संगठन में दिखेगा जोश और अनुभव का समन्वय

 भाजपा
  • चार साल बाद भाजपा ने बदली रणनीति

गौरव चौहान/बिच्छू डॉट कॉम। मप्र भाजपा में संगठन चुनाव को लेकर तैयारी तेज हो गई है। इस बार भाजपा ने संगठन को लेकर रणनीति बदली है। करीब 4 साल बाद पार्टी ने संगठन में युवाओं के साथ ही अनुभवी यानी वरिष्ठ नेताओं को पदाधिकारी बनाने का फैसला लिया है। यानी इस बार भाजपा संगठन में युवा जोश और वरिष्ठों के अनुभव का समन्वय दिखेगा। गौरतलब है कि पिछले संगठन चुनाव में भाजपा ने पीढ़ी परिवर्तन का संकल्प पूरा किया था। इस कारण लगभग 35 वर्ष की औसत आयु वाले ही मंडल अध्यक्ष बन पाए थे। इनमें से कुछ तो भाजपा के लिए बेहद उपयोगी रहे और कुछ को राजनीतिक अनुभव ना होने से चुनाव में पार्टी को संकट भी झेलना पड़ा।भाजपा अब पांच साल बाद हुए लोकसभा चुनाव के परिणाम को देखते हुए उम्र बंधन के बजाए मिला-जुला प्रयोग करना चाहती है। पार्टी चाहती है कि अब संगठन चुनाव में युवा और बुजुर्ग, लेकिन अनुभव के समन्वय के साथ समायोजन किया जाए। प्रदेश चुनाव प्रभारी विवेक शेजवलकर का कहना है कि भाजपा संगठन हर कार्यकर्ता को काम और हर काम के लिए कार्यकर्ता के मंत्र पर काम करता है। संगठन पर्व में युवा शक्ति और अनुभव, इन दोनों के बेहतर समायोजन से संगठन को मजबूत बनाया जाएगा। नई पीढ़ी को उचित स्थान देते हुए वरिष्ठों का भी पूरा उपयोग किया जाएगा।
2020 में दिया था पीढ़ी परिवर्तन का नारा
दरअसल, भाजपा ने 1990 के बाद 2020 में पीढ़ी परिवर्तन की शुरूआत की थी। पार्टी ने युवाओं को तो जोड़ लिया, लेकिन पुराने चेहरों को लेकर असमंजस में है। युवाओं को मौका देने के बाद अब पुराने दिग्गजों का समायोजन पार्टी के लिए चुनौती बना हुआ है। पार्टी का अब तक का अनुभव अच्छा भी रहा और कुछ जगह पुराने नेताओं के सामने नए नेतृत्व को काम करने में व्यावहारिक रूप से मुश्किलों का सामना भी करना पड़ा। दूसरी परेशानी ये भी है कि युवाओं को कमान देने से परिवारवाद की उपेक्षा से भी कई दिग्गज परेशान हैं। ज्योतिरादित्य सिंधिया के भाजपा में शामिल होने के बाद से समन्वय की मुश्किलें और बढ़ गई हैं। आने वाले संगठन चुनाव में उनके समर्थकों को भी जिले की कार्यकारिणी में अवसर देना भाजपा के पुराने कार्यकर्ताओं की नाराजगी का कारण बन सकता है। इसे भांपते हुए संगठन हर कदम फूंक-फूंक कर रख रहा है।
मौजूदा नेतृत्व कर चुका 60 की सीमा पार
