दो-दो ओलम्पिक पदक जीतने वाली बेटी दर-दर की ठोकर खाने को मजबूर

ओलम्पिक पदक
  • पिता की हो चुकी है मौत, घोषणा के बाद भी नहीं मिला घर व दुकान

एजेंसी/रीवा/बिच्छू डॉट कॉम। प्रदेश के रीवा की जिस लड़की ने ग्रीस ओलंपिक में प्रदेश का ही नही देश का नाम दो -दो ओलंपिक पदक जीतकर रोशन किया था, वह सरकारी उपेक्षा का शिकार होकर अब दूसरों के शादी ब्याह या फिर अन्य इसी तरह के आयोजनों में खाना बनाकर अपना पेट पालने को मजबूर बनी हुई है। खास बात यह है कि उस पर नगर निगम को भी तरस नहीं आया और उसके द्वारा अतिक्रमण बताकर उसकी पुश्तैनी दुकान तक को ढहाया जा चुका है।  हद तो यह हो गई, तत्कालन केन्द्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ने उस समय उसे पांच लाख रुपए, मकान और दुकान देने की घोषणा की थी, जिसमें से राशि तो मिल गई, लेकिन सालों के इंतजार के बाद मकान व दुकान आज तक उसे नहीं मिल सकी है। दरअसल रीवा की इस दिव्यांग बेटी सीता साहू ने मंदबुद्धि दिव्यांग कोटे से एथेंस ओलम्पिक-2011 में दो कांस्य पदक जीत कर सभी को चौंका दिया था। खास बात यह है कि पूरे शहर में जगह-जगह फैले अतिक्रमण के मामले में आंखें बंद किए रहने वाले अफसरों को पदक जीतने वाली इस बेटी की पुश्तैनी दुकान के अतिक्रमण होने की एक दिन अचानक याद आयी और फिर उसे नेस्तानाबूत कर दिया गया। जिसके बाद उसके माता पिता की आय का साधन ही समाप्त हो गया। इसके बाद से ही वह और उसका परिवार रोजी-रोटी को मोहताज है। रीवा के ज्यादातर लोग एक दशक से सीता को समोसे वाली ओलम्पिक गर्ल कहते हैं, लेकिन प्रशासन ने ये तमगा भी छीन लिया। अब मजबूरी में परिवार शादी, विवाह, पार्टी में कुकिंग का आॅर्डर लेकर पेट पालने को मजबूर है। इस बेटी का जन्म फरवरी 1996 में रीवा शहर के धोबिया टंकी के समीप साहू मोहल्ले में हुआ था। वह बताती है कि उसके दिव्यांग होने की वजह से पिता पुरुषोत्तम साहू और माता किरण ने मेरा मंदबुद्धि स्कूल में दाखिला करा दिया। स्कूल के दिनों में तत्कालीन हेड मास्टर रामसेवक साहू ने मुझे उड़नपरी बोलते हुए एथलेटिक्स के लिए आगे बढ़ाया। मैंने स्कूल के दिनों में जिला, संभाग, राज्य और देश के लिए कई बार एथलेटिक्स प्रतियोगिताओं में भाग लिया। इसी बीच 14 साल की उम्र में एथेंस ओलम्पिक-2011 के लिए मेरा चयन हो गया। ग्रीस शहर में 18 दिन तक चले ओलम्पिक-2011 में मैं 100 मीटर और 1600 मीटर की दौड़ में तीसरा स्थान पाया, जिसकी वजह से उसे दो-दो कांस्य पदक मिले। पदक मिलते ही पूरा देश खुशी के मारे झूम उठा था। दिव्यांग कोटे से मेडल जीतने पर मेरे दुनिया भर में चर्चे थे। वहीं 400 मीटर की एथलेटिक्स प्रतियोगिता में मैंने चौथा स्थान हासिल किया था। इसके बाद विशेष प्रमाण पत्र से नवाजा गया। शहर का साहू मोहल्ला समोसा के हलवाइयों का गढ़ है। धोबिया टंकी पर मेरे पिता और दादा तीन दशक तक समोसे का ठेला व टपरा बनाकर व्यापार कर चुके हैं। करीब 7 साल पहले नगर निगम की अतिक्रमण विरोधी मुहिम ने हमारे समोसे की दुकान को बंद करा दिया। इस दौरान कहा समीप में अस्पताल चौराहा होने के कारण आए दिन जाम लगता है, इसलिए अब यहां ठेला और टपरा नहीं लगेंगे। कुछ माह गुजरने के बाद शिल्पी प्लाजा ए ब्लॉक के पीछे पिता और भाइयों ने एक बार फिर ठेले में समोसे का व्यापार शुरू किया, लेकिन कुछ माह पहले निगम ने वहां से भी हटा दिया।
घर और दुकान का वादा आज भी अधूरा
मां किरण साहू ने दावा किया कि केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ने 5 लाख की इनाम राशि, घर और दुकान देने का वादा किया था, लेकिन हमें सिर्फ 5 लाख रुपए ही मिले हैं। आज तक घर और दुकान के बारे में किसी ने सुध नहीं ली। जबकि वर्तमान समय में राज्य और केंद्र में भाजपा की सरकार है, लेकिन निराशा दोनों जगह मिली है। अगर किसी अधिकारी से कहते हैं तो जलील कर दिया जाता है। कहा जाता है कि जो कुछ मिलना था मिल चुका। अब भूल जाओ। एक दशक पहले देश का दुनिया में नाम रोशन करने वाली सीता साहू आज मुफलिसी का जीवन जी रही है। गरीबी के कारण 8 बाई 36 के मकान में पूरा परिवार रहता है। मकान का आधा हिस्सा चाचा का है। आलम है कि एक कमरे में चार लोग अच्छे से बैठ तक नहीं पाते।
पिता और व्यापार दोनों ने छोड़ा साथ
सीता  के पिता पुरुषोत्तम साहू का दो साल पहले निधन हो गया। अब घर में मां किरण साहू ही सहारा है। बड़े भाई धमेन्द्र साहू और छोटे भाई जीतू साहू सहित छोटी बहन राधा साहू की शादी हो चुकी है। दिव्यांग होने के कारण सीता की शादी नहीं हो पाई है। समोसा बेचकर वह अपना जीवन यापन कर रही है।

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