
-वित्तीय वर्ष 2026-27 के बजट की तैयारियां पकड़ेंगी जोर
-विभागों के अपर मुख्य सचिव, प्रमुख सचिव और सचिव स्तर के अधिकारी करेंगे चर्चा
भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम। मप्र में विधानसभा के शीतकालीन सत्र की समाप्ति के बाद एक बार फिर से वित्तीय वर्ष 2026-27 के बजट की तैयारियां जोर पकड़ेंगी। गौरतलब है कि मप्र सरकार अगले वित्तीय वर्ष 2026-27 का बजट लोगों की भागीदारी के साथ तैयार कर रही है। इसके लिए आम जनता, विशेषज्ञों, संस्थाओं और व्यवसाय से जुड़े लोगों से सुझाव मांगे गए हैं। सरकार का कहना है कि बजट बनाने की प्रक्रिया अब पूरी तरह पारदर्शी और जनता की जरूरतों पर आधारित होगी। लोगों के सुझावों की मदद से बजट को ज्यादा व्यवहारिक, जनहितैषी और भविष्य की जरूरतों के अनुकूल बनाया जाएगा। राज्य सरकार की योजना है कि डेटा आधारित वित्तीय रणनीति अपनाकर अर्थव्यवस्था को मजबूत किया जाए, ताकि प्रदेश को वर्ष 2047 तक पूरी तरह विकसित राज्य बनाया जा सके। इसी लक्ष्य के लिए संसाधनों का बेहतर उपयोग और वित्तीय अनुशासन पर जोर दिया जा रहा है।
गौरतलब है कि मप्र सरकार के वित्तीय वर्ष 2026-27 के बजट की तैयारियों को लेकर दो राउंड की उप सचिव स्तर की चर्चा पूरी हो चुकी है। नवंबर के दूसरे पखवाड़े में बजट को लेकर सचिव स्तर की चर्चा शुरू होना थी, लेकिन द्वितीय अनुपूरक बजट की तैयारियों के चलते मुख्य बजट को लेकर सचिव स्तर की चर्चा आगे बढ़ गई है। आधिकारिक जानकारी के मुताबिक बजट को लेकर सचिव स्तर की चर्चा 15 दिसंबर से शुरू होगी। वित्त विभाग ने इस संबंध में संशोधित शेड्यूल जारी कर दिया है। इसके अनुसार 22 विभागों की बजट चर्चा दिसंबर में और शेष 32 विभागों की बजट चर्चा जनवरी में होगी। इसमें विभिन्न विभागों के अपर मुख्य सचिव, प्रमुख सचिव और सचिव स्तर के अधिकारी बजट पर चर्चा करेंगे। इस दौरान विभागों के बजट की राशि फायनल होगी। 15 दिसंबर को आनंद, कुटीर एवं ग्रामोद्योग, सहकारिता, प्रवासी भारतीय, भोपाल गैस त्रासदी राहत एवं पुनर्वास, लोक सेवा प्रबंधन, धार्मिक न्यास एवं धर्मस्व, विमानन एवं लोक परिसंपत्ति प्रबंधन विभाग की समीक्षा होगी। वहीं 16 दिसंबर को महिला एवं बाल विकास, श्रम व परिवहन विभाग, 17 दिसंबर को खेल एवं युवा कल्याण, खनिज साधन, सामाजिक न्याय, मछुआ कल्याण, जेल, उद्यानिकी एवं खाद्य प्रसंस्करण विभाग और 18 दिसंबर को वाणिज्यिक कर, विमुक्त घुमंतु व अर्धघुमंतु जनजाति, स्कूल शिक्षा और किसान कल्याण एवं कृषि विकास विभाग की समीक्षा की जाएगी।
बजट राशि की उपयोगिता पर होगा मंथन
आधिकारिक जानकारी के मुताबिक उप सचिव स्तर की चर्चा में विभिन्न विभागों की योजनाओं में बजट राशि के प्रावधान, योजना की उपयोगिता आदि को लेकर विस्तार से चर्चा की गई। चर्चा के दौरान नई योजना के प्रस्ताव और योजना विशेष में बजट के प्रावधान को लेकर सामने आए ऐसे बिंदु जिन पर उप सचिव स्तर के अधिकारी निर्णय नहीं ले सके, ऐसे बिंदुओं पर सचिव स्तर की चर्चा के दौरान अंतिम निर्णय लिया जाएगा। सचिव स्तर की चर्चा के दौरान विभिन्न विभागों के अपर मुख्य सचिव, प्रमुख सचिव व सचिव वित्त विभाग के समक्ष अपनी बात रखेंगे की उन्हें किसी योजना विशेष में इतनी राशि की जरूरत क्यों है और बजट में इसके लिए पर्याप्त राशि का प्रावधान किया जाए।
रोलिंग बजट भी हो रहा तैयार
बता दें कि इस बार सरकार जीरो बेस्ड बजटिंग प्रक्रिया से बजट तैयार करने के साथ ही आगामी तीन साल के लिए रोलिंग बजट भी तैयार कर रही है। इसलिए वित्त विभाग ने बजट की तैयारिया जल्दी शुरू कर दी थी। रोलिंग बजट एक ऐसी वित्तीय योजना है, जिसमें आगामी 3 साल के लिए बजट बनाया जाता है, लेकिन यह हर साल अपडेट होता है। यानी पहले वर्ष की समाप्ति के साथ अगले वर्ष के लिए नया अनुमान जोड़ दिया जाता है, जिससे योजना हमेशा फॉरवर्ड लुकिंग बनी रहती है। ऐसे ही जीरो बेस्ट बजटिंग में बजट अनुमान शून्य से शुरू किए जाते हैं। इस बजटिंग प्रक्रिया के अंतर्गत विभाग द्वारा ऐसी योजनाओं को चिन्हांकित किया जा सकेगा, जो वर्तमान में अपनी उपयोगिता खो चुकी है और जिन्हें समाप्त किया जा सकता है। मप्र सरकार ने पहली बार 2025-26 का बजट जीरो बेस्ड बजटिंग प्रक्रिया से तैयार किया था।
केंद्रीय योजनाओं पर भी रहेगी निगरानी
जिन विभागों को भारत सरकार से सीधे फंड प्राप्त होता है, उन्हें वह राशि भी बजट प्रस्ताव में दर्शानी होगी। इसके अलावा, आफ-बजट ऋण, प्रोत्साहन योजनाओं का वित्तीय असर, और नवीन योजनाओं की स्वीकृति की प्रक्रिया को भी स्पष्ट किया गया है। सरकार ने यह भी स्पष्ट किया है कि बजट की तैयारी के लिए जो आइएफएमआइएस प्रणाली अपनाई गई है, उसमें तय समय के बाद प्रविष्टि की अनुमति नहीं दी जाएगी। विभागों को निर्देशित किया गया है कि वे सभी प्रस्ताव निर्धारित समय-सीमा में दर्ज करें और विभागीय बैठक के पूर्व पूरी जानकारी तैयार रखें। प्रत्येक योजना के लिए यह स्पष्ट करना आवश्यक होगा कि उस पर खर्च क्यों किया जा रहा है, उसका लाभ किसे होगा और उसका सामाजिक व आर्थिक असर क्या होगा। इस प्रक्रिया में गैर-प्रभावी योजनाओं को समाप्त करने और समान प्रकृति की योजनाओं को एकीकृत करने पर भी विचार किया जाएगा।
