
भोपाल/अपूर्व चतुर्वेदी/ बिच्छू डॉट कॉम। कुप्रबंध और भ्रष्टाचार के कारण कंगाली में पहुंची सहकारिता को बचाने के लिए प्रदेश सरकार तमाम तरह के प्रयास कर रही है। लेकिन अधिकारियों की कमी और बढ़ते भ्रष्टाचार से सहकरिता की हालत खराब होती जा रही है। प्रदेश में यूं तो सहकारी आंदोलन की जड़ें गहरी हैं, पर भ्रष्टाचार का दीमक इसे खोखला करने में लगा है। आए दिन जिला सहकारी केंद्रीय बैंक और प्राथमिक कृषि साख सहकारी समितियों के घोटाले सामने आते रहते हैं। घोटालों के लिए जिम्मेदारों पर कार्रवाई की फाइल तो चलती है, पर उनकी गति धीमी होती है। ऐसी कार्रवाई नहीं हो पाती, जो भ्रष्टाचार को बढ़ावा देने वाली व्यवस्था में आमूलचूल बदलाव कर सके या बदलाव का माहौल बना सके। दरअसल सहकारी बैंकों और समितियों के विरुद्ध की जाने वाली शिकायतों की जांच सहकारिता विभाग के वे अधिकारी ही करते हैं, जो प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से कुप्रबंधन के लिए जिम्मेदार हैं। यही कारण है कि छिटपुट कार्रवाइयों के बावजूद भ्रष्टाचार का सिरा खत्म नहीं होता। इसी कुप्रबंध का नतीजा है कि राज्य की सैकड़ों सहकारी समितियां कंगाल हो चुकी हैं।
दरअसल, प्रदेश में सहकारिता आंदोलन को और मजबूत बनाने के लिए विभाग और शासन स्तर पर बनी रणनीति मूर्त रूप नहीं ले पाई है। साल के शुरूआत में मुख्यमंत्री ने निर्णय लिया था कि कमजोर वित्तीय स्थिति वाले सहकारी बैंकों को वित्तीय दृष्टि से स्वायत्ता एवं आत्मनिर्भर बनाने के लिए रोडमैप तैयार किया जाएगा और नई सहकारिता नीति लाई जाएगी। ये दोनों काम अब तक पूरे नहीं हुए हैं। वहीं विभाग में लगातार घट रहे सहकारी अफसरों के कारण करोड़ों के भ्रष्टाचारों की जांच कार्रवाई भी ठप है। पांच हजार से अधिक समितियों का आॅडिट भी प्रभावित हो रहा है।
योजना कागजों से बाहर नहीं आ सकी
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की अध्यक्षता में हुई बैठक में कृषि प्रसंस्करण के क्षेत्र में नई सहकारी समितियों के निर्माण को प्रोत्साहन देने, ग्रामीण परिवहन, खनिज, पर्यटन, श्रम सर्विस सेक्टर, स्वास्थ्य आदि नए क्षेत्रों में सहकारिता को प्रोत्साहन देने की योजना बनाने, प्रत्येक ग्राम पंचायत स्तर पर ग्रामीण औद्योगिक सहकारी समिति गठित करने और प्रदेश में खराब स्थिति वाले पैक्स को पुनर्जीवन और प्रभावी बनाने की योजना तैयार करने निर्देश दिए गए थे। मुख्यमंत्री ने फरवरी 2022 तक नई सहकारिता नीति लाने को भी कहा था। राष्ट्रीय कृषि विकास योजना के अंतर्गत स्वीकृत कार्य समय पर पूरे करने, सहकारी कब तक आएगी। गृह निर्माण समितियों में प्लॉट आवंटन को लेकर आने वाली समस्याओं के निराकरण के लिए दीर्घकालिक बनाने, कंप्यूटरीकरण आदि कार्यों को छह माह में पूरा करने को कहा गया था।
अफसरों से खाली पड़े जिले
आलम है कि कई जिले सहकारिता अफसरों से खाली हैं। भोपाल, रायसेन, आलीराजपुर, अशोकनगर, जबलपुर, बालाघाट और नरसिंहपुर जिले में उपायुक्त नहीं हैं। सीहोर, विदिशा, बैतूल, बुरहानपुर, धार, झाबुआ, खंडवा, खरगोन, उज्जैन, देवास, मंदसौर, रतलाम, शाजापुर, आगर मालवा, ग्वालियर, गुना, शिवपुरी, मुरैना, भिंड, श्योपुर, सागर, छतरपुर, टीकमगढ़, रीवा, सतना, सिंगरौली, अनूपपुर, जबलपुर, बालाघाट, डिंडौरी और नरसिंहपुर में सहायक आयुक्त अंकेक्षण और श्योपुर तथा डिंडौरी में सहायक आयुक्त सहकारिता नहीं हैं। कई अफसर वीआरएस भी ले चुके हैं।