नई प्रयोगशालाओं में देरी, मिलावट जांच में बन रहीं बाधक

मिलावट

जबलपुर में बनकर तैयार , लेकिन नहीं की जा रही शुरू

भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम। एक तरफ सरकार मिलावटखोरी रोकने के दावे करती है, तो दूसरी तरफ प्रदेश में बनने वाली प्रयोगशालाओं के शुरु होने में देरी हो रही है। ऐसे में मिलावटी खाद्य सामग्री का का पता कैसे लगे यह यक्ष प्रश्र बना हुआ है।  यही वजह है कि पूर्व में लिए गए करीब पांच हजार नमूनों की जांच में देरी हो रही है। इनमें से अधिकांश नमूने मावा, पनीर, घी, मक्खन, मिठाई, तेल सहित अन्य खाद्य पदार्थों से संबंधित हैं। दरअसल यह नमूने खाद्य सुरक्षा प्रशासन की टीमों द्वारा भोपाल, जबलपुर, इंदौर, ग्वालियर सहित अन्य जिलों से लिए गए हैं। इनको टीमों ने जांच के लिए शासकीय और निजी प्रयोगशालाओं में भेजा था , लेकिन स्वयं की प्रयोगशाला नहीं होने से इनकी जांच समय पर नहीं हो पाती है। यही कारण है कि मिलावटी पदार्थ बेचने वाले कारोबारियों की भी समय पर पहचान होना मुश्किल होता है। दरअसल प्रदेश में अभी तक भोपाल में ही जांच होती है। जिस पर भार अधिक होने की वजह से कई बार निजी प्रयोगशालाओं में नमूनों को जांच के लिए भेजा जाता है। हालांकि सरकार प्रदेश में तीन और नई शासकीय प्रयोगशालाओं का निर्माण करा रही है। लेकिन उनके शुरु होने में समय लग रहा है। इनके शुरु होने से नमूनों की जांच में आसानी हो जाएगी।
शुरू होने का इंतजार
मिलावटी खाद्य पदार्थों के सेंपल की जांच के लिए अब जबलपुर के डुमना रोड पर अत्याधुनिक संसाधनों से युक्त लैब तैयार है, इसमें हर साल ढाई हजार सेंपल तक जांचने की क्षमता है और साढ़े 3 करोड़ रुपए से इसका निर्माण करवाया गया है। इस लैब के बनने से महाकौशल व विंध्य क्षेत्र को फायदा होगा। तैयार हो चुकी इस लैब को शुरू करने में हो रही देरी की वजह से इसका फायदा नहीे मिल पा रहा है।
सर्वाधिक मिलावट ग्वालियर अंचल में
प्रदेश के अधिकांश हिस्सों में मावा व सरसों के तेल की आपूर्ति ग्वालियर अंचल से की जाती है।  दीपावली, होली, रक्षाबंधन सहित अन्य त्यौहारों पर मावा की मांग में भारी वृद्धि हो जाती है। इसका फायदा उठाते हुए मिलावटखोर इसमें भारी मिलावट करने में पीछे नहीं रहते हैं। इस दौरान जानकारी मिलने पर खद्य विभाग बड़े पैमाने पर नमूने लेकर जांच के लिए भेजती है, लेकिन जब तक जांच रिपोर्ट आती है, तब तक मावा का उपयोग हो चुका होता है। त्योहारी सीजन में तो अकेले भोपाल में ही ग्वालियर और उसके आसपास के इलाकों से हर दिन 15 से लेकर 20 क्विंटल तक मावा अकले भोपाल ही आता है। ऐसे में ग्वालियर की प्रयोगशाला शुरू होने से काफी हद तक मावा की मिलावट को स्थानीय स्तर पर ही पकड़ा जा सकेगा।
दोगुना  लग रहा समय
खाद्य सुरक्षा विभाग के पास अभी एकमात्र प्रशेगशाला है। वह भोपाल में है। इसमें भोपाल और उसके आसपास के जिलों से नमूने जांच के लिए भेजे जाते हैं। स्टाफ की कमी और प्रयोगशाला की कम क्षमता की वजह से अभी यहां पर जांच में दोगुना समय लगता है । नियमानुसार नमूनों की जांच रिपोर्ट 14 दिनों में मिल जानी चाहिए , लेकिन यहां पर इस रिपोर्ट के आने में करीब एक माह का समय तक लगता है। अब प्रदेश में सरकार इंदौर, जबलपुर और ग्वालियर में तीन बड़ी प्रयोगशालाएं बनावा रही है। इसमें से इंदौर की प्रयोगशाला का काम लगभग पूरा हो चुका है, वहीं जबलपुर में भी इसके निर्माण का काम तेजी से किया जा रहा है, जबकि ग्वालियर की प्रयोगशाला का काम अभी रफ्तार नहीं पकड़ सका है।

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