संत रविदास यात्रा से 84 सीटों को साधने की कवायद

संत रविदास यात्रा

गौरव चौहान/बिच्छू डॉट कॉम। प्रदेश में तीन माह बाद होने वाले विधानसभा चुनाव में जीत दर्ज करने के लिए भाजपा का पूरा फोकस आरक्षित वर्ग के मतदाताओं पर बना हुआ है। इसकी वजह है प्रदेश में इस समय दलित राजनीति का केन्द्र में होना। भाजपा  के साथ ही कांग्रेस का भी फोकस इसी वर्ग पर है। यही वजह है कि प्रदेश की भाजपा सरकार हो या फिर उसका संगठन दोनों ही मिलकर अनुसूचित जाति के वोटर्स को साधने के लिए हर संभव प्रयास कर रहे हैं। इसी कड़ी में अब 25 जुलाई से प्रदेश में एक साथ पांच स्थानों से संत रविदास मंदिर निर्माण यात्रा निकालने की तैयारी कर ली गई है। यह यात्राएं प्रदेश के नीमच, मांडव, सिंगरौली, बालाघाट और श्योपुर से निकलेगी और 12 अगस्त को सागर पहुंचेगी। इस दौरान यह यात्राएं प्रदेश केे आधा सैकड़ा जिलों से होकर गुजरेगी। यात्रा में संत रविदास का चित्र, पादुका एवं कलश रहेगा, जिनका पूजन भी किया जाएगा। इस दौरान शामिल रहने वाले रथ पर सामाजिक समरसता की सूक्तियां भी लिखी होंगीं। इस दौरान एक मुट्टी मिट्टी और नदियों का जल एकत्रित किया जाएगा। जिसका उपयोग मंदिर निर्माण में किया जाएगा। इस यात्रा के सुमचित प्रबंधन के लिए प्रदेश सरकार ने राज्य स्तर पर एक समिति भी बनाई है। इसके अलावा जिला स्तर पर प्रभारी मंत्री की अध्यक्षता में आयोजन समिति इस यात्रा की व्यवस्थाओं का जिम्मा उठाएगी। गौरतलब है कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने इसी साल सात फरवरी को सागर मैं संंत रविदास महाकुंभ में 100 करोड़ रुपए की लागत से संत रविदास का विशाल और भव्य मंदिर बनाने की घोषणा की थी। यह मंदिर सागर जिले के बड़तुमा में बनाया जाना है। इसमें रविदासजी द्वारा दी गई सीखों को भी उकेरा जाएगा।  
दोगुने मत हासिल करने की कवायद
भाजपा के एक नेता ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि अभी पार्टी प्रत्याशी को इस समुदाय के करीब 30-35 प्रतिशत मत ही मिलते हैं। इसे पार्टी का लक्ष्य इस बार के चुनाव में 75 प्रतिशत तक पहुंचने का है।  हम यह सुनिश्चित करना चाहते हैं कि लोग हमें समाज के सभी वर्गों के लिए एक पार्टी के रूप में देखें। उधर सूत्रों का कहना है कि पार्टी ने कुल आरक्षित सीटों में से 35 निर्वाचन क्षेत्रों की भी पहचान की है, जहां पार्टी प्रत्याशी की जीत बीते कई चुनाव से मुश्किल रहती है। उनका कहना है कि अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति समुदायों का एक बड़ा वर्ग हमारा समर्थन करता है, लेकिन साथ ही कुछ ऐसे उपवर्ग हैं ,जिन तक हमें पहुंचने की आवश्यकता है। एक बार अगर हम ऐसा करने में सफल हो जाते हैं, तो हम अगले चुनावों के लिए राजनीतिक रूप से बेहतर स्थिति में होंगे।
नाराजगी की वजह
दरअसल बीते आम विधानसभा चुनाव से ठीक पहले दलित बाहुल्य ग्वालियर- चंबल अंचल में जातिगत संघर्ष हो गया था, जिसकी वजह से आरक्षित वर्ग का भाजपा से मोहभंग हो गया था, जिसकी वजह से ही इस अंचल में कांग्रेस को भाजपा के मुकाबले अच्छी सफलता मिली थी। इस अंचल में इसके साथ ही स्वर्ण वर्ग की भी नाराजगी देखी गई थी।
प्रदेश में यह है सियासी गणित
दरअसल प्रदेश में अनुसूचित जाति वर्ग की आबादी करीब 82 लाख है जो कुल आबादी का करीब 17 फीसदी है। विधानसभा में इस वर्ग के लिए 35 सीटें आरक्षित हैं। बीते चुनाव में इनमें से कांग्रेस ने 18 सीट पर जीत दर्ज की थी , जिसकी वजह से भाजपा को सरकार से बाहर बैठना पड़ा था। यही नहीं प्रदेश की करीब 84 सीटों ऐसी हैं, जिन पर इस वर्ग के मतदाता हार जीत तय करने की स्थिति में रहते हैं। इसी तरह अगर वर्ष 2013 के चुनाव परिणामों पर नजर डालें तो तब 35 आरक्षित सीटों में से भाजपा को 32 सीटें पर जीत मिली थी, जबकि कांग्रेस महज 3 सीटों पर ही जीत दर्ज कर सकी थी।
कांग्रेस भी कर रही है प्रयास: मप्र कांग्रेस भी अनुसूचित जाति वर्ग के मतदाताओं को अपने पक्ष में करने के प्रयासों में कोई कोर कसर नहीं छोड़ रही है। मप्र कांग्रेस का अनुसूचित जाति विभाग अजा वर्ग से जुड़े हर छोटे-बड़े मुद्दे को लेकर विरोध तो जताता ही रहा है साथ ही उसके पदाधिकारी भी मैदान स्तर पर सक्रिय हो गए हैं। कांग्रेस के इस विभाग के अध्यक्ष प्रदीप अहिरवार के मुताबिक जल्द ही सरकार की अजा और अजजा विरोधी नीतियों को लेकर लोगों को जागरूक करने के लिए संभागवार अभियान शुरु किया जाएगा। इसकी तैयारी की जा रही है।

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