नकुल और बंटी की जगह नाथ-कैलाश के बीच चुनावी जंग!

  • गौरव चौहान
चुनावी जंग

पहले चरण की छह सीटों में से सर्वाधिक हॉट सीट छिंदवाड़ा बन चुकी है। इस सीट पर कांग्रेस के नकुलनाथ और भाजपा के बंटी साहू भले ही अपने -अपने दल के प्रत्याशी हैं, लेकिन वास्तविक चुनावी लड़ाई  कमलनाथ व कैलाश विजयवर्गीय के बीच ही हो रही है। यह ऐसी सीट है जो कमलनाथ की व्यक्तिगत सीट मानी जाती है। इसकी वजह है इस सीट पर दशकों से नाथ या उनके परिवार का सदस्य ही सांसद चुना जाता है। यही नहीं नाथ की पंसद के ही पार्टी नेता विधायक बनते आ रहे हैं। हाल ही में हुए विधानसभा चुनाव में भी इस सीट के तहत आने वाली सभी सातों विधानसभा सीटों पर कांग्रेस के ही प्रत्याशी जीते थे। इसके पहले के चुनाव में भी यही स्थिति रही थी। यही वजह है कि इस बार भाजपा ने इस सीट को अपने निशाने पर लिया हुआ है। इस सीट पर कमल खिलाने के लिए भाजपा ने बहुत पहले से ही तैयारी शुरू कर दी थी। अब नामांकन होते ही भाजपा व कांग्रेस दोनों ही दलों ने इस सीट पर पूरी ताकत लगा दी है। कांग्रेस की तरफ से जहां खुद कमलनाथ मैदानी मोर्चा सम्हाले हुए हैं , तो वहीं भाजपा की तरफ से यहां की जिम्मेदारी मंत्री कैलाश विजयवर्गीय को दी गई है। उनकी रणनीति फिलहाल नाथ पर भारी पड़ती दिख रही है। इसकी वजह है उनके बेहद करीब कांग्रेस विधायक सहित कई नेताओं का इस्तीफा कराकर उन्हें भाजपा में ले आना है। अब कहा जा रहा है कि जल्द ही छिंदवाड़ा महापौर भी कांग्रेस छोडक़र भाजपा में आ सकते हैं। इसके लिए वृहद स्तर पर प्रयास जारी हैं। दरअसल इसके पीछे की वजह है, जनता के बीच यह मैसेज देना कि कांग्रेस अब कमजोर हो गई है। कांग्रेस की अगुवाई खुद पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ कर रहे हैं। छिंदवाड़ा को कमलनाथ का गढ़ कहा जाता है। कांग्रेस अपने पुराने नेताओं और खासतौर पर मैदानी कार्यकर्ताओं को साधने में लगी है, जिनके सहारे पार्टी अब तक फतह हासिल करती रही है। कुल मिलाकर कमतर दिखने की कोशिश दोनों प्रमुख दल और उनके नेता नहीं कर रहे हैं।
महज एक बार ही मिल सकी जीत
साल 1996 के एक मौके को छोड़ दिया जाए, तो भाजपा आज तक छिंदवाड़ा लोकसभा सीट पर फतह हासिल नहीं कर पाई है। तब भाजपा प्रत्याशी व पूर्व मुख्यमंत्री सुंदरलाल पटवा चुनाव जीतने में सफल हुए थे। मध्यप्रदेश में साल 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने 29 में से 28 सीटों पर जीत हासिल कर ली थी, लेकिन छिंदवाड़ा फतह करने में तब भी चूक गई थी। भाजपा राम और मोदी लहर के साथ डबल इंजन सरकार के विकास और जनहितैषी काम के दम पर छिंदवाड़ा लोकसभा सीट पर कब्जा करना चाहती है। इसके लिए भाजपा ने पूरी तैयारी भी की है, लेकिन बीस साल की राज्य सरकार और दस साल की केंद्र सरकार की एंटी इनकमबॅसी के साथ महंगाई और बेरोजगारी जैसे मुद्दे