जबलपुर: ग्रामीण में कांग्रेस तो शहर में भाजपा को मुश्किल

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  • अपने ही गढ़ में मिल रही भाजपा को चुनौती

भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम। भले ही जबलपुर लोकसभा सीट अब पूरी तरह से भाजपा का गढ़ बन चुकी है, लेकिन अब भी इस सीट पर एक तरफा भाजपा के पक्ष में माहौल बनता नहीं दिख पा रहा है। इसकी वजह है शहरी इलाकों में विकास के कामों में होने वाली लेटलतीफी है तो उधर कांग्रेस को भी ग्रामीण इलाकों में मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है।  भाजपा प्रत्याशी के लिए दलबदल कर आने वाले नेताओं के साथ विकास के कामों में हो रही लगातार देरी मुश्किल बन रही है। भले ही भाजपा कहे कि दलबदल से पार्टी को बहुत फायदा हो रहा है, लेकिन ऐसे नेता अब उपेक्षित महसूस करने लगे हैं। उन्हें अब तक कोई काम ही नहीं दिया गया है।  इस सीट पर भाजपा के आशीष दुबे और कांग्रेस के संजय यादव के बीच मुकाबला हो रहा है। देश के पहले आम चुनाव में 1952 में जबलपुर में दो संसदीय सीटें थीं, जिसमें जबलपुर उत्तर और जबलपुर दक्षिण-मंडला। तब सुशील कुमार पटेरिया और मंगरु गणु उइके इन दोनों सीटों से जीते थे। मध्य प्रदेश के गठन के बाद 1957 में जबलपुर लोकसभा सीट बनी। तब 1957 में हुए पहले चुनाव में कांग्रेस के सेठ गोविंद दास ने जीत हासिल की। उन्होंने 1971 तक लगातार चार बार जबलपुर से सांसद का चुनाव जीता। 1974 में सेठ गोविंद दास के निधन के बाद जबलपुर में उपचुनाव हुआ. उस समय देश में जेपी आंदोलन अपने चरम पर था। जयप्रकाश नारायण ने 27 साल के शरद यादव को टिकट दिया। वे जेल में रहते हुए भी शरद यादव ने उपचुनाव जीता और भारतीय राजनीति में एक उभरते सितारे के रूप में स्थापित हुए। इसी सीट का चुनावी इतिहास काफी रोचक रहा है। यह जीत जेपी आंदोलन की एक बड़ी जीत मानी गई। 1977 में हुए लोकसभा चुनाव में शरद यादव ने एक बार फिर जबलपुर से चुनाव लड़ा। इस बार उनके सामने कांग्रेस के जगदीश नारायण अवस्थी थे। शरद यादव के पक्ष में एक नारे ने पूरा माहौल बदलकर रख दिया। लल्लू पर न जगधर पर, मुहर लगेगी हलधर पर इस नारे ने ऐसा जोर पकड़ा कि कांग्रेस की उसके गढ़ में ही नींव हिल गई। यादव ने 1977 का चुनाव भी भारी मतों से जीत लिया। यह जीत न केवल शरद यादव के लिए बल्कि पूरे विपक्ष के लिए एक बड़ी सफलता थी। अहम बात यह है कि इस सीट से बीजेपी की राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा का जबलपुर में ससुराल है। नड्डा की सास जयश्री बनर्जी पूर्व में जबलपुर से सांसद रह भी चुकी हैं। जयश्री बनर्जी जनसंघ की पुरानी नेताओं में से एक है। 1977 के बाद, जबलपुर लोकसभा सीट पर कांग्रेस और भाजपा के बीच कड़ा मुकाबला रहा है. 1996 से 2019 तक, भाजपा ने इस सीट पर लगातार 7 बार जीत हासिल की है. 2019 में, राकेश सिंह ने कांग्रेस उम्मीदवार विवेक तन्खा को हराया।
1996 से भाजपा का कब्जा
2014 में, भाजपा के राकेश सिंह ने कांग्रेस के विवेक तन्खा को हराकर रिकॉर्ड 3 लाख 50 हजार से अधिक वोटों का अंतर हासिल किया। 2019 में, राकेश सिंह ने फिर से जीत हासिल की। वे इस सीट पर चार बार जीते हैं।
यह हैं मुद्दे
भाजपा के गढ़ में परिवर्तित हो चुके जबलपुर संसदीय क्षेत्र में अयोध्या में श्रीराम मंदिर के निर्माण को लेकर प्रसन्नता देखी जा सकती है। ग्रामीण क्षेत्रों में किसान सरकारी योजनाओं के लाभ और तीन फसलों के उत्पादन को लेकर खुश हैं। नगरीय क्षेत्र में बेरोजगारी, जबलपुर को महानगर में परिवर्तित होने में हो रहे विलंब तथा अराजक यातायात व्यवस्था को लेकर बड़ा वर्ग नाराजगी जता रहा है। मझौली तहसील का बाजार किसी शहरी क्षेत्र के बाजार से कमतर नहीं दिखता। यहां आसपास के 87 गांवों के लोगों का आना-जाना है। यहां लोगों के विचार और बयान भी वैश्विक स्तर के हैं। कांग्रेस नेता और पूर्व जिला पंचायत उपाध्यक्ष राजेश तिवारी कारोबारी हैं। उनके साथ उनकी पार्टी के कुछ और कार्यकर्ता भी मुखर होकर केंद्र सरकार की खुलकर आलोचना करते हैं। मझौली में परिचर्चा के दौरान इन नेताओं ने बताया कि लोगों को निश्चित तौर पर केंद्र और राज्य सरकार की योजनाओं का लाभ मिल रहा है लेकिन विधानसभा चुनाव और लोकसभा चुनाव के परिस्थितियां बदल चुकी हैं।
राम मंदिर निर्माण का असर
नगरीय क्षेत्रों में में जहां राम मंदिर बड़ा चुनावी मुद्दा है, वहीं ग्रामीण क्षेत्र में भी श्री राम मंदिर के निर्माण की खुशी दिखाई देती है। भाजपा का सोशल मीडिया का कार्य देखने वाले अमित साहू कहते हैं कि इस बार भाजपा के पक्ष में एकतरफा माहौल है। स्थानीय प्रत्याशी को टिकट मिलने पर खुशी जाहिर करते हुए उन्होंने कहा कि बबलू भैया (भाजपा प्रत्याशी आशीष दुबे) को टिकट मिला है अब जीत के अंतर का रिकॉर्ड बनेगा। आशीष पाटन विधानसभा क्षेत्र के पड़रिया, कटंगी के निवासी हैं। श्रीकांत कहते हैं कि मोदी सरकार की दूसरी सौगातों ने एमएसपी जैसे छोटे-छोटे मुद्दों को दबा दिया है।

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