
भोपाल/हरीश फतेहचंदानी/बिच्छू डॉट कॉम। इस साल के अंत में होने वाले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस आदिवासियों का साथ पाने के लिए जयस की जगह गोगंपा से हाथ मिलाने की तैयारी कर रही है। इसके तहत वह गोगंपा को वे पांच विधानसभा सीटें देने को तैयार है, जहां पर बीते चुनाव में उसके प्रत्याशी भाजपा व कांग्रेस के साथ त्रिकोणीय मुकाबला बनाने में सफल रहे थे। फिलहाल इस मामले में गोगंपा व कांग्रेस में पूरी बात हो चुकी है, बस इस समझौते का आधिकारिक ऐलान होना ही रह गया है। दरअसल गोगंपा की वजह से ही कांग्रेस को बीते चुनाव में तीस के करीब सीटों का नुकसान उठाना पड़ा था। माना जा रहा है कि दोनों दलों में समझौते की बड़ी वजह है , कांग्रेस बीते चुनाव में हुए 30 सीटों के नुकसान को 50 सीटों के फायदे में बदलना चाहती है। सूत्रों का कहना है। कि कांग्रेस और गोगंपा के बीच समझौते के अनुसार गोगंपा को मप्र में विस की पांच सीटें दी जाएंगी, जबकि उसके राष्ट्रीय अध्यक्ष को राज्यसभा की सीट मिलेगी। बीते चुनाव में कांग्रेस को मालवा- निमाड़ में आदिवासियों पर बड़ा प्रभाव रखने वाले संगठन जयस का साथ मिला था , जिससे उस अंचल में कांग्रेस को अच्छी सफलता मिली थी। यही वजह है कि इस बार कांग्रेस ने महाकौशल, बघेलखंड और बुंदेलखंड में प्रभावी गोंडवाना गणतंत्र पार्टी से हाथ मिलाना तय कर लिया है। बताया जा रहा है कि इस मामले को कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी खुद देख रही हैं। कहा तो यह भी जा रहा है कि इस समझौते में एक राज्यसभा सांसद की भूमिका बेहद अहम बनी हुई है। हाल में जबलपुर पहुंची प्रियंका गांधी से भी राज्यसभा सांसद ने गोगंपा के एक बड़े पदाधिकारी की मुलाकात कराई थी। इस पदाधिकारी की सांसद से दिल्ली में कई दौर की बात के बाद तय किया गया है कि गोगंपा को 5 विधानसभा सीटें दी जाएंगी। दरअसल प्रियंका गांधी ने गोगंपा से समझौता के लिए कमलनाथ और एक राज्यसभा सांसद को जिम्मेदारी सौंपी है।
दो राज्यों में होगा फायदा
दरअसल गोंगपा का प्रभाव मप्र के महाकौशल के अलावा छत्तीसगढ़ में भी है। आदिवासियों में इस पार्टी का अच्छा प्रभाव होने से कांग्रेस को दोनों राज्यों में फायदा होगा। कांग्रेस मप्र में गोंगपा को 5 सीटें देने के अलावा उसके राष्ट्रीय अध्यक्ष तुलेश्वर मरकाम को छत्तीसगढ़ से राज्यसभा में भी भेजेगी। मप्र में गोगंपा को कौन सी पांच सीटें दी जाएंगी इसका फैसला होना अभी बाकी है, लेकिन यह तो तय है कि जिन सीटों पर वह दूसरे व तीसरे स्थान पर रही है उनमें से ही पांच सीटें मिलना तय है। इसमें छिंदवाड़ा जिले की अमरवाड़ा और शहडोल जिले की ब्यौहारी तो तय ही मानी जा रही है। इसकी वजह है इन दोनों ही सीटों पर गोगंपा दूसरे स्थान पर रही थी जबकि लखनादौन, शहपुरा और बिछिया में उसके उम्मीदवार तीसरे स्थान पर रहे थे और इन तीनों ही जगह त्रिकोणीय मुकाबला देखने को मिला था। वैसे गोगंपा का सर्वाधिक प्रभाव देवसर, ब्यौहारी, जयसिंहनगर, जैतपुर, पुष्पराजगढ़, बांधवगढ़, शहपुरा, डिंडौरी, बिछिया, निवास, केवलारी, लखनादौन और अमरवाड़ा में माना जाता है।
इस तरह का रहा है प्रदर्शन
2003 के चुनावों में जीजीपी ने 80 सीटों पर चुनाव लडक़र महाकौशल के छिंदवाड़ा, बालाघाट और सिवनी जिले में तीन सीटें जीती थीं और कई जगहों पर उसके उम्मीदवार दूसरे नंबर पर रहे थे, तब आश्चर्यजनक रुप से उसे 3.23 फीसदी वोट मिले थे। 2008 के चुनावों में पार्टी दो टुकड़ों में बंट गई, जिसकी वजह से उसे महज 1.80 प्रतिशम मत मिले और कोई भी प्रत्याशी नही जीत सका। 2013 के विधानसभा चुनाव में पार्टी में एक और विभाजन हो गया, जिसकी वजह से उसके मतों में आधा फीसदी की और कमी आ गई। एकता की ताकत को समझते हुए 2018 में तीनों धड़ों ने एक होकर चुनाव लड़ा तो कई सीटों पर बीजेपी और कांग्रेस के समीकरण बिगड़ गए। इस चुनाव में उसके प्रत्याशियों ने छह लाख 75 हजार से ज्यादा वोट हासिल किए और अमरवाड़ा सीट पर तो पार्टी कांग्रेस के बाद दूसरे नंबर पर रही। इसके अलावा कई सीटों पर उसकी वजह से त्रिकोणीय मुकाबला तक हो गया था।