
भोपाल/गौरव चौहान/बिच्छू डॉट कॉम। ई-टेंडरिंग घोटाला जितना बड़ा है उसकी जांच भी उतनी ही मंद गति से चल रही है। इस मामले में शुरूआती जांच और कार्रवाई जिस तेजी से शुरू हुई थी, अब उतनी ही धीमी हो चुकी है। हालात यह है कि बीते डेढ़ साल में इस मामले की जांच जस की तस पड़ी हुई है। इसके लिए आर्थिक अपराध प्रकोष्ठ (ईओडब्ल्यू) तकनीकी जांच के लिए दिल्ली की टीम पर निर्भरता को बड़ी वजह बताता है।
साक्ष्यों की रिपोर्ट पाने के लिए लंबे समय से कागजी कार्रवाई की खाना पूर्ति का काम किया जा रहा है। इसी तरह से इसकी जांच में बेहद अहम रोल हार्ड डिस्क का है, जिसकी डेढ़ साल के इंतजार के बाद कोई रिपोर्ट तो नहीं मिली है , बल्कि अब यह जानकारी दी गई है कि जिस हार्ड डिस्क को डॉटा रिकबर करने के लिए भेजा गया था, उससे डाटा ही रिकवर नहीं हो रहा है। इसके वजह से अब दूसरी हार्ड डिस्क भेजी जाए। इसके बाद से दूसरी हार्ड डिस्क भी भेज दी गई। हार्ड डिस्क से डाटा रिकवर करने और उस आधार पर घोटाले के साक्ष्य जुटाने के लिए रिपोर्ट आने का ईओडब्ल्यू को इंतजार बना हुआ है। दरअसल हजारों करोड़ रुपयों के इस घोटाले के सामने आने के बाद करीब डेढ़ साल पहले ईओडब्ल्यू ने कंप्यूटर इमरजेंसी रिस्पांस टीम (सर्ट-इन) दिल्ली को ई टेंडर में शामिल कंपनियों के यहां से जब्त हार्ड डिस्क भेजीं थी। इसमें नौ टेंडर की गड़बड़ी के मामले थे। कुछ समय पहले पहले सर्ट-इन ने रिपोर्ट भेजी थी कि तकनीकी खामियां होने के कारण हार्ड डिस्क से डाटा रिकवर नहीं हो रहा है।
ईओडब्ल्यू ने फिर से हार्ड डिस्क को दिल्ली भेजा गया है। इसके बाद से लगातार कई स्मरण पत्र भेजकर उसकी रिपोर्ट मांगी जा रही है, लेकिन अब तक रिपोर्ट नहीं मिल सकी है। इस कमी वजह से नौ टेंडरों के मामले में जांच आगे ही नहीं बढ़ रही है। सूत्रों का कहना है कि दिल्ली से मिलने वाली तकनीकी रिपोर्ट प्रमुख साक्ष्य होगा। इसके बिना आगे बढ़ने से कई मामलों को साबित करने में परेशानी आएगी। अन्य जानकारियों के आधार पर प्रकरण को तैयार किया जा चुका है, लेकिन रिपोर्ट न मिल पाने की वजह से उसकी जांच की दिशा तय नहीं हो पा रही है। उल्लेखनीय है कि इस मामले में बीते कुछ माह पहले प्रदेश के पूर्व मुख्य सचिव एम. गोपाल रेड्डी से भी प्रवर्तन निदेशालय द्वारा पूछताछ की जा चुकी है।
हैक करने के बाद की जाती थी टेंपरिंग
आरोपियों द्वारा ई-टेंडर की पोर्टल को हैक करके निविदाओं में हेर-फेर कर पसंद की कंपनियों को काम दिला दिया जाता था। इस मामले में ईडी ने भी एक साल पहले मामला दर्ज कर जांच शुरू की और सबूत जुटाने के लिए संदिग्धों के ठिकानों पर छापेमारी भी की थी। जनवरी से मार्च 2018 के बीच पांच विभागों में गड़बड़ी का पता चला था। शुरूआत में यह मामला सात टेंडरों में गड़बड़ी और 900 करोड़ रुपये के घोटाले तक सीमित था, पर जैसे-जैसे जांच आगे बढ़ी, टेंडर की संख्या भी बढ़ी और घोटाले की रकम भी। मार्च 2018 में तत्कालीन सरकार ने मामले में संबंधित विभागों के 5 अधिकारियों के खिलाफ आर्थिक अपराध प्रकोष्ठ में मामला दर्ज करा दिया था। दिसंबर 2018 में कमलनाथ सत्ता में आए, तो मामला ईडी को सौंप दिया गया।
रिपोर्ट जल्द मिलने की उम्मीद
ईओडब्ल्यू के अधिकारियों का कहना है कि इस संबंध में लगातार पत्राचार किया जा रहा है। उनका कहना है कि कोरोना संकट की वजह से भी लंबे समय जांच का काम प्रभावित हुआ है। कंप्यूटर इमरजेंसी रिस्पांस टीम द्वारा भी आश्वासन दिया गया है कि जल्द ही इस मामले का निराकरण कर दिया जाएगा। गौरतलब है कि ई-टेंडरिंग घोटाला अप्रैल 2018 में उस समय सामने आया था, जब जल निगम की तीन निविदाओं को खोलते समय कंप्यूटर ने एक संदेश डिस्प्ले किया था। जिसके बाद ही पता चला कि निविदाओं में टेंपरिंग की जा रही है। राज्य सरकार के आदेश पर वर्ष 2019 में प्रकरण दर्ज कर जांच शुरू की गई थी।