सरकार की एक और योजना को लगा कोरोना का ग्रहण

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भोपाल/रवि खरे/बिच्छू डॉट कॉम। वैसे तो मध्यप्रदेश में कोरोना संकट के दौरान कई योजनाएं अटक गई हैं तो कई योजनाओं की रफ्तार धीमी हो गई है। वहीं एक अन्य जल संचय योजना जो बारिश के पानी को सहेजने की है, जिसे प्रदेश के सभी जिलों में शुरू किया जाना था लेकिन अब इस योजना को कोरोना का ग्रहण लग गया है। यानी गर्मी का मौसम शुरू हो चुका है बावजूद इसके इस योजना पर कुछ भी काम नहीं हो सका है।
फिलहाल पूरे प्रदेश में कोरोना की दूसरी लहर का प्रकोप जारी है और प्रदेश सरकार अपने आला अफसरों के साथ पूरी मुस्तैदी से कोरोना संक्रमण की चैन तोड़ने, लोगों को इलाज आदि की व्यवस्थाओं में जुटी हुई है। यही वजह है कि कई जिलों में नसीहतों के साथ कर्फ्यू जारी है, आवाजाही पर रोक है, बाजार और व्यावसायिक प्रतिष्ठान भी बंद हैं। सरकार का पूरा फोकस फिलहाल तो लोगों की जान बचाने पर है। ऑक्सीजन की कमी और दवाओं की आपूर्ति में ही पूरा प्रशासनिक अमला लगा है। यही वजह है कि पानी सहेजने के लिए जल शक्ति अभियान ‘कैच द रेन’ योजना पर सरकार अब तक कोई काम ही नहीं कर सकी है। यानी प्रदेश में इस योजना पर कोरोना का ग्रहण लगा है।
ऐसे होना था योजना पर काम: जल शक्ति अभियान के तहत वर्षा जल संचय अभियान देश के साथ ही प्रदेश में भी ग्रामीण और शहरी इलाकों में चलाया जाना था। इसके लिए नारा भी तैयार किया गया था जिसमें कहा गया था कि जहां भी गिरे, जब भी गिरे, वर्षा का पानी इकट्ठा करें। इसी के साथ ही जल संरचना एवं उसके आसपास किए गए अतिक्रमण को भी हटाया जाना था। खास बात यह है कि इस अभियान में जनभागीदारी भी की जाना थी। इसके लिए विभिन्न समुदायों को जोड़ने की योजना तैयार की गई थी। योजना के तहत समुदायों को साथ लेकर छोटी नदियों के जल स्रोतों को पुनर्जीवित किया जाना था। प्रदेश में स्थानीय स्तर पर छोटी नदियां और नाले बहुत हैं, जहां बारिश में तो भरपूर पानी में रहता ही है। गौरतलब है कि आसपास के क्षेत्र में पानी की निकासी के लिए यह सबसे बड़े स्रोत भी होते हैं लेकिन दो-तीन माह बाद ही इन बरसाती नदी और नालों में पानी का प्रवाह बंद हो जाता है। यही वजह है कि इस अभियान के माध्यम से इन छोटी नदियों और नालों को भी पुनर्जीवन देने की योजना तैयार की गई थी। इसके अलावा पौधारोपण के माध्यम से केचमेंट एरिया का ट्रीटमेंट, जिले के सरकारी भवनों जैसे आंगनवाड़ी भवन, पंचायत भवन, स्कूल भवन, स्वास्थ्य केंद्र आदि में एक रूफ टॉप रेन वाटर हार्वेस्टिंग की व्यवस्था भी किया जाना प्रस्तावित है।

शुरूआत में हुआ प्रभावी कार्य
हालांकि पूर्व में इस योजना पर देशभर में प्रभावी काम हुआ है। पिछले साल कोरोना काल के दौरान तकरीबन साढ़े चार लाख महिलाओं को जल की जांच के लिए ट्रेंड किया जा चुका है। प्रदेश में भी इसी तरह के प्रभावी कार्य की तैयारी की गई थी। राज्य सरकार ने जो तैयारी की थी उस हिसाब से प्रत्येक जिलों में वर्तमान में जो जल स्रोत उपलब्ध हैं एवं भूमि के स्वरूप के आधार पर जल संरक्षण की कार्ययोजना बनाई जाकर लागू किया जाना था। इसी के साथ ही प्रदेशभर की सभी जल संरचनाओं की जीआईएस मैपिंग की जाकर इसकी जिलेवार सूचियां बनाई जाना थी।

नहीं बन सके जल शक्ति केंद्र
जल संरक्षण की इस महत्वपूर्ण योजना के तहत प्रत्येक जिला मुख्यालय पर जल शक्ति केंद्रों की स्थापना की जाना प्रस्तावित है। इन केंद्रों की जिम्मेदारी जल संरक्षण एवं संवर्धन के विषय में सूचना, जागरूकता एवं ज्ञान के प्रसारण केंद्र के रूप में कार्य करना थी। मनरेगा के तहत जल संरक्षण के लिए वाटरशेड विकास कार्य किए जाने थे और सभी ग्राम पंचायतों के लिए जीआईएस आधारित वाटरशेड डेवलपमेंट प्लान तैयार किया जाना था लेकिन कोरोना की बेव फिर से शुरू होने की वजह से इस पर कोई काम ही शुरू नहीं हो सका।

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