
भोपाल/प्रणव बजाज/बिच्छू डॉट कॉम। बागियों के लिए मशहूर चंबल के बीहड़ अब अपनी नई पहचान बनाते जा रहे हैं। इस बीच अब मप्र के सहकारिता मंत्री अरविंद भदौरिया ने इस अंचल को नई पहचान दिलाने के लिए अटेर महोत्सव शुरू करने योजना बनाई है। इसकी वजह से अब चंबल के बीहड़ों को नई पहचान मिल सकेगी और बागियों के लिए मशहूर यह बीहड़ अब इस अंचल के लिए विकास के वाहक बनेगें। इसकी वजह है इस महोत्सव के जरिए अब चंबल के इन बीहड़ों में देश-विदेश के पर्यटक नजर आएंगे। इस आयोजन की वजह से इस अंचल की प्रतिभाओं को भी न केवल प्रोत्साहन मिलेगा बल्कि उन्हें आगे आने का भी मौका मिलेगा। यही नहीं इस बहाने अब इस अंचल की राजनीति में भदौरिया द्वारा अपनी ताकत दिखाने का भी इसे प्रयास माना जा रहा है।
भदौरिया की पहल पर अब चंबल में पर्यटन को बढ़ावा देने जिला पुरातत्व पर्यटन एवं संस्कृति परिषद भिंड (डीएटीसीसी) इस तरह का आयोजन करने जा रहा है। इस आयोजन को लेकर स्थानीय लोगों, जनप्रतिनिधियों और अधिकारियों का मनना है कि इसकी वजह से चंबल की तस्वीर बदलकर यहां पर्यटन को बढ़ावा दिया जा सकता है। यही वजह है कि तीन दिन तक चलने वाले इस आयोजन रूपरेखा तैयार की जा रही है। इस अटेर महोत्सव को पूरे चंबल का महोत्सव के रूप में स्थापित करने की तैयारी है। खास बात यह है कि यह पूरा आयोजन देश की स्वच्छ नदी में शामिल चंबल नदी का की रेत पर होगा। इस नदी का पानी बेहद साफ होने की वजह से कांच की तरह से चमकदार और अच्छी गुणवत्ता की होने की वजह से रेत चांदी की तरह चमकती है। इस आयोजन के दौरान पर्यटकों को लुभाने के लिए स्थानीय खेलों में शामिल कुश्ती, कबड्डी, रेत में वॉलीबॉल, मोटर वोट, पैरा मोटर एवं वाटर स्पोर्ट कार्यक्रम आयोजन करने की तैयारी है। इस दौरान शाम ढलते ही स्थानीय कलाकारों के सांस्कृतिक कार्यक्रम, स्थानीय कवि सम्मेलन, आॅरकेस्ट्रा या गायन का आयोजन भी किया जाएगा। यही नहीं पर्यटक अटेर महोत्सव के दौरान घोड़ा-ऊंट की सवारी भी कर सकेगें। इसी तरह से राष्ट्रीय चंबल सेंचुरी में घड़ियाल, गंगा नदी के बाद सिर्फ चंबल में पाई जाने वाली गैंगेटिक प्रजापति की डाल्फिन, दुलर्भ प्रवासी पक्षियों का कलरव, पूरी दुनियां में सिर्फ चंबल में पाए जाने वाले मिट्टी के पहाड़ यानी बीहड़ के दर्शन कर पाएंगे।
इन्हें दी जाएंगी जिम्मेदारी: चंबल नदी किनारे तीन दिवसीय अटेर महोत्सव के लिए रूपरेखा प्रस्तावित की गई है। तीन दिन के आयोजन में तीस बाय 45 का मंच बनाया जाएगा। महिलाओं और पुरुषों के लिए अलग-अलग प्रसाधन, पानी की व्यवस्था, फायर ब्रिगेड व्यवस्था नगर पालिका भिंड के जिम्मे की जाएगी। सुरक्षा के लिए बेरिकेटिंग, नदी की ओर बांस-बल्ली आदि की व्यवस्था का जिम्मा पीडब्ल्यूडी को दिया जाएगा। अटेर अस्पताल को स्वास्थ्य कैंप का जिम्मा दिया जाएगा। आयोजन स्थल पर आवश्यक संसाधन के लिए स्टोर और गुमठी बनाई जाएंगीं।
ईको टूरिज्म को भी मिलेगा बढ़ावा : इस आयोजन की वजह से इस अंचल में ईको टूरिज्म को भी बढ़ावा मिल सकेगा। इसकी वजह से चंबल का बीहड़ सैलानियों की सैरगाह बन सकेगे। डकैतों की ऐशगाह माने जाने वाले चंबल के जंगलों में दिलचस्पी रखने वाले पर्यटक दिनभर सैर करने के बाद यहां रात्रि विश्राम का मजा भी ले सकेंगे। इसकी वजह से ईको टूरिज्म में राष्ट्रीय चम्बल सेंचुरी (घडिय़ाल अभ्यारण्य) के लिए वन विभाग की इस महत्वाकांक्षी परियोजना को भी बढ़ावा मिल सकेगा। यह परियोजना उत्तर प्रदेश, राजस्थान और मध्य प्रदेश द्वारा साझा रूप में तैयार की जा रही है। इसमें ग्वालियर और मुरैना जिले शामिल हैं।
कच्छ से ली प्रेरणा
इस आयोजन के लिए कच्छ से प्रेरणा ली गई है। दरअसल गुजरात के कच्छ में नमक के रेगिस्तान से वर्ष 2005 में सिर्फ तीन दिन के लिए उत्सव किया जाता है। शुरूआत में यहां भी कई कठिनाईयां आईं, लेकिन स्थानीय लोगों, जनप्रतिनिधियों और अधिकारियों के दृढ़ निश्चय की वजह से अब कच्छ का रण महोत्सव तीन माह तक चलता है। कच्छ महोत्सव के लिए टैग लाइन भी है, कच्छ नहीं देखा तो कुछ नहीं देखा।
महोत्सव कराएगा चंबल दर्शन
चंबल अपने में कई तरह के किस्से, कहानियां और प्राकृतिक सौंदर्य, थलीय के साथ जलीय जीव-जंतुओं को अपने आंचल में समेटे हुए है। चंबल के बीहड़ों को लेकर देश-दुनिया के लोगों में उत्सुकता रहती है। बागियों के कारण शापित रहे चंबल के सूनेपन को भरने अब यहां के लोग भी अतिथि देव: भव के भाव से भरे हैं। यानी अटेर में चंबल नदी किनारे होने वाला तीन दिवसीय अटेर महोत्सव देश-दुनिया को चंबल के दर्शन कराएगा। अटेर महोत्सव की तैयारियों को लेकर यहां के समाजसेवियों, जनप्रतिनिधियों और अधिकारियों में भी उत्साह का माहौल है।
चंबल में पर्यटकों को आकर्षित करने के लिए महोत्सव की तैयारी की जा रही है। इसे और बेहतर से बेहतर करने के लिए, जल्द ही भिंड जिले के अधिकारियों के साथ बैठक कर विचार विमर्श किया जाएगा। चंबल में पर्यटन की अपार संभावनाएं हैं। उन पर काम शुरू किया जाएगा।
डॉ. अरविंद सिंह भदौरिया, मंत्री, सहकारिता एवं लोकसेवा प्रबंधन मध्यप्रदेश