को लेकर आए सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद अब सरकारी कर्मचारियों की पूरी नजरें प्रदेश सरकार पर लग गई हैं। इस आदेश के बाद आज मंत्री समूह की पहली बैठक गृह मंत्री नरोत्तम मिश्रा की अध्यक्षता में होने जा रही है। माना जा रहा है कि आज मंत्री समूह बैठक में प्रस्ताव तैयार कर मुख्यमंत्री को सौंप सकता है। यही वजह है कि कर्मचारी आज की बैठक को बेहद महत्वपूर्ण मानकर चल रहे हैं। दरअसल बीते पौने छह सालों में प्रदेश के करीब 60 हजार से अधिक कर्मचारी बिना पदोन्नति के सेवानिवृत्त होने को मजबूर हो चुके हैं। अब अगर प्रदेश सरकार पदोन्नति के मामले को लेकर 24 फरवरी से सुप्रीम कोर्ट में शुरू होने जा रही राज्यवार सुनवाई के बाद फैसले का इंतजार करती है, तो कर्मचारियों को एक बार फिरइस मामले में लंबा इंतजार करना पड़ सकता है। इसकी वजह से हजारों कर्मचारियों को आगे भी बगैर पदोन्नति के ही सेवानिवृत्त होने को मजबूर रहना पड़ेगा। इस बीच अगर सरकार बीच का रास्ता निकालकर पदोन्नति देती है, तो कर्मचारियों को बड़ी राहत मिल जाएगी। दरअसल पदोन्नति में आरक्षण मामले पर फैसला सुनाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में बीते सप्ताह मुद्दे तय कर दिए हैं। अब इन्हीं मुद्दों को आधार बनाकर केंद्र और राज्यों की सरकार को पदोन्नति को लेकर निर्णय लेना है, लेकिन इस मामले में मध्य प्रदेश के अधिकारियों और कर्मचारियों को पदोन्नति के लिए अभी लंबा इंतजार करना पड़ सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने अनुसूचित जाति (एससी) एवं अनुसूचित जनजाति (एसटी) के डाटा को लेकर जो पैमाना तय किया है। उसके हिसाब से मध्य प्रदेश सरकार की भले ही पूरी तैयारी हो , लेकिन अब तक राज्य को लेकर फैसला नहीं आया है। अब सुप्रीम कोर्ट 24 फरवरी से राज्यवार सुनवाई शुरू करने वाला है, जिसमें सबसे पहले केंद्र सरकार के मामलों की सुनवाई की जाएगी इसके बाद राज्यों की बारी आएगी। इस दौरान मप्र की बारी आने पर प्रदेश का डाटा कोर्ट में पेश किया जाएगा। जिसके विश्लेषण के बाद प्रदेश के संदर्भ में फैसला सुनाया जाएगा।
अब तक हो चुकी हैं कई बैठकें
प्रदेश के अधिकारियों-कर्मचारियों का पौने छह साल बाद भी पदोन्नति का इंतजार खत्म होने का नाम नहीं ले रहा है। इस मामले में सरकार की भी अधिक रुचि नही है। यही वजह है कि अब तक इस मामले में कोई भी फैसला सरकार नहीं कर सकी है। इस मामले में कर्मचरियों का बेहद दबाव पड़ने की वजह से बीते साल शिव सरकार ने पदोन्नति में आरक्षण के मसले पर गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा की अध्यक्षता में मंत्री समूह का गठन किया है। मंत्री समूह की कई दौर की बैठकें हो चुकी हं , लेकिन इन बैठकों में अब तक कोई निर्णय नहीं हो सका। दरअसल मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने वर्ष 2016 में मप्र लोक सेवा (पदोन्नति) नियम 2002 खारिज किया है। प्रदेश के कर्मचारी लगभग पौने छह साल से पदोन्नति का इंतजार कर रहे हैं। इस अवधि में 60 हजार से अधिक कर्मचारी सेवानिवृत्त हो चुके हैं। इनमें से करीब 32 हजार कर्मचारियों को बगैर पदोन्नति के सेवानिवृत्त होना पड़ा है। सरकार ने वर्ष 2018 में कर्मचारियों की सेवा की अवधि दो साल बढ़ाकर 62 साल कर दी थी। वरना, सेवानिवृत्त होने वालों का आंकड़ा 75 हजार के पार हो जाता।
क्या कहते हैं राज्य सरकार के वकील
सुप्रीम कोर्ट में राज्य सरकार के वकील मनोज गोरकेला कहते हैं कि सरकार ने जिन मुद्दों की ओर सुप्रीम कोर्ट का ध्यान दिलाया था। उन पर स्थिति अब साफ हो गई है। अब पदोन्नति के नए नियम बनाने की भी जरूरत नहीं है। वे कहते हैं कि कोर्ट ने एससी-एसटी के जिस तरह के डाटा की बात की है, प्रदेश में वह तैयार है। हमारे पास संवर्गवार, वर्गवार और विभागवार डाटा उपलब्ध है। बस अब राज्य के संदर्भ में कोर्ट के फैसले का इंतजार है। गोरकेला कहते हैं कि 24 फरवरी से राज्यवार सुनवाई शुरू होगी, तब प्रदेश का डाटा कोर्ट में रखा जाएगा। उन्होंने बताया कि कोर्ट ने डाटा या रिव्यू का समय तय करने का दायित्व राज्यों की सरकार पर छोड़ दिया है। वर्ष 2006 में आए एम. नागराज फैसले को आधार बनाकर कुछ राज्यों में वर्ष 1994 वालों को पदावनत कर दिया था। उन्हें भी राहत मिल गई है।