पूरा बजट खर्च नहीं कर पाए विभाग

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  • कैग की रिपोर्ट में सामने आई विभागों की लापरवाही

    भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम। मप्र विधानसभा के मानसून सत्र में पटल पर भारत के नियंत्रक महालेखाकार परीक्षक (कैग) की रिपोर्ट रखी गई। इस रिपोर्ट में जहां कई अनियमितताएं सामने आई हैं, वहीं यह तथ्य भी सामने आया है कि कई विभाग पूरा बजट भी खर्च नहीं कर पाए हैं। कैग ने अनुशंसा की है कि बजट अनुमानों को यथार्थवादी होना चाहिए। बचत और आधिक्य व्यय को कम करने कुशल नियंत्रण तंत्र सुनिश्चित करना चाहिए। कैग ने इस बात पर जोर दिया कि सरकार को वित्तीय वर्ष की समाप्ति के पहले विभिन्न योजनाओं में अनुपूरक राशि की आवश्यकता का आकलम करना चाहिए।  विधानसभा में प्रस्तुत राज्य वित्त को लेकर रिपोर्ट में सरकार के बजट को लेकर कई आपत्तियां उठाई गई। इसमें बताया गया कि वर्ष 2023-24 के तीन लाख 27 हजार करोड़ रुपये से अधिक के बजट में लगभग 68 हजार करोड़ रुपये का उपयोग ही नहीं हुआ। 58 हजार करोड़ रुपये के अनुपूरक प्रविधान में से 29,098 करोड़ रुपये का अधिक प्रविधान किया गया। 1,575 करोड़ रुपये के राजस्व व्यय को पूंजीगत व्यय में दर्ज कर उसे अतिरिक्त व्यय बताया गया। रिपोर्ट में ध्यान दिलाया गया कि वर्ष 2023-24 में महिलाओं को सशक्त बनाने लाड़ली बहना योजना का क्रियान्वयन किया गया। इसके लिए बजट में 14,743 करोड़ रुपये का प्रविधान किया लेकिन यह पहल राजकोषीय व्यवस्था को प्रभावित कर सकती है। एनसीसी का सुदृढ़ीकरण, कमियों की पूर्ति के लिए अग्रिम, भवन निर्माण व इलेक्ट्रानिक – मैन्युफैक्चरिंग क्लस्टर की स्थापना में बजट नियंत्रण अधिकारी ने जानकारी ही एकत्र नहीं की। इस कारण 2,051 करोड़ व्यय नहीं हुए। 13,669 करोड़ का एकमुश्त प्रविधान तो किया पर 9,338 करोड़ रुपये अप्रयुक्त वहीं कृषि, जनजातीय कार्य, खेल, अजा कल्याण व राजस्व में 8,093 करोड़ का उपयोग नहीं हुआ।
    अवैध खनन से सरकार का अरबों का नुकसान
    कैग की रिपोर्ट में बताया गया है कि मप्र में पर्यावरण मंजूरी की निर्धारित सीमा से अधिक अवैध खनन किए गए। संबंधित जिला खनन अधिकारियों ने अवैध रूप से निकाले गए खनिजों की कीमत के बाजार मूल्य का 10 गुना या रायल्टी का 20 गुना, जो भी अधिक हो वसूलने में विफल रहे। इसके परिणामस्वरूप 712.77 करोड़ का राजस्व नुकसान हुआ। कैग की वर्ष 2022 की रिपोर्ट में खनिज विभाग में हुई गड़बड़ी सामने आई है। रिपोर्ट में यह भी बताया गया कि छिंदवाड़ा, सागर, सीहोर जिला खनन कार्यालयों में दस खनन पट्टाधारकों के पास स्वीकृत खनन योजनाएं नहीं थीं, लेकिन वे अधिनियमों /नियमों और सरकारी आदेशों का उल्लंघन करते हुए खनन कर रहे थे। वहीं आबकारी विभाग के शराब दुकानों के लाइसेंस के आवंटन के दौरान आवेदक की वित्तीय स्थिति का आकलन करने का कोई प्रविधान नहीं था। इससे शासन को 9.58 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ। उन बैंक गारंटियों को स्वीकार कर लिया जो अधिकृत लाइसेंसियों के नाम पर नहीं थीं, बैंक गारंटियों का सत्यापन भी नहीं किया। देशी शराब के भंडारगारों और बाटलिंग इकाइयों में न्यूनतम स्टाक न रखने पर आर्थिक जुर्माना नहीं लगाया। 2020-21 में सरेंडर किए गए लाइसेंसों की वसूली नहीं की गई। ऐसे 2,569 प्रकरणों में कुल 756.14 करोड़ रुपये राजस्व नुकसान हुआ।
    किसानों को महंगी दर पर बेची गई खाद
    प्रदेश में किसानों को खरीफ और रबी फसलों के लिए खाद की आपूर्ति राज्य सहकारी विपणन संघ के माध्यम से की जाती है लेकिन न तो आवश्यकता का ठीक से आकलन किया जाता है और न को ही वितरण व्यवस्था बनाई जाती है। यहां तक की अग्रिम खरीदी के लिए छूट का प्रस्ताव करने के बाद भी किसानों अधिक दर पर विक्रय किया गया। किसानों से 10.50 करोड़ रुपये अधिक वसूले गए। दूसरी ओर अधिक दर पर खाद खरीदकर कम दर पर बेचा गया। इससे संघ को 4.38 करोड़ रुपये की हानि हुई। यह बात गुरुवार को विधानसभा में प्रस्तुत कैग के प्रतिवेदन में सामने आई। कैग ने पाया कि खाद की आवश्यकता का आकलन करने के लिए भारत सरकार के जो पैमाने हैं, उसका पालन नहीं किया गया। पिछले वर्ष की खपत के आधार पर अनुमान लगाकर खरीफ सीजन के लिए 20 से 24 प्रतिशत और रबी के लिए 11 से 35 प्रतिशत के बीच वृद्धि की। सब्जियों और उद्यानिकी फसलों को इसमें शामिल ही नहीं किया। सर्वे में 250 किसानों से पता चला कि 56 प्रतिशत किसानों ने खाद का उपयोग किया। खाद का आकलन कृषि विभाग ने एक लाख 19 हजार टन का किया था लेकिन चार हजार 116 टन ही खरीदा गया। 2019 में आपूर्तिकर्ताओं ने खरीफ अग्रिम अवधि के लिए डीएपी पर 1,100 और एमओपी पर 700 रुपये प्रति टन छूट का प्रस्ताव दिया। फरवरी 2019 में उर्वरक समन्वय समिति ने नुकसान की प्रतिपूर्ति के दावे के विरुद्ध छूट की राशि को समायोजित करने का निर्णय लिया लेकिन विक्रय दर में छूट पर विचार नहीं किया गया। इसके कारण किसानों के ऊपर 10.50 करोड़ रुपये का अतिरिक्त वित्तीय बोझ पड़ा।

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