
भोपाल के कृषि वैज्ञानिकों ने किया शोध
भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम। रासायनिक उर्वरकों के बेजा उपयोग से जहां हमारे भोजन में जहर पहुंच रहा है, वहीं मिट्टी की उर्वरता काफी कम हो गई है। साथ ही मिट्टी में मौजूद फसलों के मित्र जीवाणु समाप्त हो गए हैं। इस वजह से किसानों को कीट प्रकोप से फसल बचाने, रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए महंगे कीट नाशकों का इस्तेमाल करना पड़ता है। वो भी पूरी तरह असरकारक नहीं होते हैं। इसको देखते हुए भोपाल के कृषि वैज्ञानिकों ने बैक्टीरिया और फंगस से बायोफर्टिलाइजर्स बनाए हैं, ताकि जहर से फसलें बच सकें और हमारा स्वास्थ्य भी ठीक रहे। गौरतलब है कि खेतों में उगने वाली फसलों में जहरीले कैमिकल फर्टिलाइजर का खूब उपयोग हो रहा है, जिससे हर दूसरा व्यक्ति आज शुगर, बीपी से ग्रसित हो गया है। साथ ही कैंसर और हार्ट अटैक के मामले भी तेजी से बढ़ रहे हैं। जहरनुमा कैमिकल फर्टिलाइजर से लड़ने भोपाल के कृषि वैज्ञानिकों ने अमृत रूपी ऐसे बायो फर्टिलाइजर का शोध किया है, जो ना सिर्फ इन कैमिकल्स का एक मजबूत विकल्प बनकर फसल की मात्रा को बढ़ाएंगे, बल्कि हमारी थालियों तक पहुंचने वाले भोजन को पोषण तत्वों से भर देंगे।
ढाई वर्षों तक गहन शोध
भोपाल के कृषि वैज्ञानिक डॉ. गोपाल राठौर के साथ चार अन्य कृषि वैज्ञानिकों ने करीब ढाई वर्षों तक गहन शोध कर पुस्तक-ऑर्गेनिक एंड बायो फर्टिलाइजर फॉर सस्टेनेबल एग्रीकल्चर को लिखा है, जिसमें उन्होंने 12 प्रकार के ऑर्गेनिक फर्टिलाइजर्स के बारे में बताया है, साथ ही उनकी उपयोगिता, निर्माण की प्रक्रिया व परिणाम को गहराई से समझाया है। हाल ही में जम्मू में जी-20 बैठक के अंतर्गत एक समारोह में पुस्तक का विमोचन किया गया था। पुस्तक में शैलेंद्र चौरे और डॉ. नीलम चोपड़ा ने सह लेखक के रूप में अपने इनपुट्स दिए हैं। वहीं डॉ. तपन अधिकारी व डॉ. कमलकांत वशिष्ट ने पुस्तक को एडिट किया है। वेस्ट टू बेस्ट का शानदार उदाहरण पेश करते हुए पुस्तक में बैक्टीरिया, एल्गी, फंगस, पराली एवं घरेलू वेस्ट से निर्मित एक दर्जन प्रकार के नवीन जैविक फर्टिलाइजर्स की जानकारी दी गई है, जो – अलग-अलग किस्मों की फसल पर उपयोगी होंगे। लेखक डॉ. गोपाल राठौर का कहना है कि यह पुस्तक जहरीले कैमिकल फर्टिलाइजर से निजात पाने के उद्देश्य से लिखी है। हमारे देश में किसान खेती में बहुत अधिक मात्रा में कैमिकल फर्टिलाइजर का उपयोग कर रहे हैं। इससे मिट्टी की उर्वरा क्षमता खत्म होती जा रही है। वहीं बायोफर्टिलाइजर के उपयोग से फसल की उत्पादन तथा गुणवत्ता दोनों ही बेहतर होते हैं। साथ ही मिट्टी भी प्रदूषित नहीं होती है। वहीं सह लेखक शैलेंद्र चौरे का कहना है कि जिस प्रकार खेती में पिछले कई दशकों से कैमिकल फर्टिलाइजर्स का उपयोग बढ़ा है वह चिंताजनक है। उस भोजन से हमारा पूरा स्वास्थ सिस्टम बिगड़ गया है। 20 वर्ष पहले हमने बीपी और शुगर के बारे में नहीं जानते थे, आज यह एक रेगुलर बीमारी हो गई है। साथ ही कैंसर भी तेजी से बढ़ रहा है। यदि हम बायोफर्टिलाइजर का उपयोग शुरू कर दें तो जल्द ही इसके सुखद परिणाम भी देखने को मिलेंगे।
पर्यावरण को शुद्ध करने में सहायक
ये फर्टिलाइजर्स न सिर्फ अनाज को जहरीले कैमिकल्स से मुक्त करेंगे, बल्कि पर्यावरण को भी शुद्ध करने में सहायक होंगे। फॉस्फोरस सोल्यूबिलाइजिंग बैक्टीरिया (पीएसबी)- ये बायोफर्टिलाइजर मिट्टी में मौजूद अघुलनशील फॉस्फोरस को घोलने का काम करता है। पीएसबी को लैब में प्रोसेस कर ऐसी मिट्टी से निकाला जाता है, जिससे फसल में प्रोटीन की मात्रा बढ़ती है। पोटेशियम सोल्यूबलाइंजिंग बैक्टिरिया (केएसबी)का मिट्टी में अघुलनशील पोटेशियम को घोलने व फसलों में पोटेशियम की मात्रा को बढ़ाने के लिए इसका उपयोग किया जाता है। राइजोबियम, एजोटोबेक्टर व एजोस्फीरिलम बैक्टिरिया ये तीनों बायोफर्टिलाइजर विभिन्न फसलों की जड़ों में नाइट्रोजन पहुंचाने के लिए उपयोगी होते हैं। राइजोबियम दलहनी, एजोटोबेक्टर- धान्य व एजोस्फीरिलम- गन्ना, मक्का, ज्वार, बाजरा सहित बड़ी पौधों की फसलों में नाइट्रोजन पहुंचाते हैं। माइकोराइजल फंगस यह मक्का, ज्वार, बाजरा, गन्ना की जड़ों में पाई जाती है। यह जड़ों में आवश्यक पोषक तत्वों पहुंचाती है। ट्राइकोडर्मा फंगस एंटी फंगल के रुप में यह फसलों को नुकसान पहुंचाने वाले फंगस को मारती है। ब्लू ग्रीन एल्गी मडिंग कर एल्गी को बड़े क्षेत्र में फैलाया जाता है। फसलों में एल्गी मिलाने से पोषक तत्व बढ़ते हैं। ऑर्गेनिक मेन्यूर डेयरी, पोल्ट्री और पिग फार्म से वेस्ट इक_ा कर खाद बनाते हैं। सिटी कम्पोस्ट-यह बैक्टिरिया और फंगस का एक ग्रुप है, जिसमें घरों में फल और सब्जियों के छिलकों सहित खराब हो चुके भोजन जो कचरे में जाता है उसे मिलाकर विशेष खाद बनाया जाएगा। डी कंपोजर एक तरह का बैक्टीरिया का ग्रुप है जिसका खेती में उपयोग कर पराली की समस्या से निजात पाया जा सकता है।