
- बिजली उपभोक्ताओं से अधिक वसूली पर नियामक आयोग सख्त
भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम। मप्र देश के सबसे अधिक बिजली उत्पादक राज्यों में शामिल है। लेकिन विडंबना यह है कि यहां के उपभोक्ताओं को कंपनियां विभिन्न तरह का घाटा दिखाकर महंगी बिजली देती हैं। इसके अलावा बिजली कंपनियां उपभोक्ताओं से एफपीपीएएस के नाम पर भी हर साल अरबों रूपए की वसूली करती हैं। एक बार फिर से बिजली कंपनियों ने एफपीपीएएस वसूलने के लिए मप्र विद्युत विनियामक आयोग में याचिका दायर की है। इस पर आयोग ने सख्ती दिखाते हुए बिजली कंपनियों को निर्देश दिया है कि वे उपभोक्ताओं के 376 करोड़ रूपए लौटाएं जो उन्होंने अधिक वसूली की है। जानकारी के अनुसार, बिजली कंपनियां उपभोक्ताओं से एफपीपीएएस के नाम पर 2,137.35 करोड़ रुपए वसूलना चाहती हैं। इसको लेकर कंपनियों ने मप्र विद्युत विनियामक आयोग में याचिका दायर की थी। आयोग ने इस याचिका को खारिज कर दिया है। वहीं आयोग ने कंपनियों द्वारा 376 करोड़ की अधिक वसूली की सही ठहराया है। मप्र की बिजली कंपनियों और एमपीपीएमसीएल ने दावा किया है कि वित्तीय वर्ष 2023-24 में उन्हें ईधन और बिजली खरीद की लागत में 3,225.85 करोड़ रुपये की अतिरिक्त बढ़ोतरी का सामना करना पड़ा, जबकि वे उपभोक्ताओं से सिर्फ 1,088.50 करोड़ रुपये ही एफपीपीएएस के रूप में वसूल पाई। इस आधार पर कंपनियों ने आयोग से 2137.35 करोड़ रुपये की और वसूली की अनुमति मांगी, लेकिन मप्र विद्युत नियामक आयोग ने कंपनियों का यह तर्क मानने से इंकार कर दिया।
उपभोक्ताओं से 376.28 करोड़ की अधिक वसूली
मप्र विद्युत नियामक आयोग ने अपने 28 जून 2024 के आदेश में पाया कि कंपनियों ने उपभोक्ताओं से 376.28 करोड़ रुपये की अधिक वसूली की है। इसलिए यह राशि जुलाई 2024 से मार्च 2025 तक किस्तों में लौटाने का निर्देश दिया गया। बिजली कंपनियों ने इस आदेश की समीक्षा मांगते हुए कहा कि आयोग ने वास्तविक लागत वृद्धि की नजरअंदाज किया है, लेकिन आयोग ने साफ कर दिया कि टू-अप प्रक्रिया में लागत और एफपीपीएएस वसूली का पूरा समायोजन पहले ही किया जा चुका है। सिर्फ 11.69 करोड़ रुपये कैरीइंग कॉस्ट ही उपभोक्ताओं को लौटाना शेष है। याचिकाकर्ताओं बिजली कंपनियों ने दलील दी थी कि यदि उपभोक्ताओं से अधिक वसूली का रिफंड किया जाना है तो वह व्यक्त्तिगत उपभोक्ताओं के खातों में समायोजित होना चाहिए, लेकिन आयोग के आदेश में इसके लिए कोई स्पष्ट कार्यप्रणाली नहीं दी गई, जिससे आदेश लागू करना मुश्किल हो जाएगा। आयोग ने इस पर कहा कि 11.69 करोड़ रुपये कैरीइंग कॉस्ट की राशि पहले ही एआरआर में समायोजित कर उपभोक्ताओं को लौटाने का निर्देश दिया जा चुका है। इसलिए इस मुददे पर दोबारा समीक्षा की आवश्यकता नहीं है। कंपनियों ने एफपीपीएएस से जुड़े प्रावधानों में संशोधन की भी मांग की, पर आयोग ने साफ किया कि यह विषय समीक्षा याचिका में नहीं आता। आयोग ने यह भी नोट किया कि ऊर्जा मंत्रालय सीईए के माध्यम से एक पीपीएएस स्थिरीकरण फंड और नियम-14 में संशोधन पर विचार कर रहा है। ऐसे में भविष्य में नियमों में बदलाव होने पर राज्य आयोग भी संशोधन कर सकता है।
कंपनियों का दावा कम हुई वसूली
आयोग ने दिनांक 28 जून 2024 को वित्त वर्ष 2023-24 के लिए फ्यूल एंड पावर घर्वेस एडजस्टमेंट सरचार्ज का आदेश पारित किया था। इस आदेश में आयोग ने पाया कि कंपनियों द्वारा उपभोक्ताओं से 376.28 करोड़ रुपये की अधिक वसूली हुई है और उसे जुलाई 2024 से मार्च 2025 तक समान मासिक किस्तों में उपभोक्ताओं की लौटाने का निर्देश दिया। इसके विरुद्ध याचिकाकर्ताओं ने समीक्षा याचिका दायर की, जिसमें आयोग के आदेश को त्रुटिपूर्ण और वित्तीय दृष्टि से हानिकारक बताया गया। कंपनियों का कहना था कि वित्त वर्ष 2023-24 में उन्हें 3,225.85 करोड़ रु. की अतिरिक्त लागत का सामना करना पड़ा, जबकि उपभोक्ताओं से एफपीपीएएस के माध्यम से केवल 1,088.50 करोड़ रुपए ही वसूले जा सके। इस आधार पर कंपनियों ने कहा कि उन पर 2.137.35 करोड़ रुपये की अंडर-रिकवरी हुई है, न कि अधिक वसूली।