
भोपाल/हरीश फतेह चंदानी /बिच्छू डॉट कॉम। त्रिस्तरीय पंचायत के ऐसे चुनाव हैं, जिनमें प्रत्याशी पर खर्च की कोई बंदिश नहीं लगाई गई है। जिसकी वजह से इन चुनावों में जमकर धनबल का उपयोग होना तय माना जा रहा है। इसकी वजह है कि विकास की यह सबसे निचली इकाई होने के बाद भी बेहद महत्वपूर्ण मानी जाती है। इन चुनावों में खर्च की बंदिश न होना लोगों को समझ नहीं आ रहा है। दरअसल लोकसभा, विधानसभा और नगरीय निकाय चुनाव में पैसे का दुरुपयोग रोकने के लिए चुनाव आयोग ने प्रचार के लिए प्रत्याशी खर्च की सीमा तय कर रखी है।
कई नगरीय निकाय में पार्षद से लेकर अध्यक्ष तक का इलाका जनपद और जिला पंचायत सदस्य से भी बेहद कम होता है, लेकिन उनके लिए खर्च सीमा तय है, लेकिन पंचायत चुनाव में कोई बंदिश नहीं रखी गई है। इसकी वजह से पंचायत चुनाव में प्रत्याशियों को मनचाही राशि खर्च करने की पात्रता रहेगी। इसकी वजह से आयोग द्वारा न तो उनसे खर्च को लेकर कैफियत ली जाएगी और न ही किसी तरह की पूछताछ की जाएगी। गौरतलब है कि पड़ौसी राज्य उप्र और बिहार जैसे राज्यों में पंचायत चुनाव में अधिकतम खर्च की सीमा तय है।
उधर, कांग्रेस पंचायत चुनावों में खर्च सीमा तय नहीं किए जाने पर आपत्ति कर रही है। कांग्रेस के प्रदेश लीगल सेल के प्रभारी जेपी धनोपिया का कहना है कि आयोग द्वारा पंचायत चुनाव के लिए खर्च सीमा तय नहीं करने से खरीद-फरोख्त की संभावना रहेगी। उधर, चुनावों की घोषणा होने के साथ ही विभिन्न पदों के दावेदारों द्वारा अपनी सक्रियता इलाके में बढ़ा दी गई है। कई दावेदारों द्वारा तो अभी से मतदाताओं को लुभाने के लिए कई तरह के धार्मिक और सार्वजनिक आयोजन तक किए जाने लगे हैं। उधर, जिला पंचायत और जनपद पंचायत अध्यक्ष के लिए कांग्रेस-भाजपा समर्थक प्रत्याशी पद के दावेदार भी सक्रिय हो गए हैं। दोनों ही दलों में पार्टी स्तर पर अपने समर्थक प्रत्याशियों को चुनावी मैदान में उतारने से लेकर उनकी जीत तय करने के लिए रणनीति बनाने पर काम शुरू कर दिया गया है।
भाजपा ने इन तीन दर्जन जिलों में किया था जीत का दावा
भाजपा ने पिछली बार प्रदेश के 51 में से जिन तीन दर्जन जिलों में अपने अध्यक्ष जीतने का दावा किया था वहां इस बार पूरी ताकत लगाई जाएगी। इन जिलों में श्योपुर, मुरैना, ग्वालियर, दतिया, अशोकनगर, सागर, टीकमगढ़, दमोह, पन्ना, सतना, सीधी, सिंगरौली, अनूपपुर, जबलपुर, कटनी, मंडला, डिंडोरी, बालाघाट, सिवनी, छिंदवाड़ा, होशंगाबाद, हरदा, बैतूल, रायसेन, विदिशा, राजगढ़, इंदौर, खंडवा, बुरहानपुर, अलीराजपुर, धार, आगर, देवास, रतलाम, मंदसौर और नीमच जिला भी शामिल हैं।
निकाय चुनावों में यह है खर्च की सीमा
10 लाख से अधिक आबादी वाले नगर निगमों में पार्षद की खर्च सीमा 8.75 लाख रुपए, इससे कम आबादी वाले नगर निगमों पार्षद पद के लिए यह खर्च सीमा 3.75 लाख रुपए तय की गई है। इसी तरह से 1 लाख से अधिक आबादी वाली नगर पालिका में पार्षद चुनाव के लिए 2.50 लाख और इससे कम आबादी वाली नगर पालिकाओं के पार्षद के लिए 1.50 लाख रुपए और 50 हजार से कम आबादी वाली नगर पालिकाओं में खर्च सीमा एक लाख रुपए तय है जबकि, 50 हजार से कम आबादी वाली नगर पंचायत में पार्षद चुनाव के लिए खर्च की सीमा 75 हजार रुपए तय है।
आयोग की गाइडलाइन जारी
त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव में उम्मीदवारों के लिए भले ही खर्च की कोई सीमा तय नहीं की गई है, लेकिन निर्वाचन आयोग ने कुछ गाइडलाइन तय की हैं जिनका पालन करना जरूरी किया गया है। इसके तहत जिला पंचायत सदस्य के लिए 8 हजार रुपए, जनपद सदस्य के लिए 4 हजार रुपए और ग्राम पंचायत सरपंच के लिए 2 हजार तथा पंच के लिए 400 रुपए की राशि जमानत के रूप में नामांकन भरते समय प्रत्याशी को जमा करानी होगी। इसके अलावा इन चुनाव में किसी भी राजनीतिक दल के सिंबल का उपयोग नहीं किया जा सकेगा। केवल राजनीतिक दल अपने समर्थक प्रत्याशी का सपोर्ट कर सकेंगे।
भाजपा व कांग्रेस के सामने चुनौती
पंचायत चुनावों को लेकर दोनों ही प्रमुख दल मैदानी जमावट में लग गए हैं। भाजपा जहां अपने जनप्रतिनिधियों और वरिष्ठ नेताओं से विचार विमर्श कर फीडबैक ले रही है वहीं, कांग्रेस का भी जमीनी स्तर पर फोकस बढ़ गया है। गैर दलीय चुनाव होने के बाद भी बीते चुनाव में भाजपा ने 36 जिलों में अपने अध्यक्ष जीतने का दावा किया था। इसकी वजह से अब उसके सामने इन जिलों पर कब्जा बनाए रखने की बड़ी चुनौती है। भाजपा ने अपने सभी बूथ स्तरीय कार्यकर्ताओं को घर-घर दस्तक देने का काम सौंप कर मैदानी तैयारी भी शुरू कर दी है। इसके साथ ही जनपद और जिला पंचायत अध्यक्ष के लिए जिताऊ चेहरों के नामों की पैनल तैयार करने का काम भी शुरू कर दिया गया है। यह चुनाव प्रदेश में करीब दो साल की देरी से हो रहे हैं।