नर्मदा में गिर रहा गंदा पानी

नर्मदा
  • 21 में से 12 सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट अभी भी अधूरे

भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम। मप्र की जीवनदायिनी नर्मदा नदी, जो लाखों लोगों की प्यास बुझाती है और देश की सबसे पवित्र नदियों में से एक मानी जाती है, लगातार दूषित हो रही है। घरों से निकलने वाला गंदा पानी सीधे नर्मदा में बह रहा है। इसे रोकने के लिए मप्र सरकार ने खरगोन के मंडलेश्वर, महेश्वर, बड़वाह और सनावद समेत नर्मदा किनारे बसे 20 शहरों में सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट लगाने का निर्णय लिया था। हालांकि, हकीकत यह है कि 20 शहरों में जो 21 सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट बनने थे उनमें से 12 अभी भी अधूरे हैं। इस कारण शहरों का गंदा पानी नर्मदा में लगातार गिर रहा है।
मप्र की जीवनदायिनी मां नर्मदा नदी को प्रदूषण मुक्त करने के लिए प्रदेश सरकार लगातार प्रयास करने का दावा कर रही है, लेकिन यह दावे कागजी साबित हो रहे हैं। नर्मदा जल में प्रदूषण बढ़ता ही जा रहा है। नर्मदा जल को प्रदूषण से मुक्त करने का विषय सबसे अहम माना जाता रहा है। राजनीतिक दल भी अपने घोषणा पत्रों में इसका उल्लेख करते हैं, लेकिन चुनावों के बाद इस विषय को भूल जाते हैं।
 सिर्फ नौ सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट ही बने
नर्मदा नदी में सीवेज मिलने से रोकने डेढ़ साल में 21 में से महज नौ सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट बन पाए हैं। एनजीटी ने आश्चर्य जताया है कि एसटीपी बनने में इतना समय कैसे लग सकता है? इसके साथ ही शासन ने जिन शहरों में एसटीपी बनने का दावा किया है, उनकी जांच करने के निर्देश एमपीपीसीबी को दिए हैं। जहां एसटीपी नहीं बन पाए हैं, वहां अभी तक का पर्यावरण क्षति हर्जाना आकलित कर रिपोर्ट देने को कहा है। राज्य शासन द्वारा पेश रिपोर्ट में बताया गया है कि 21 सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) शुरू हो गए हैं। अमरकंटक, जबलपुर, भेड़ाघाट, साईखेड़ा, ओंकारेश्वर, बड़वाह, धरमपुरी, अंजड़, बुधनी में एसटीपी बनकर शुरू हो चुके हैं। डिंडोरी, मंडला, नरसिंहपुर, नर्मदापुरम, नसरुल्लागंज, नेमावर, सनावद, मंडलेश्वर, महेश्वर, धामनोद, बड़वानी, सेंधवा में एसटीपी का कार्य पूर्ण नहीं हो पाया है। सीवेज नर्मदा में मिल रहा है। शासन की तरफ से इसका कारण कॉन्ट्रेक्टर का काम छोडकऱ जाना बताया गया है। इससे बार-बार टेंडर करने पड़े।
 ड्रग रजिस्टेंट बैक्टीरिया पनप रहे
एनजीटी ने चेताया है, ताजा रिसर्च में सामने आया है कि पानी में सीवेज मिलने से अत्यधिक ड्रग रजिस्टेंट बैक्टीरिया पनपते हैं। इन पर कोई भी दवा असर नहीं करती है। अंतत: पीडि़त व्यक्ति की मौत हो जाती है। एनजीटी ने कीर्तिकुमार सदाशिव भट्ट और डॉ. पीजी नाजपांडे की याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए यह निर्देश दिए हैं। ट्रिब्यूनल ने आदेश में कहा है कि नर्मदा से संबंधित वेबसाइट पर भी जानकारी दी गई है कि नदी के पानी में घरेलू सीवेज मिलने से मनुष्यों को गंभीर बीमारियां हो सकती हैं। इनमें कॉलरा, हिपेटाइटिस, स्किन डिसीज, डिसेंट्री शामिल हैं। याची ने दो रिसर्च रिपोर्ट के हवाले से बताया है कि कई स्थानों पर पानी पीने व घरेलू उपयोग के लायक नहीं बचा। कुछ स्थानों पर औद्योगिक अपशिष्ट बिना ट्रीटमेंट के मिलाया जा रहा है। सीपीसीबी के अध्ययन के अनुसार मंडला से भेड़ाघाट तक 160 और सेठानी घाट नर्मदापुरम से नेमावर तक नर्मदा बहुत प्रदूषित है। किनारे के 24 शहरों का सीवेज नदी में मिल रहा है।  यही नहीं नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने यह भी कहा है कि नर्मदा के दोनों तटों पर बड़ी संख्या में अवैध रूप से मठ, मंदिर, लॉज, धर्मशाला बनते जा रहे हैं। कई स्थानों पर नदी किनारे अवैध कॉलोनियां भी बन गई हैं। इनका पूरा लिक्विड डिस्चार्ज बिना किसी ट्रीटमेंट के सीधे नर्मदा नदी में मिल रहा है। इस वजह से गंदगी बढ़ रही है।

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