- प्रवीण कक्कड़

आज का युवा देश का भविष्य है, लेकिन अगर यही भविष्य नशे की गिरफ्त में उलझ जाए तो पूरी पीढ़ी का अंधकार तय है। तेजी से बढ़ती नशे की प्रवृत्ति केवल व्यक्तिगत नहीं, बल्कि सामाजिक और राष्ट्रीय संकट का रूप ले चुकी है। दुखद यह है कि आज का युवा नशे को कूल समझने लगा है, जबकि यह उसकी सबसे बड़ी भूल है। एक बार जो लत लगती है, वह मस्ती से जरूरत और फिर बर्बादी में बदल जाती है – और जब तक होश आता है, तब तक बहुत कुछ खो चुका होता है। देश के सबसे स्वच्छ शहर इंदौर से लेकर राजधानी भोपाल तक, नशे की यह गंदगी चुपचाप फैल रही है। ड्रग्स, एलएसडी, सिंथेटिक पदार्थ, स्टीकर और गांजा – ये अब केवल गली-कूचों तक सीमित नहीं हैं, बल्कि कोचिंग, कॉलेज और सोशल पार्टीज के आम हिस्से बन चुके हैं। नशे की इस अंधी दौड़ में ना सिर्फ युवक, बल्कि युवतियां भी तेजी से शामिल हो रही हैं। शराब के बाद सबसे ज्यादा प्रचलन में एलएसडी स्टीकर्स हैं, जिन्हें युवा अपने पर्स या मोबाइल कवर में रखकर अड्डों तक ले जाते हैं। नशे की यह बीमारी शरीर को ही नहीं, दिमाग को भी जकड़ लेती है। डिप्रेशन, अकेलापन, हिंसा और आत्महत्या जैसे परिणाम इसी के नतीजे हैं। रिपोर्टों के मुताबिक भारत में नशे का अवैध कारोबार 30 लाख करोड़ से ज्यादा का हो चुका है, और 10 से 75 साल के बीच के लगभग 20त्न भारतीय किसी न किसी नशे के शिकार हैं। इंदौर में तीन सालों में ड्रग्स से जुड़े युवाओं की संख्या 27त्न तक बढ़ी है। यह संख्या केवल आंकड़े नहीं हैं, यह टूटते सपनों और उजड़ते घरों की चीखें हैं।
नशे के पीछे के कारण
– पारिवारिक टूटन और तनाव: माता-पिता में झगड़े, आर्थिक तंगी या भावनात्मक उपेक्षा युवाओं को नशे की ओर धकेलते हैं।
– साथियों का दबाव: सब कर रहे हैं वाली सोच, युवाओं को बर्बादी की राह पर ले जाती है।
– मानसिक दबाव: सफल होने की दौड़ में जब आत्मबल गिरता है, तब कई युवा शॉर्टकट के तौर पर नशे को चुन लेते हैं।
– बाहरी तस्करी नेटवर्क: कई राज्यों से इंदौर और भोपाल जैसे शहरों में नशे की सप्लाई हो रही है, जिससे युवाओं तक इसकी पहुंच आसान हो गई है।
अभियान की मुख्य विशेषताएं, जो उम्मीद जगाती हैं
– सीधा संवाद: पुलिस अधिकारी स्कूल, कॉलेज और कोचिंग संस्थानों में युवाओं से सीधे बात कर रहे हैं, उन्हें नशे के खतरों के बारे में समझा रहे हैं। यह सिर्फ लेक्चर नहीं, बल्कि एक दिल से दिल तक की बात है।
– जन-जागरण की गूंज: रैलियां, नुक्कड़ नाटक और पोस्टर अभियान छात्रों, एनसीसी, एनएसएस और स्वयंसेवकों की भागीदारी से पूरे समाज में जागरूकता फैला रहे हैं। यह सिर्फ पुलिस का काम नहीं, बल्कि हर हाथ का सहयोग है।
– तस्करों पर लगाम: ड्रग पैडलर्स पर लगातार और सख्त कार्रवाई हो रही है। एक साथ कई जिलों में चलाए गए ऑपरेशन से तस्करों की कमर तोड़ी जा रही है। यह दिखाता है कि अपराधियों के लिए कोई जगह नहीं है।
– डिजिटल सहारा: गुप्त जानकारी देने के लिए मोबाइल ऐप और महिला हेल्पलाइन 181 को सक्रिय किया गया है, ताकि हर कोई निडर होकर मदद कर सके। आपकी एक जानकारी, कई जिंदगियां बचा सकती है।
– पूरे समाज की मुहिम: एनजीओ और धर्मगुरुओं की भागीदारी से यह सिर्फ पुलिस की नहीं, बल्कि पूरे समाज की मुहिम बन चुकी है।
– इस अभियान के तहत नशा विरोधी समितियां बनाकर स्थानीय समाज को भी अपनी जिम्मेदारी समझने के लिए प्रेरित किया गया है। जब शिक्षक, माता-पिता, धर्मगुरु और प्रशासन एकजुट होकर काम करते हैं, तब युवा भटकते नहीं, बल्कि उन्हें सही दिशा मिलती है।
बदलाव की मशाल: मप्र पुलिस का अभिनव प्रयास
मध्य प्रदेश पुलिस ने युवाओं को इस दलदल से निकालने के लिए एक क्रांतिकारी अभियान शुरू किया है – नशे से दूरी है ज़रूरी। यह सिर्फ एक प्रशासनिक पहल नहीं, बल्कि समाज को जगाने वाली एक मशाल है। इस अभियान की कमान खुद पुलिस महानिदेशक कैलाश मकवाणा ने संभाली है। उन्होंने इसे सिर्फ कानून-व्यवस्था का मामला नहीं, बल्कि हर नागरिक की सामूहिक जिम्मेदारी माना है।
समाधान और हमारा संकल्प: नशे से मुक्ति का पहला और सबसे महत्वपूर्ण कदम है – यह स्वीकार करना कि नशा एक घातक जहर है। जब हम इस सच्चाई को दिल से मान लेते हैं, तभी बदलाव की शुरुआत होती है। इसके बाद परिवार, समाज और संस्थाओं से सहयोग लेकर युवाओं को सही परामर्श, पुनर्वास और आत्मबल की ओर बढ़ाना होगा। हमें यह समझना होगा कि नशा केवल कानून-व्यवस्था की समस्या नहीं, बल्कि हर परिवार, हर मोहल्ले की एक गंभीर चुनौती है। मध्य प्रदेश पुलिस ने अपनी दृढ़ इच्छाशक्ति से यह साबित कर दिया है कि यदि इरादे मजबूत हों, तो बदलाव असंभव नहीं है। नशे से दूरी है ज़रूरी अब केवल एक अभियान नहीं, बल्कि एक प्रेरणादायक आंदोलन बन चुका है। आने वाले समय में यह पूरे देश के लिए एक मॉडल बन सकता है – कि कैसे पुलिस, समाज और युवा मिलकर अपने भविष्य को फिर से संवार सकते हैं, उसे नशे के अंधकार से निकालकर आशा और उवलता की ओर ले जा सकते हैं। क्या हम सब मिलकर इस नेक कार्य में अपनी भूमिका निभाएंगे और एक नशामुक्त, स्वस्थ और समृद्ध समाज का निर्माण करेंगे।
(लेखक पूर्व पुलिस अधिकारी हैं)