
- मप्र में निगम-मंडलों में इस साल भी नहीं होगी राजनीतिक नियुक्ति
गौरव चौहान/बिच्छू डॉट कॉम। पिछले 22 महीने से निगम-मंडल-बोर्ड और प्राधिकरणों में राजनीतिक नियुक्ति की आस लगाए बैठे भाजपा के नेताओं की मंशा इस साल भी पूरी होती नहीं दिख रही है। इसकी वजह है बिहार विधानसभा चुनाव। सूत्रों का कहना है कि भाजपा आलाकमान का इस समय पूरा फोकस बिहार चुनाव पर है। बिहार चुनाव में मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव सहित भाजपा के अन्य नेताओं को सक्रिय किया जाएगा। ऐसे में संभावना जताई जा रही है कि अब बिहार चुनाव के बाद ही मप्र में राजनीतिक नियुक्तियां की जाएंगी।
गौरतलब है कि मध्यप्रदेश की राजनीति में मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव के हर दिल्ली दौरे के बाद यह कयास लगने लगते हैं कि राजनीतिक नियुक्तियों की प्रक्रिया जल्द शुरू होगी। दरअसल, पिछले दिनों ओबीसी आयोग के अध्यक्ष पद पर रामकृष्ण कुसमारिया की नियुक्ति हुई है। इसके बाद अब निगम-मंडल, बोर्ड, आयोग और प्राधिकरणों में राजनीतिक नियुक्तियों की प्रक्रिया को लेकर हलचल तेज हो गई है। चर्चा थी कि खुद मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव और प्रदेश अध्यक्ष हेमंत खंडेलवाल दिल्ली से हरी झंडी मिलने के बाद अनुमोदित सूची में शामिल नामों की नियुक्तियों के आदेश जारी करेंगे। लेकिन फिलहाल ऐसा कुछ होता नहीं दिख रहा है। ऐसे में अब कहा जा रहा है कि बिहार चुनाव के कारण राजनीतिक नियुक्तियों पर ब्रेक लग गया है।
लंबे समय से खाली हैं पद
गौरतलब है कि वर्तमान में राज्य में निगम-मंडल, बोर्ड और आयोगों के लगभग तीन दर्जन से अधिक अध्यक्ष और उपाध्यक्ष के पद रिक्त हैं। डॉ. मोहन यादव ने लोकसभा चुनाव से पहले 45 निगम-मंडलों और बोर्डों में की गई पूर्ववर्ती नियुक्तियों को रद्द कर दिया था। तब से यह पद रिक्त हैं। गौरतलब है कि निगम मंडलों में नियुक्ति को लेकर भाजपा में कई दावेदार सक्रिय हैं। वे इन संस्थाओं में जल्द नियुक्त चाहते हैं। मुख्यमंत्री इन नियुक्तियों को लेकर संगठन नेताओं से चर्चा भी कर चुके हैं। माना जा रहा था कि दीपावली के पहले निगम मंडलों में नियुक्तियां कर दी जाएगी पर संगठन के सूत्र बताते हैं कि अब बिहार विधानसभा का चुनाव निपटने के बाद ही इन नियुक्तियों पर विचार किया जाएगा।
बिहार में लगेगी नेता-मंत्रियों की ड्यूटी
सूत्रों के अनुसार, नेता-मंत्रियों की ड्यूटी प्रदेश में निगम मंडलों में राजनीतिक नियुक्तियों की प्रक्रिया एक बार फिर थमने के आसार है। केन्द्रीय संगठन अब इस तरह की नियुक्तियां बिहार विधानसभा चुनाव के बाद करना चाहता है। प्रदेश के कई नेताओं की ड्यूटी बिहार विधानसभा चुनाव में लगाई गई है। इसके अलावा जल्द ही कुछ नेताओं की सूची तैयार हो रही है जिन्हें बिहार भेजा जाएगा। इनमें मंत्रियों से लेकर सांसद, विधायक और पार्टी पदाधिकारी शामिल हैं। बताया जा रहा है कि मंत्री, विधायकों के अलावा संगठन से जुड़े कई नेताओं को भी बिहार भेजा जाना है। इनमें कई पूर्व सांसद, पूर्व विधायक और पूर्व संभागीय संगठन मंत्री शामिल हैं। इनमें से कई नेताओं के नाम निगम मंडल में नियुक्त होने वाले नेताओं की उस सूची में शामिल हैं जिन नामों पर विचार किया जाना है। संगठन का मानना है कि यदि इस दौर में निगम मंडलों में नियुक्ति प्रक्रिया शुरू की गई तो कई नेता अपनी ड्यूटी छोडकऱ अपने राजनीतिक आकाओं के पास सिफारिश के लिए पहुंच सकते हैं। ऐसे में चुनाव का महत्वपूर्ण काम प्रभावित हो सकता है। संगठन से मिली जानकारी के मुताबिक बिहार में विधानसभा चुनाव को लेकर आज बड़ी बैठक बुलाई गई