ठेके उन्हीं ठेकेदारों को मिलेंगे जिनके पास जरूरी मशीनें होंगी

  • पीडब्ल्यूडी की शर्त पर हाईकोर्ट ने लगाई मुहर

भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम
हाईकोर्ट ने पीडब्ल्यूडी विभाग की शर्त को चुनौती देने वाली एक ठेकेदार की याचिका खारिज कर दी है। विभाग ने अपनी शर्त में कहा था कि 2 करोड़ से ऊपर का ठेका उन्हीं ठेकेदारों को दिया जाएगा, जिनके पास आवश्यक मशीनें स्वयं की होंगी। चीफ जस्टिस संजीव सचदेवा और जस्टिस विनय सराफ की डिवीजन बेंच ने कहा समय पर निर्माण पूरा न होने से न केवल सार्वजनिक हित प्रभावित होते हैं बल्कि पब्लिक का धन भी व्यर्थ जाता है। कोर्ट ने विभाग की इस शर्त को उचित ठहराते हुए याचिका खारिज कर दी। रीवा की दिलीप सिंह कंस्ट्रक्शन कंपनी की ओर से दाखिल याचिका में पीडब्ल्यूडी की 3 नवंबर की विज्ञप्ति और 5 नवंबर 2025 को जारी विस्तृत एनआईटी की शर्तों पर आपत्ति जताई गई थी। इन शर्तों में प्रावधान जोड़ा गया था टेंडर भरने वाले ठेकेदार के पास स्टील व्हील रोलर, मोटर ग्रेडर, ब्लैक-हो और अर्थ कम्पेक्टर का स्वामित्व अनिवार्य है।
ऐसा करने से सरकारी पैसे का नहीं होगा दुरुपयोग: ग्रामीण क्षेत्रों में तो कई बार ठेकेदार काम बीच में ही छोड़ देते हैं, जिससे न केवल परियोजनाएं लटक जाती हैं बल्कि री-टेंडरिंग करनी पड़ती है, जिसके कारण सरकारी धन की दोहरी बबार्दी होती है। सरकार ने यह भी कहा कि गुणवत्ता, समयसीमा और कार्य पर निगरानी सुनिश्चित करने के लिए यह आवश्यक है कि ठेकेदार के पास कम से कम चार मूलभूत मशीनें उसकी अपनी हों, जिससे कार्य बीच में बाधित न हो और सडक़ों का निर्माण समय पर पूरा हो सके। सुनवाई पूरी होने के बाद कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि यह प्रावधान केवल 2 करोड़ से अधिक के टेंडरों पर लागू किया गया है और 2 करोड़ से कम मूल्य के टेंडरों में ऐसी कोई बाध्यता नहीं है। इसलिए पीडब्ल्यूडी द्वारा तय की गई शर्त तर्कसंगत, सार्वजनिक हित में और पूरी तरह उचित है।
हाईकोर्ट ने नजरअंदाज किया याचिकाकर्ता का तर्क
याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि संबंधित टेंडर की लागत 2 करोड़ से भी कम है, जबकि केवल इन मशीनों की अनुमानित कीमत लगभग 2 करोड़ रुपए तक पहुंच जाती है। ऐसे में यह शर्त न केवल अनुपातहीन बल्कि छोटे ठेकेदारों के खिलाफ भेदभावपूर्ण है है और प्रतिस्पर्धा को सीमित करती है। वहीं, राज्य सरकार की ओर से अतिरिक्त महाधिवक्ता हरप्रीत रूपराह ने दलील दी कि विभाग ने यह प्रावधान केवल उन कार्यों में लागू किया है, जिनका मूल्य 2 करोड़ रुपए से अधिक है। उनके अनुसार, पिछले वर्षों के अनुभव बताते हैं कि कई ठेकेदार किराए की मशीनों पर निर्भर रहते हैं। समय पर मशीनें न मिलने, किराया चुकाने में देरी या मानसून में उपकरणों की कमी से सडक़ निर्माण अधूरा रह जाता है।

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