संभागीय संगठन मंत्रियों की फिर हो सकती है तैनाती

 भाजपा

गौरव चौहान/बिच्छू डॉट कॉम। विधानसभा चुनावों के मद्देनजर एक बार फिर से प्रदेश भाजपा में दो साल पुरानी संभागीय संगठन मंत्रियों की तैनाती की व्यवस्था बहाल हो सकती है। इसी के साथ पार्टी तीन प्रदेश सह संगठन मंत्रियों की भी तैनाती कर सकती है। इसके लिए संघ के अंदर भी मंथन का दौर जारी है। दरअसल संघ की दृष्टि से मप्र में तीन प्रांत हैं। इन प्रांतों के हिसाब से भाजपा में यह नई व्यवस्था बनाई जा सकती है, जिससे कि संगठन का काम और अधिक बेहतर किया जा सके। इसी तरह से माना जा रहा है कि प्रदेश के सभी दस संभागों में इस बार नए सिरे से संगठन मंत्रियों की व्यवस्था बहाल की जा सकती है। गौरतलब है कि पुरानी व्यवस्था में कुल आधा दर्जन संभागीय संगठन मंत्रियों से काम चलाया जा रहा था। इस मामले में भाजपा के एक वरिष्ठ नेता का कहना है कि संघ बेहद सोच विचार कर ही फैसला करता है। हमारी विचार धारा में व्यक्ति व पार्टी सेे सर्वोपरि राष्ट्र होता है। दरअसल प्रदेश में इसी साल के अंत में विधानसभा चुनाव होने हैं और उसके बाद लोकसभा चुनाव की बारी है। प्रदेश में इन दिनों अधिकांश उन सीटों पर पार्टी के अंदर असंतोष खदबदा रहा है , जहां पर कांग्रेस छोड़ भाजपा में आए नेता अभी विधायक हैं। इसी तरह से कुछ सीटों पर श्रीमंत समर्थकों और मूल भाजपा नेताओं के बीच भी तालमेल का अभाव बना हुआ है। दरअसल दो साल पहले अगस्त 2021 में प्रदेश संगठन में संगठन मंत्रियों की चली आ रही पुरानी व्यवस्था को समाप्त कर दिया गया था। जिसके बाद से न केवल संगठन में बिखराव होने लगा बल्कि, कई  बडे नेताओं द्वारा अपने इलाकों में मनमानी भी की जाने लगी है। यही नहीं कार्यकर्ताओं को भी अपनी बात रखने के लिए इसके बाद से भोपाल के चक्कर काटने पड़ रहे हैं। यह संगठन मंत्री भाजपा व संघ के बीच न केवल जमीन स्तर पर सेतु का काम करते थे , बल्कि आपसी तालमेल का काम भी देखते थे , जिसकी वजह से कार्यकर्ताओं में मतभेद और मनभेद होते ही उसे तत्काल शांत करा दिया जाता था, जिसकी वजह से इस तरह के मामले तूल नहीं पकड़ पाते थे। पुरानी व्यवस्था को समाप्त करने के पीछे की उस समय जो वजह बताई गई थी, उसके मुताबिक  संभागीय कार्यालय सत्ता और संगठन के नए केंद्र के रूप में काम करने लगे थे। विधायकों से लेकर जिलों में काम करने वाले पदाधिकारियों में भी संगठन मंत्रियों के प्रभाव में आकर फैसले लेने का प्रचलन बढ़ता जा रहा था। इतना ही नहीं, प्रशासनिक कार्यप्रणाली भी इनके हस्तक्षेप से प्रभावित हो रही थी।
उठाना पड़ा है निगम चुनाव में खामियाजा
दरअसल संभागीय संगठन मंत्रियों की व्यवस्था समाप्त करने का खामियाजा भाजपा को नगर निगमों के चुनाव में भी उठाना पड़ा। भाजपा बीते चुनाव में सभी 16 नगर निगमों में महापौर के पदों पर जीती थी , लेकिन इसके बाद बीते साल हुए चुनाव में भाजपा को महज नौ नगर निगमों से ही संतोष करना पड़ा है।  खास बात यह है कि भाजपा को उन शहरों में भी हार का सामना करना पड़ा है, जहां पर कभी भी भाजपा नहीं हारी है और उन्हें संघ की दृष्टि से भी बेहद मजबूत माना जाता है। खास बात यह है कि जिन छहों संभागीय संगठन मंत्रियों को हटाया गया था, उन्हें सबसे पहले प्रदेश संगठन में बतौर कार्यसमिति सदस्य बनाया गया और फिर बाद में उन्हें निगम मंडल की कमान भी सौंप दी गई।  यानि की इन संगठन मंत्रियों की सेहत पर तो कोई असर नहीं पड़ा , लेकिन संगठन  में जरुर बिखराव का असर दिखने लगा है।
तीन सह संगठन महामंत्री संभावित
बताया जा रहा है कि संघ इस पर भी विचार कर रहा है कि अगर संभागीय संगठन मंत्रियों की व्यवस्था बहाली संभव नही है तो विधानसभा चुनाव से पहले प्रदेश में तीन  सह संगठन मंत्री बना दिए जाएं, जिन्हें अलग -अलग अंचलों को प्रभार दिया जा सकता है। दरअसल प्रदेश भाजपा संगठन में पहले सह संगठन महामंत्री की व्यवस्था थी , लेकिन यह व्यवस्था भी हितानंद शर्मा के संगठन महामंत्री बनने के बाद से ठप पड़ी हुई है। हितानंद भी पहले बतौर प्रदेश संगठन मंत्री सुहास भगत के  सहयोगी काम कर चुके हैं। गौरतलब है कि बीजेपी के संभागों में तैनात संगठन मंत्रियों में शैलेंद्र बरुआ के पास जबलपुर और नर्मदापुरम की , जयपाल सिंह चावड़ा इंदौर और जितेंद्र लिटोरिया उज्जैन संभाग ,आशुतोष तिवारी ग्वालियर और भोपाल संभाग, श्याम महाजन रीवा-शहडोल और केशव सिंह भदौरिया सागर और चंबल का काम देख रहे थे।

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