है। इसमें हिस्सा लेने के लिए प्रदेश सरकार के वरिष्ठ मंत्री कैलाश विजयवर्गीय, प्रहलाद पटेल, विश्वास सारंग और प्रदेश संगठन महामंत्री हितानंद को बुलाया गया है। सभी नेता आज सुबह तक पटना पहुंचेंगे। माना जा रहा है कि बिहार विधानसभा चुनाव के प्रभारी बनाए गए केन्द्रीय मंत्री धर्मेन्द्र प्रधान यह बैठक लेंगे। भाजपा ने यहां प्रधान को चुनाव प्रभारी, केन्द्रीय मंत्री सीआर पाटिल और यूपी के डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य को सह चुनाव प्रभारी बनाया है।
बिहार में मप्र का दांव
बिहार की राजनीति के केंद्र में हमेशा से जाति रही है। प्रदेश की आबादी में यादव समुदाय करीब 14 प्रतिशत है। जो अन्य किसी भी जाति से अधिक है। जाहिर है कि बिहार की राजनीति इसी जाति के इर्द गिर्द मंडराती है। ऐसे में भाजपा की रणनीति के अनुसार बिहार में यादवी संग्राम में पार्टी मप्र के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव को फ्री हैंड देकर उतारेगी। इसके लिए डॉ. मोहन ने अभी से बिहार में सक्रियता बढ़ा दी है। बिहार विधानसभा चुनाव का बिगुल अभी भले ही नहीं बजा है, लेकिन पार्टियां चुनावी रणनीति बनाने में जुट गई हैं। बिहार में इस बार एनडीए और इंडिया ब्लॉक के बीच सीधा मुकाबला है। ऐसे में दो धड़े चुनाव प्रचार में अपने-अपने रणनीतिकारों और स्टार प्रचारकों को बड़ी जिम्मेदारी देने की तैयारी कर रहे हैं। ऐसे में एनडीए और इंडिया ब्लॉक की नजर मप्र पर है। दरअसल, बिहार चुनाव में मप्र के नेता गेमचेंजर बन सकते हैं। इसलिए मप्र के नेताओं को जातीय समीकरणों के अनुसार, क्षेत्रवार जिम्मेदारी देने की रणनीति पर काम हो रहा है। गौरतलब है कि बिहार में विधानसभा चुनाव अक्टूबर-नवंबर में होने वाले हैं, और वर्तमान में नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार सत्ता में है। हालांकि, महागठबंधन (आरजेडी, कांग्रेस आदि) भी जोरदार चुनौती दे रहा है। मप्र की भागीदारी से भाजपा को अपेक्षा है कि यादव समुदाय के अलावा अन्य ओबीसी वर्गों को भी जोड़ा जा सके। बिहार की सियासत पर जैसे-जैसे चुनावी रंग गहराता जा रहा है, वैसे-वैसे दूसरे राज्यों के बड़े नेता भी वहां की जमीन पर उतरने लगे हैं। मप्र इस बार खास में है, क्योंकि यहां के ओबीसी चेहरे चुनावी मैदान में अहम भूमिका निभाने वाले है। भाजपा और कांग्रेस दोनों ने प्रचार और प्रबंधन की कमान अपने-अपने भरोसेमंद नेताओं को सौंपने की रणनीति बनाई है।
मंत्रियों और विधायकों को भी मिलेगी बड़ी जिम्मेदारी
भाजपा प्रदेश के मंत्रियों और विधायकों को भी बिहार चुनाव में जिम्मेदारियां सौंपेगी, ताकि विधानसभाओं को जिताने के लिए मजबूत रणनीति बनाई जा सके। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव, जो खुद यादव समुदाय से ताल्लुक रखते हैं, बिहार में यादव वोट बैंक को साधने के लिए भाजपा की प्रमुख कड़ी बन चुके हैं। बिहार में यादवों की आबादी लगभग 14 प्रतिशत है, जो पारंपरिक रूप से राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) के समर्थक रहे हैं। हाल के जातीय जनगणना के आंकड़ों के बाद भाजपा इस वोट बैंक में सेंध लगाने की रणनीति पर काम कर रही है। सूत्रों का कहना है कि डॉ. मोहन यादव के बिहार दौरे लगातार होंगे। इन दौरों के दौरान वे भाजपा के सांसदों, विधायकों, पूर्व नेताओं और प्रदेश पदाधिकारियों के साथ बैठकें करेंगे। इन बैठकों में लोकसभा चुनाव के अनुभवों के साथ-साथ बिहार विधानसभा चुनाव की रणनीति पर चर्चा होगी। विशेष रूप से, यादव समुदाय के नेताओं और कार्यकर्ताओं से मुलाकातें बढ़ाई जाएंगी, ताकि पार्टी का आधार मजबूत हो सके।