
- विधानसभा चुनाव में प्रभावहीन रहा सामाजिक प्रकोष्ठों का फॉर्मूला
भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम। विधानसभा चुनाव 2023 में विभिन्न समाजों को साधने के लिए कांग्रेस ने सामाजिक प्रकोष्ठ बनाए थे, लेकिन ये प्रकोष्ठ पूरी तरह प्रभावहीन रहे। जब इस संदर्भ में पार्टी ने पड़ताल की तो यह तथ्य सामने आया कि सियासी लाभ के लिए बनाए गए सामाजिक प्रकेाष्ठ केवल नेताओं की झांकीबाजी का जरिया बनकर रह गए हैं। ऐसे में कांग्रेस संगठन ने सामाजिक प्रकोष्ठों को समाप्त कर दिया है। पार्टी का मानना है कि इससे नेताओं की झांकीबाजी रूकेगी और वे पार्टी की मुख्यधारा के साथ मिलकर कांग्रेस करेंगे।
गौरतलब है कि सियासी लाभ के लिए चुनाव के समय विभिन्न जातियों और नेताओं को संतुष्ट करने के लिए राजनीतिक दल प्रकोष्ठ बनाकर नियुक्तियां करते हैं। कांग्रेस ने भी प्रदेश में विधानसभा चुनाव के समय विभिन्न समाजों के प्रकोष्ठ बनाए। इनके पदाधिकारी अपने वाहन के आगे बड़ी नाम पट्टिका लगाकर घूमते रहे और दावा करते रहे कि वोट प्रभावित होगा पर परिणाम कुछ भी नहीं निकला। इसे देखते हुए प्रदेश कांग्रेस ने संगठन वर्ष 2025 में ऐसे प्रकोष्ठों को समाप्त कर दिया है। वहीं, समान प्रकृति वाले प्रकोष्ठों को आपस में मिला दिया है। कुछ में अध्यक्षों की नियुक्ति कर दी तो कुछ में अभी होना बाकी है। पार्टी ने तय किया है कि अब समाजों के अलग-अलग प्रकोष्ठों के स्थान पर अनुसूचित जाति-जनजाति और पिछड़ा वर्ग विभाग रहेंगे।
गठित किए गए थे कई बोर्ड और प्रकोष्ठ
गौरतलब है कि विधानसभा चुनाव 2023 में हर समाज में अपनी पकड़ बनाने के लिए प्रदेश की भाजपा सरकार ने विश्वकर्मा, स्वर्णकार, कुश, महाराणा प्रताप, जय मीनेश, मां पूरी बाई कीर, देवनारायण सहित अन्य कल्याण बोर्ड गठित किए थे। इसकी देखा-देखी तत्कालीन प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमल नाथ ने भी विभिन्न समाज को साधने के लिए मसीह, कोली/कोरी, बंजारा, रजक, बघेल-पाल, सिंधी कल्याण, तैलिक साहू राठौर, बंगाली सहित अन्य प्रकोष्ठ बनाए थे। पार्टी से जुड़े इन समाजों के वरिष्ठ नेताओं को प्रदेश अध्यक्ष बनाकर सामाजिक सम्मेलन भी किए गए। इसके कारण पार्टी का अनुसूचित जाति, जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग विभाग निष्क्रिय हो गया। परिणाम भी अपेक्षित नहीं रहे।
पटवारी के प्रयास नहीं आ रहे थे काम
चुनाव परिणामों की समीक्षा में यह बात सामने आई कि जब तक संगठन मजबूत नहीं होगा, तब तक कोई भी प्रयोग सफल नहीं होगा। इसे ध्यान में रखते हुए प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष जीतू पटवारी एक-एक करके संगठन की कमजोरियों को दूर करने में लगे हैं। उन सभी समाजों के प्रकोष्ठों को समाप्त कर दिया है, जो चुनाव के समय अस्तित्व में आए थे। इन्हें अब विभागों के भीतर प्रतिनिधित्व दिया जाएगा। वहीं, समान प्रकृति के अलग-अलग प्रकोष्ठ भी हो गए थे, जिन्हें एक किया गया है। जैसे शिक्षक कांग्रेस में ही व्यावसायिक कोचिंग प्रकोष्ठ को मिला दिया है। सद्भावना और कौमी एकता प्रकोष्ठ को एक करने के साथ धर्म और उत्सव में पुजारी प्रकोष्ठ को समाहित कर दिया है। आउटसोर्स और तकनीकी प्रकोष्ठ को समाप्त कर दिया। प्रदेश कांग्रेस के पदाधिकारियों का कहना है कि भले ही चुनाव के समय ऐसे प्रकोष्ठ बनाकर लोगों को उपकृत कर दिया जाता है लेकिन पार्टी को इसका कोई लाभ नहीं मिलता है। एक को मनाते हैं तो दूसरा रूठ जाता है। सबको पद देना संभव भी नहीं है, इसलिए समाजों के प्रकोष्ठों को समाप्त करके संगठन की संरचना में शामिल विभागों के अंतर्गत ही विभिन्न समाज के लोगों को प्रतिनिधित्व दिया जाएगा। प्रदेश संगठन महामंत्री संजय कामले ने बताया कि संगठनात्मक दृष्टि से समन्वय बनाने और बेहतर कार्य के लिए समान प्रकृति के प्रकोष्ठों को एक किया गया है। कुछ को समाप्त भी करने का निर्णय भी लिया है।