
भोपाल/गौरव चौहान/बिच्छू डॉट कॉम। मध्यप्रदेश में नर्मदा वैली को अब भी पर्यावरण की दृष्टि से बेहद अच्छा माना जाता है, लेकिन वह दिन दूर नहीं है जब यह वैली भी प्रदूषण के हिसाब से बेहद खतरनाक हो जाएगी। इसकी वजह है इस वैली में विकास के नाम पर की जा रही अंधाधुंध तरीके से पेड़ों की कटाई। इस मामले में सरकार व अफसर मिलकर ऐसा खेल खेल रहे हैं कि इस वैली की प्रदूषण मुक्त, शांत और सुकून वाली पहचान ही समाप्त होने के कगार पर पहुंच गई है। इस इलाके में बीते कुछ सालों में हरियाली नष्ट करने का काम इतनी तेजी से किया गया कि इस वैली में स्थित प्रदेश के चार महानगरों में शामिल जबलपुर शहर इन दिनों प्रदूषण के खतरनाक मानक तक को पीछे छोड़ने लगा है। इस माह में इस शहर की हवा की गुणवत्ता अति स्तरहीन श्रेणी में जा चुकी है। शहर की एयर क्वालिटी इंडेक्स (एक्यूआई) 325 के आंकड़े से आगे निकल गई। सामन्य तौर पर एक्यूआई 100 के अंदर रहना ही अच्छा माना जाता है। इस अंचल में बीते एक दशक में पेड़ कटाई के आंकड़े बेहद चौकाने वाले हैं। हालात यह हैं कि जबलपुर शहर से निकले तमाम हाइवे निर्माण के लिए पांच साल में हजारों की संख्या में पेड़ काट दिए गए। इसके अलावा इस जिले में चोरी-छिपे काटे गए पेड़ों की संख्या तो बेहिसाब है। नियमानुसार काटे गए पेड़ों की तुलना में दस गुना पौधरोपण किया जाना चाहिए, लेकिन इस नियम पर निर्माण ठेकेदार भारी पड़ रहे हैं। हालात यह हैं कि पेड़ लगाने की अधिकांश कवायद कागजी ही साबित हो रही है। इसकी वजह से अब वातावरण में तेजी से कार्बन और हानिकारक डस्ट बढ़ती ही जा रही है।
सुदंर व शोपीस वाले पेड़ बने पसंद
इसके लिए सरकारी जिम्मेदार अफसर से लेकर सरकार तक की पसंद फल व छायादार के साथ पर्यावरणीय हितैषी पेड़ों की जगह सुंदर व शोपीस वाले पेड़ बन गए हैं। इसकी वजह से उनका कोई फायदा नहीं हो रहा है। इस इलाके में किस तरह से पेड़ काटे गए हैं इससे ही समझा जा सकता है कि सरकारी रिकॉर्ड के अनुसार फोरलेन निर्माण (नेशनल हाइवे-12) के लिए जबलपुर से हिरन नदी के बीच 55 किमी में ही 6435 पेड़ काटे गए। इनमें आम, बबूल, कोहा, इमली, बरगद, रिमझा, नीम, महानीम, सतकटा, पीपल, समेरा के वर्षों पुराने विशालकाय फलदार और छायादार पेड़ शामिल हैं। इनके एवज में 2019 से अब तक 6497 पेड़ लगाने का दावा किया गया। इनमें अर्जुन, कचनार, केसिया, जामुन, नीम, पीपल, शीशम और सप्तपर्णी किस्म के पौधे फोरलेन के दोनों तरफ रोपेने और उनके सौ फीसदी जीवित होने का उल्लेख है, लेकिन वास्तव में वहां पर पेड़ों का अस्तित्व ही नहीं दिखता है। इसी तरह से जबलपुर-रीवा, जबलपुर-कटनी और जबलपुर-दमोह मार्ग पर सम्बंधित निर्माण एजेंसियों ने सुप्रीम कोर्ट के इसकों लेकर निर्देश का पालन करना ही उचित नहीं माना है। यही नहीं जिम्मेदार अफसर भी पूरी तरह से इस मामले में लापरवाह बने हुए हैं। इसकी वजह से अब बीते दिनों एक याचिका एनजीटी में याचिका दायर की जा चुकी है।
अब तक काटे जा चुके हैं 58 हजार से अधिक पेड़
जबलपुर शहर और उसके आसपास के इलाके में ही 58 हजार से अधिक पेड़ काटे जा चुके हैं। इनमें एनएच-12 जबलपुर से हिरन नदी के बीच-6435, जबलपुर-भोपाल मार्ग निर्माण में 17,000 और रीवा-कटनी-जबलपुर-लखनादौन स्टेट हाईवे-7 पर-34,134 पेड़ सरकारी रिकार्ड के मुताबिक काटे गए हैं।
प्रदूषण का जहर सोखने की क्षमता में लगातार गिरावट
हालात यह हैं कि बीते एक दशक में नर्मदा वैली के सबसे बड़े शहर की हवा में तेजी से बदलाव हुआ है। इस शहर के आसपास इंडस्ट्री व वाहनों की वजह से कार्बन की मात्रा में तेजी से इजाफा हुआ है। हालात यह है कि अब इस वैली में वह हरियाली ही नहीं बची है जो निकलने वाला कार्बन या डस्ट को सोख सके। विशेषज्ञों के मुताबिक पिछले पांच साल में प्रदूषण का जहर सोखने की क्षमता में तेजी से गिराव्ट आई है। इसकी वजह से बचे हुए पेड़ों पर ही डस्ट व कार्बन पार्टिकल की परत जमने लगी है। इसकी वजह से ही शहर के वातावरण में एक्यूआई बढ़ रहा है।
पेड़ कटते गए, एक्यूआई बढ़ता गया (नवंबर की स्थिति)
वर्ष एक्यूआई
2020-21 325
2019-20 205
2018-19 99.02
2017-18 85.04