मध्यप्रदेश सरकार के लिए विकास कार्य बने चुनौती

मध्यप्रदेश सरकार
  • चुनावी घोषणाओं से मप्र पर बढ़ा आर्थिक बोझ

    भोपाल/गौरव चौहान/बिच्छू डॉट कॉम। मप्र में भाजपा आगामी विधानसभा चुनाव विकास के मुद्दे पर लड़ेगी। इसके लिए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का पूरा फोकस विकास योजनाओं पर है। लेकिन पंचायत और नगरीय निकाय चुनाव के दौरान की गई चुनावी घोषणाएं सरकार के लिए बड़ी चुनौती साबित होने वाली है। इसकी वजह यह है कि पुरानी योजनाओं-परियोजनाओं को पूरा करने में प्रदेश पर लगातार कर्ज का बोझ बढ़ता जा रहा है। ऐसे में सरकार के लिए नई घोषणाएं पूरा करना टेढ़ी खीर साबित हो सकता है। गौरतलब है कि प्रदेश में आर्थिक बोझ के कारण कई निगम-मंडल में वेतन के लाले पड़ने लगे हैं। गौरतलब है कि कोरोना संक्रमण के दो साल के दौरान प्रदेश की अर्थव्यवस्था प्रभावित हुई, लेकिन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने इसका असर लोगों पर नहीं पड़ने दिया। जबकि विकास के कार्य प्रभावित हुए हैं। अब सरकार पूरी तरह चुनावी मोड में आ गई है। ऐसे में अब सरकार के लिए आर्थिक मोर्चे पर चुनौतियां ज्यादा हैं, क्योंकि चुनाव में सरकार ने बड़े-बड़े वादे किए। इनका बोझ सरकारी खजाने पर पड़ना है।
    निकायों के सामने वित्तीय संकट
    इधर, नव गठित नगर पालिका और नगर परिषदों के सामने बड़ी चुनौती खाली खजाने की है। कई निकायों में कर्मचारियों को समय पर वेतन तक नहीं मिल पा रहा है। इस मामले में नगर परिषदों की वित्तीय स्थिति ज्यादा खराब है। इसके पीछे की वजह पंचायतों को नगर परिषद बनाना है। इनमें न तो वित्तीय संसाधन हैं और न आय का बड़ा जरिया। कर्मचारियों की भी पूरे मानदंड के अनुसार भर्ती कर ली गई है। इससे निकायों का स्थापना खर्च बढ़ गया है। वर्ष 2018 तक 378 निकाय थे। सरकार इन्हें चुंगी क्षतिपूर्ति के रूप में 324 करोड़ रुपए देती थी। इसमें 21 प्रतिशत राशि पेंशन अंशदान व बिजली बिल की कटौती कर दी जाती थी। इसके बाद चुंगी क्षतिपूर्ति की राशि 300 करोड़ रुपए कर दी गई। इसके साथ ही निकायों की संख्या 378 से बढ़कर 413 हो गई। 324 करोड़ रुपए जहां 378 निकायों को दिए जाते थे, वहीं, अब 300 करोड़ रुपए में 413 निकायों को बांटे जाने लगे हैं। वहीं धामनौद, चंदेरी, ब्यावरा, राजगढ़, खिलचीपुर, तेंदूखेड़ा, सुल्तानपुर, कुरवाई, हरदा, सुठालिया, लटेरी, सेंधवा, सतवास, लोहार्दा, बदनावर, अकोदिया, माकडौन आदि निकायों में ज्यादा दिक्कतें हैं। मप्र नपा-नगर निगम कर्मचारी संघ के अध्यक्ष सुरेन्द्र सिंह सोलंकी का कहना है कि सरकार को नए निकाय गठित करने के साथ साथ चुंगी क्षतिपूर्ति की राशि भी बढ़ानी होगी। नए नगर परिषद में नए सिरे से संरचना तैयार करनी पड़ती है और उसकी आय भी ज्यादा नहीं होती है। इससे कर्मचारियों को समय पर वेतन नहीं मिलता है।बिना बजट घोषणाओं का अंबार
    पंचायत और नगरीय निकाय चुनावों में सरकार ने खूब घोषणाएं की हैं। मौजूदा वित्तीय वर्ष में इन नए वादों के लिए बजट में प्रावधान नहीं किया गया है, लेकिन विकास कार्य अभी से शुरू करने होंगे। कारण यह है कि अगले साल नवंबर में विधानसभा चुनाव होना है। उससे पहले सरकार के सामने वादों को पूरा करने की चुनौती है। हालांकि कुछ राहत यह है कि कोरोना काल के बाद राजस्व की स्थिति संभल रही है। सरकार ने इस साल बजट में 1.95 लाख करोड़ से ज्यादा की आमदनी का अनुमान रखा है। इनमें 72 हजार करोड़ विभिन्न टैक्स के जरिए वसूली होना है। प्रदेश में सड़कों पर दो वर्ष में 2 हजार करोड़ खर्च करने का वादा है। इसके तहत इसी साल 1 हजार करोड़ रुपए की जरूरत रहेगी। नगरोदय कार्यक्रम के लिए 5 साल में 21 हजार करोड़ से ज्यादा खर्च करने का वादा है। पहले साल औसत चार हजार करोड़ रुपए चाहिए। 16 नगर निगमों में तीन हजार बसें चलाने का वादा है। इसी के साथ 5 हजार करोड़ से शहरों को कचरा मुक्त बनाने की प्लानिंग है। एक साल में भोपाल और इंदौर में मेट्रो रेल चलाने का वादा है। नवंबर 2023 के चुनाव से पहले सरकार मेट्रो का संचालन चाहती है।
    कर्ज का बोझ लगातार बढ़ता जा  रहा
    एक तरफ सरकार घोषणाएं करती जा रही है, वहीं दूसरी तरफ कर्ज का बोझ बढ़ता जा रहा है। इस साल का राज्य का मुख्य बजट 2.79 लाख करोड़ रुपए का है, जबकि कर्ज 2.87 लाख करोड़ रुपए के आंकड़े को पार हो चुका है। यह अलार्मिंग स्थिति है। हालांकि ऐसा इसलिए हुआ कि केंद्र सरकार ने आॅफ बजट कर्ज को भी मुख्य बजट में शामिल करने के आदेश दिए हैं। इसके तहत अब भी 35 हजार करोड़ औसत आॅफ बजट कर्ज है, जो इसमें शामिल हो सकता है।

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