भाजपा के मुंह बाएं खड़े हैं। बस इसी से कांग्रेस को सबसे बड़ी संजीवनी मिल रही है। भाजपा भी जानती है कि महंगाई और बेरोजगारी जनता के बीच बड़े मुद्दे हैं। इसलिए अब वह कांग्रेस के अंदर तोडफ़ोड़ में लग गई है। पहले तमाम नेताओं को तोडऩे के साथ अब अमरवाड़ा से कांग्रेस के विधायक रहे कमलेश शाह को भी अपने पाले में कर लिया है। शाह ने विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा देकर भाजपा का दामन थाम लिया है। शाह का प्रोफाइल बड़ा है, क्योंकि उनका ताल्लुक राजपरिवार से है। कांग्रेस नेताओं के टूटने के जरिए भाजपा जनता के बीच कांग्रेस के अब कमजोर हो जाने का मैसेज देना चाहती है। इससे जनमानस में यह छवि बनेगी कि कांग्रेस को वोट देने का कोई मतलब नहीं है। कांग्रेस भी भाजपा की इस चाल से अच्छी तरह वाकिफ है।
छिंदवाड़ा में कमलनाथ का खुद का अच्छा खासा प्रभाव है। खास बात यह कि तकरीबन दो महीने से कमल नाथ छिंदवाड़ा से बाहर नहीं निकल रहे हैं। शायद पहले ऐसा कभी नहीं रहा होगा। वे अपने खुद के चुनाव में भी इतना वक्त छिंदवाड़ा को नहीं देते थे। वे दूसरे क्षेत्रों में प्रचार करने के लिए चले जाते थे। साल 2023 में हुए विधानसभा चुनाव के लिहाज से कांग्रेस का पलड़ा ज्यादा मजबूत है। क्योंकि तब भाजपा ने प्रदेश में बंपर जीत हासिल की थी। छिंदवाड़ा लोकसभा सीट के अधीन सात विधानसभा सीटें आती हैं। इनमें अमरवाड़ा, जुन्नारदेव, चौरई, सौंसर, छिंदवाड़ा, परासिया और पांडुर्णा शामिल हैं। सातों सीटों पर कांग्रेस को जीत हासिल हुई है। मतदान में अभी तकरीबन बीस दिन का वक्त है। ऐसे में सबकी नजर छिंदवाड़ा हॉट सीट पर है। आने वाला वक्त बताएगा कि भाजपा दूसरी बार सीट छीनने में सफल होती है अथवा कांग्रेस अपना गढ़ बचाने में कामयाब रहती है।
पहचान सबसे बड़ा चुनावी मुद्दा
छिंदवाड़ा की पहचान अब सबसे बड़ा मुद्दा बन गया है। प्रचार के दौरान कमलनाथ इस मुद्दे को जनता के बीच उठा रहे हैं। वे भाजपा सहित तमाम राजनीतिक दलों से सवाल भी पूछ रहे हैं कि छिंदवाड़ा को पहचान किसने दिलाई। नाथ खुद जवाब भी देते हैं। कहते हैं कि साल 1980 में जब मैं चुनाव लडऩे के लिए आया था, तब छिंदवाड़ा में कुछ भी नहीं था। आज छिंदवाड़ा में सब-कुछ है। वे कहते हैं कि भाजपा बताए कि उसकी बीस साल की राज्य सरकार और दस साल की केंद्र सरकार ने छिंदवाड़ा के लिए क्या किया है। भाजपा का कहना है कि नाथ के कारण छिंदवाड़ा विकास में पीछे रह गया है।
विजयवर्गीय की रणनीति
इस सीट का जिम्मा पार्टी ने अपने चुनावी रणनीतिकार कैलाश विजयवर्गीय को सौंप रखा है। जिसमें वे फिलहाल सफल होते नजर आ रहे हैं। वे लगातार कांग्रेस नेताओं को भाजपा में लाने में तो लगे हुए हैं, साथ ही चुनाव प्रचार से लेकर जन संम्पर्क तक की रणनीति भी बना रही हैं।

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