मध्यप्रदेश में देशी गायों की संख्या बढ़ाने की कवायद शुरू

देशी गायों

मालवी, निवाड़ी, केनकथा और गौलव प्रजातियों की गाय की संख्या कृत्रिम गर्भाधान से बढ़ेगी …

भोपाल/विनोद उपाध्याय/बिच्छू डॉट कॉम। मप्र में देशी गायों के संरक्षण और संवर्धन के लिए कई स्तरों पर काम हो रहा है। इसी कड़ी में वेटरनरी विश्वविद्यालय जबलपुर में  देसी गायों की प्रजाति में कोई बदलाव किए बिना इनकी संख्या बढ़ाने के लिए वेटरनरी विज्ञानियों द्वारा शोध किए जा रहे हैं। इन शोधों से मिले बेहतर परिणाम को अब वेटरनरी विज्ञानी मध्यप्रदेश की गाय की प्रजातियों की तादात बढ़ाने में जुट गए हैं।  इस काम में वेटरनरी कालेज में पढ़ने वाले विद्यार्थियों के साथ गांव में रहने वाले गौसेवक की मदद ली जाएगी।
नानाजी देशमुख पशु चिकित्सा विज्ञान विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों द्वारा मालवी, निवाड़ी, केनकथा और गौलव प्रजातियों की गायों का बड़ी संख्या में  कृत्रिम गर्भाधान किया जा रहा है। यह काम अभी तक वेटरनरी विज्ञानी ही करते थे, लेकिन अब विवि के विद्यार्थियों के साथ गांव के गौसेवक भी करेंगे।  इसके लिए केंद्र सरकार के गोकुल मिशन द्वारा वेटरनरी विश्वविद्यालय को साढ़े चार करोड़ रुपये का प्रोजेक्ट दिया गया है।
गिर और शाहीवाल प्रजातियों पर शोध
मध्यप्रदेश की चार मुख्य प्रजातियों के साथ सर्वाधिक दूध देने वाली गिर और शाहीवाल प्रजातियों की संख्या बढ़ाने के लिए कृत्रिम गर्भाधान किया जा रहा है। विवि के बायोटेक्नोलाजी विभाग के प्रमुख प्रो. अजीत प्रताप सिंह और डा. नीतिन बजाज द्वारा इस पर शोध किया जा रहा है। अब विवि के विज्ञानी और विद्यार्थियों को गिर और शाहीवाल गाय में कृत्रिम गर्भाधान करने के तरीके  बताए जा रहे हैं।  इनकी मदद से गांव में इन गाय की प्रजातियों का बढ़ाने का काम होगा। जबलपुर संभाग में इन दो गाय प्रजातियों को प्रमुखता से पालन किया जाता है। प्रोजेक्ट के तहत विश्वविद्यालय के अधारताल परिसर में कृत्रिम गर्भाधान लैब विकसित किया जाएगा। इसमें प्रदेश के अलावा देश की गायों की प्रमुख प्रजातियों के सीमन भी तैयार होंगे।
कृत्रिम गर्भाधान करने बनेगी आधुनिक लैब
कृत्रिम गर्भाधान बढ़ाने वाले प्रोजेक्ट के तहत विश्वविद्यालय के अधारताल परिसर में कृत्रिम गर्भाधान लैब को विकसित किया जाएगा। केंद्र सरकार के पशुपालन मंत्रालय के एनिमल हस्बैंडरी विभाग द्वारा विश्वविद्यालय को दिए जा रहे साढ़े चार करोड़ में यह काम होगा। इस लैब में प्रदेश के अलावा देश की प्रमुख प्रजातियों के सीमन तैयार होंगे।  इन्हें उसी प्रजातियों की गाय में कृत्रिम गर्भाधान कर डाला जाएगा। यह लैब प्रदेश की सबसे आधुनिक होगी। हालांकि विवि के बायोटेक्नोलाजी विभाग के पास पहले ही एक लैब है, लेकिन नई लैब में खासतौर पर कृत्रिम गर्भाधान से जुड़े अनुसंधान कार्य होंगे।
स्थानीय प्रजातियों को बचाने की कवायद
विवि के विज्ञानियों की मदद से प्रदेश में पाई जाने वाली देसी गाय की नस्ल को बचाने की कवायद की जा रही है। इन गो संवर्धन केंद्र में उन प्रजातियों को बचाने और उनकी पैदावार बढ़ाने पर जोर दिया जाएगा, जो नस्ल प्रदेश की पहचान हैं।  इनमें जबलपुर की गावलाब, महू की निवाड़ी, मालवी, रीवा की केनकाथा जैसी प्रदेश की खास नस्ल को बचाने के लिए विवि के विज्ञानी कृत्रिम गर्भाधान से लेकर भ्रूण प्रत्यारोपण का काम करेंगे।
प्रोजेक्ट पर ऐसे होगा काम
विश्वविद्यालय के अनुभवी विज्ञानियों को कृत्रिम गर्भाधान से जुड़े शोध कार्य से जोड़ा जाएगा। इन्हें विद्यार्थियों और गोसेवकों को प्रशिक्षण देने के लिए खास प्रशिक्षण दिया जाएगा। वेटरनरी के विद्यार्थियों के कोर्स में कृत्रिम गर्भाधान से जुड़े अनुसंधान और इसके परिणाम को जोड़ा जाएगा। इसके आधार पर यह काम करेंगे और गो सेवकों को प्रशिक्षण देंगे। पशुपालन विभाग द्वारा हर गांव में गाय के उपचार के लिए बनाए गए 12वी पास गो सेवकों को कृत्रिम गर्भाधान करने का प्रशिक्षण दिया जाएगा। यह गांव में इसकी जिम्मेदारी संभालेंगे। वेटरनरी विश्वविद्यालय जबलपुर के कुलपति  प्रो. एसपी तिवारी का कहना है कि विश्वविद्यालय को गोकुल मिशन प्रो. के तहत देसी गायों की संख्या बढ़ाने के लिए प्रोजेक्ट मिला है। हम विज्ञानियों की मदद से विद्यार्थियों और गो सेवक को कृत्रिम गर्भाधान का प्रशिक्षण देंगे। इसके साथ ही कृत्रिम गर्भाधान का तरीका और बेहतर व सुरक्षित बनाने के लिए नई आधुनिक लैब में शोध किया जाएगा।

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