
भोपाल/रवि खरे/बिच्छू डॉट कॉम। जिस आदिवासी समुदाय के भविष्य संवारने का काम केन्द्र की मोदी व प्रदेश की शिवराज सरकार ने प्राथमिकता में रखा है, उसी वर्ग से जुड़ी बेहद अहम शिक्षा के लिए लागू किए गए एकलव्य मॉडल में मप्र फिसड्डी साबित हो रहा है। इससे खफा केन्द्र सरकार ने अब मप्र को इस मद में बजट देने से ही हाथ खड़े कर दिए हैं। प्रदेश में इस योजना के क्रियान्वयन में हालात यह हैं कि अफसरों की अर्कमण्यता के चलते इस मद में केन्द्र से मिली राशि का उपयोग ही नहीं किया जा सका है। यही वजह है कि केन्द्र सरकार ने इस वित्त वर्ष में इस एकलव्य मॉडल के लिए बजट जारी नहीं करना तय कर लिया है। खास बात यह है कि इससे लापरवाह अफसरों का तो कुछ नहीं बिगड़ने वाला है, लेकिन मौजूदा छात्रों की पढ़ाई पर जरुर असर पड़ेगा। खास बात यह है कि इस मॉडल के क्रियान्वयन में पड़ोसी राज्य छत्तीसगढ़ भी मप्र को पीछे छोड़ चुका है। इस वजह से इस साल उसे केन्द्र सरकार द्वारा राशि जारी की जाएगी। मप्र में इस योजना के यह हाल तब हैं जब कि केंद्र और प्रदेश दोनों में ही भाजपा की सरकार है। अगर योजना की वित्तीय रिपोर्ट को देखें तो मप्र देश का वह एकलौता राज्य है जिसे बीते 3 सालों में इस योजना के लिए सर्वाधिक बजट दिया गया है। लेकिन सरकारी सिस्टम का आलम यह रहा कि इस मद में बीते तीन सालों में जो बजट मप्र को मिला है उसमें से महज आधी ही राशि सरकारी महकमा खर्च कर सका है। इस स्थिति को देखते हुए केंद्र सरकार ने एकलव्य मॉडल रेजिडेंशियल स्कूल (ईएमआरएस) के लिए मप्र के हिस्से का बजट ही नहीं देने का तय कर लिया है। गौरतलब है कि प्रदेश में फिलहाल 40 से अधिक स्कूलों का संचालन किया जा रहा है। इन स्कूलों में आदिवासी इलाके के छात्रों को रखकर उन्हें शिक्षा दी जाती है। केन्द्र द्वारा भरपूर राशि देने के बाद भी प्रदेश सरकार और उसके अफसरों के निकम्मेपन की वजह से अधिकांश यह स्कूल शिक्षकों की कमी से भी जूझ रहे हैं। इसकी वजह से यह स्कूल अपने मंतव्य में पूरी तरह से सफल नहीं हो पा रहे हैं। यही वजह है कि अब केंद्र ने भी स्कूलों के अव्यवस्थित प्रबंधन के चलते इस साल इनसे हाथ खींच लिए हैं। उल्लेखनीय है कि इस योजना के तहत छात्रों को सीबीएसई पैटर्न के तहत पढ़ाई कराई जाती है।
हर छात्र पर एक लाख से अधिक राशि खर्च
प्रदेश के दूरदराज के आदिवासी इलाकों में शिक्षा व्यवस्था में सुधार के साथ ही स्थानीय छात्रों को शिक्षित करने के लिए इस योजना को एक दशक से अधिक समय पहले 1998 में शुरू किया गया था। उसके बाद से ही इसका संचालन मप्र में किया जा रहा है। केंद्र में मोदी सरकार बनने के बाद इस योजना के तहत अध्ययनरत छात्रों पर होने वाले सालाना खर्च में भी वृद्धि की गई है। इसके तहत अब हर छात्र पर एक साल में एक लाख 9 हजार खर्च किए जा रहे हैं।
जर्जर भवनों को मरम्मत की दरकार
इस योजना के तहत बनाए गए स्कूलों के भवनों की हालत यह है कि वे रखरखाव के अभाव में बेहद जर्जर हालातों में पहुंच गए हैं। इन भवनों को लंबे समय से मरम्मत की दरकार बनी हुई है , इसके बाद भी उनकी मरम्मत नहीं कराई जा रही है , जिसकी वजह से वे बेहद दयनीय हालत में पहुंच चुके हैं। इस वजह से कभी भी कोई भी बड़ी घटना दुर्घटना का भय भी बना रहता है। वहीं इनमें पदस्थ स्टाफ को रहने के लिए क्वार्टर तक नहीं बनाए गए हैं। इस वजह से उन्हें भी रहने की समस्या का सामना करना पड़ रहा है।
क्यों फेल हो रही है योजना
इस योजना के प्रदेश में फेल होने की कई वजहें हैं। इनमें प्रमुख रुप से आदिवासी अंचलों में शिक्षकों की कमी के अलावा छात्रों की शिक्षा के लिए जरुरी सुविधाओं का अभाव होना है। इनमें खेल मैदान से लेकर प्रयोगशालाओं तक का अभाव शामिल है। इसी तरह से प्रदेश के दूरदराज के इलाकों में संसाधन पहुंचने में देरी भी एक बड़ी वजह है।
आयुक्त ने पकड़ी थीं कई गड़बड़ियां
बीते साल 2020 में आदिवासी विकास विभाग की तत्कालीन आयुक्त दीपाली रस्तोगी ने योजना के तहत छात्रों को दी जाने वाली स्कॉलरशिप में कई तरह की गड़बड़ी का पता लगाया था। उस समय उन्हें पता चला था कि लगभग 35 से ज्यादा एकलव्य मॉडल रेजिडेंशियल स्कूलों में छात्रों को स्कॉलरशिप नहीं मिलने के बाद भी बताया जा रहा था कि उनके खाते में उसकी राशि भेजी जा चुकी है। उनके द्वारा इस मामले के जांच के आदेश दिए गए थे , लेकिन बाद में यह मामला शांत हो गया। इस मामले में केन्द्र सरकार ने आपत्ति लेते हुए कई सवाल खड़े करते हुए योजना से जुड़े वित्तीय मामलों की जांच रिपोर्ट तक तलब की थी।
यह रहे तीन साल के बजट के हाल
साल जारी बजट खर्च
2018-19 24635.30 13142.13
2019-20 44938.92 19280.22
2020-21 14459.36 466.53
(-नोट यह राशि लाख में है।)