- चुनाव 2028 के लिए कांग्रेस के दिग्गज आपस में एक दूसरे के खिलाफ जमावट में लगे हैं…

भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम
दस साल मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री और अविभाजित मध्यप्रदेश में कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष के नाते आठ साल का लंबा कार्यकाल दिग्विजय सिंह भूल नहीं पा रहे हैं। 78 वर्षीय बुजुर्ग लेकिन युवाओं की तरह सक्रिय राजनेता की एक बार फिर इच्छा मध्यप्रदेश की कमान संभालने की दिखाई देती है। नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंघार और प्रदेश अध्यक्ष जीतू पटवारी को इसका संज्ञान ले लेना चाहिए। स्वयं पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ का घाव भी अभी हरा ही है। चुनाव 2028 में है। पर कांग्रेस के ये दिग्गज आपस में एक दूसरे के खिलाफ अपनी जमावट में लगे हैं। हाल ही में एक चैनल को दिए पॉडकास्ट में दिग्विजय सिंह की कही बातें ही इस ओर इशारा करती हैं। वह कहते हैं 2003 में हार की नैतिक जिम्मेदारी उन्होंने ली और 10 साल कोई पद न लेने की शपथ ली। चुनाव भी नहीं लड़ा। वे कहते हैं नेतृत्व को जवाबदेही लेनी चाहिए। क्या परोक्ष रूप से 2023 में कांग्रेस की हार के बाद कमलनाथ को वह इशारा कर रहे हैं, जिन्होंने बीच चुनाव प्रचार में कार्यकर्ताओं से कहा था कपड़े फाड़ने हैं तो दिग्विजय सिंह के फाड़ों। दिग्विजय सिंह यहीं नहीं रुकते। वह कहते हैं कि 2003 की हार के बाद मध्यप्रदेश में उन्होंने सक्रियता कम कर दी। 2006 के बाद महासचिव के नाते उन पर आंध्र और उत्तर प्रदेश का प्रभार रहा। यहां कांग्रेस कहाँ है, इस पर उन्होंने कुछ नहीं कहा। प्रश्न उनसे यह था कि दस साल कांग्रेस की सरकार में ऐसा क्या हुआ कि इन 22 सालों में कांग्रेस वापसी कर ही नहीं पा रही सिवाय मात्र 15 माह के। सिंह ने इसके लिए उनके कार्यकाल में वित्तीय संकट को कारण बताते हुए यह कहा कि जमीनी स्तर पर 2004 से 2017 के बीच काम ही नहीं हुआ। इस 13 साल की अवधि में सुभाष यादव (2003-08), सुरेश पचौरी (2008-11), कांतिलाल भूरिया (2011-14), अरुण यादव (2014-18) और कमलनाथ (2018-23) तक प्रदेश अध्यक्ष रहे। सिंह ने बिना किसी का नाम लिए सभी को निशाने पर लिया है। आगे वह कहते हैं कि 2017 में उन्होंने नर्मदा परिक्रमा 16 माह 10 दिन में पूरी की। वह यह यात्रा कहते तो आध्यात्मिक अनुभूति के लिए है। बकौल सिंह की यह यात्रा 113 विधानसभाओं से गुजरी। और इन स्थानों पर 2018 में कांग्रेस को अच्छी सफलता मिली। 2018 में चुनाव प्रचार अभियान समिति की कमान ज्योतिरादित्य सिंधिया के पास थी और संगठन की कमलनाथ के पास। सिंधिया यह मानकर चल रहे थे कि मुख्यमंत्री वह बनेंगे। पर दिग्विजय सिंह ने 1993 का व्यवहार कमलनाथ को लौटाया। वर्ष 1993 में स्व. माधवराव को मुख्यमंत्री बनाने की बात आगे बढ़ रही थी पर कमलनाथ के हस्तक्षेप से दिग्विजय सिंह मुख्यमंत्री बने। यह इतिहास का एक तथ्य है। अब जबकि 2028 में कांग्रेस फिर चुनाव मैदान में उतरेगी, ऐसे में सिंह के वक्तव्य प्रदेश कांग्रेस के लिए शुभ नहीं है।
जीतू पटवारी ने नई जमावट की
वहीं, जीतू पटवारी ने नई जमावट की है। एक साहसिक प्रयोग के साथ वरिष्ठ नेताओं को, जो मंत्री रहे हैं, प्रदेश कांग्रेस में रहे हैं, जिले की कमान दी गई है। इसके खतरे भी हैं, विरोध सडक़ों पर है। ऐसे संवेदनशील समय में दिग्विजय उवाच कांग्रेस हाईकमान को एक संकेत भी है। अगले साल सिंह का राज्यसभा कार्यकाल भी समाप्त हो रहा है। क्या यह बयान उसके लिए भी कांग्रेस नेतृत्व पर दबाव बनाने के लिए है यह देखना होगा। बहरहाल, कांग्रेस में सिंह के असमय साक्षात्कार पर प्रदेश में अंदर ही अंदर बैचेनी है। कमलनाथ के अलावा किसी नेता ने अभी प्रतिक्रिया नहीं दी है। पर इसकी गूँज आलाकमान तक पहुँची है। वहीं से संकेत की संभवत: प्रतीक्षा है।