मौजूदा नेतृत्व चाहे पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, विधानसभा अध्यक्ष नरेंद्र सिंह तोमर, मंत्री कैलाश विजयवर्गीय, प्रहलाद पटेल हों, सभी साठ की उम्र पार कर चुके हैं। पूर्व सीएम उमा भारती से लेकर मोहन कैबिनेट के ज्यादातर सदस्य पार्टी में 30 से 35 साल की उम्र में सक्रिय हुए थे। पार्टी ने सरकार में मोहन यादव का नया चेहरा तो दे दिया, लेकिन संकट यह है कि युवाओं में नया नेतृत्व प्रदेश में पनप नहीं रहा है। पार्टी ने नए नेतृत्व के लिए संगठन में पीढ़ी परिवर्तन तो कर लिया, लेकिन चुनावी राजनीति में वटवृक्षों के चलते पार्टी नई पीढ़ी को आगे नहीं ला पाई। पार्टी चाहती है कि संगठन चुनाव में उम्र सीमा पर पार्टी शिथिलता तो बरते, लेकिन भविष्य के लिए युवाओं की टीम भी तैयार की जाए। दोनों पीढ़ी के साथ सुतंलन बनाया जाए।
जमीनी स्तर पर पकड़ मजबूत करने की पहल
पार्टी सूत्रों का कहना है कि भाजपा पुराने  कार्यकर्ताओं को संगठन में प्राथमिकता देगी, जबकि कांग्रेस समेत दूसरी पार्टी से आने वाले नेताओं के लिए उच्च पदों की संख्या को सीमित किया जाएगा। पार्टी इस बार उन कार्यकर्ताओं को प्राथमिकता देगी जो पार्टी के जमीनी कार्यों में लंबे समय से सक्रिय रहे हैं। इन कार्यकर्ताओं को सम्मानित करते हुए उन्हें पदों पर नियुक्त किया जाएगा। संगठन का मानना है कि यह बदलाव पार्टी के भीतर नई ऊर्जा का संचार करेगा और जमीनी स्तर पर पार्टी की पकड़ को मजबूत करेगा। गौरतलब है कि भाजपा ने विधानसभा चुनाव 2023 से ही आयु सीमा का बंधन समाप्त कर दिया था। मप्र में भाजपा से 11 ऐसे विधायक निर्वाचित हुए हैं, जिनकी आयु 70 से 80 वर्ष तक की है। आशय साफ है कि भाजपा अब संगठन चुनाव में भी उम्र सीमा लागू कर कोई जोखिम उठाना नहीं चाहती है।
अनुभवी कार्यकर्ताओं की होगी वापसी
पार्टी ने इस बार मंडल से लेकर जिलाध्यक्ष तक के लिए आयु सीमा का बंधन समाप्त कर दिया है। पिछले संगठन चुनाव में भाजपा ने लगभग 35 वर्ष की औसत आयु वाले नेता को ही मंडल अध्यक्ष बनाया था। इसी तरह जिलाध्यक्ष के लिए भी. 50 से 55 वर्ष के बीच की आयु सीमा का बंधन लगाया गया। हालांकि इस इस बार संगठन ने यह बंधन हटा लिया है। पार्टी चाहती है कि अब संगठन चुनाव में युवा के साथ बुजुर्ग और अनुभवी नेताओं का समन्वय के साथ समायोजन किया जाए। भाजपा ने आयु सीमा का बंधन हटाकर युवाओं और अनुभवी कार्यकर्ताओं का मिला-जुला फार्मूला बनाया है। हर जिले के लिए मंडल स्तर पर यह व्यवस्था की गई है कि जहां 12 मंडल हैं, वहां आधे युवा और बाकी पर अनुभवी कार्यकर्ताओं को महत्व दिया जाए। दरअसल, भाजपा ने वर्ष 1990 के बाद 2020 में ही पीढ़ी परिवर्तन का प्रयास किया गया था। पार्टी ने युवाओं को तो जोड़ लिया, लेकिन पुराने चेहरों को लेकर संगठन असमंजस में रहा। कई जगह शिकायतें मिलीं कि नए पदाधिकारी पुराने कार्यकर्ताओं की पूछपरख ही नहीं करते हैं। उन्हें बैठकों में भी नहीं बुलाया जाता था। ऐसे अनेक कारण रहे कि पुराने दिग्गजों का समायोजन पार्टी के लिए चुनौती बना रहा।

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