
- जिलाध्यक्षों की पड़ताल में जिलों में पहुंचे रहे पर्यवेक्षक
भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम। लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी की क्लास के बाद मप्र कांग्रेस में जान आ गई है। संगठन सृजन अभियान का धार देने के लिए कांग्रेस मिशन मोड में नजर आ रही है। राहुल के निर्देशानुसार जिला अध्यक्षों की पड़ताल में पर्यवेक्षक जिलों में पहुंचने लगे हैं। कांग्रेस इस बार जिलाध्यक्षों की नियुक्ति काफी जांच-पड़ताल यानी ठोक-बजाकर करेगी। इसके लिए क्राइटेरियां तय किया गया है। कांग्रेस जिला अध्यक्ष के लिए पैनल बनाया जाएगा। खास बात यह है कि पैनल में शामिल करने के लिए जो आधा दर्जन नाम चयनित किए जाएंगे, उसमें इस बिंदु पर ज्यादा फोकस रहेगा कि दावेदार का सोशल मीडिया का प्रोफाइल कितना सक्रिय है। उनके द्वारा पार्टी गतिविधियों को लेकर पोस्ट की भी समीक्षा की जाएगी। उनके सोशल मीडिया अकाउंट से जुड़े फालोवर्स की संख्या पर भी गौर किया जाएगा। साथ ही क्षेत्र में उसकी सक्रियता कितनी है।
गौरतलब है कि 3 जून को राहुल की ओर से ऑल इंडिया कांग्रेस कमेटी से नियुक्त किए गए 61 पर्यवेक्षक को एक फोल्डर दिया गया है। इस फोल्डर में ऑब्जर्वर को अलॉट किए गए जिले का पूरा जातिगत डेटा और समीकरण है। साथ ही उस जिले में कांग्रेस के मौजूदा संगठन की पूरी डिटेल भी दी गई है। एआईसीसी से नियुक्त 61 पर्यवेक्षक के साथ मप्र कांग्रेस ने भी 165 ऑब्जर्वर नियुक्त किए हैं। सभी को अलग-अलग जिलों का आवंटन किया गया है। इनमें नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंघार, पूर्व केन्द्रीय मंत्री कांतिलाल भूरिया, पूर्व नेता प्रतिपक्ष गोविंद सिंह, अजय सिंह, अरुण यादव समेत कई बड़े नेताओं के नाम शामिल है। पीसीसी ने जिन नेताओं को आब्जर्वर बनाया है, वो संगठन सृजन अभियान के तहत किए जाने वाले कार्यों में एआईसीसी के आब्जर्वर का सहयोग करेंगे। जारी सूची में नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंधार को बालाघाट और अरुण यादव को सीधी की जिम्मेदारी दी गई है। इसके आलावा प्रियंवत सिंह को भिंड अशोक सिंह को रीवा, हेमंत कटारे को मउगंज, चौधरी राकेश सिंह को सागर, सचिन यादव को गुना का आब्जर्वर बनाया गया है। गौरतलब है कि एमपी कांग्रेस कमेटी के जिला अध्यक्ष दिल्ली से तय होंगे। इसके लिए एआईसीसी और मध्य प्रदेश कांग्रेस कमेटी मिलकर जिलों में ऑब्जर्वर भेजेंगे।
इस तरह फाइनल होगा जिलाध्यक्ष का नाम
किसी भी जिले का अध्यक्ष बनाने के लिए पर्यवेक्षकों को कई मापदंडों का ध्यान रखना होगा। पर्यवेक्षक जिला स्तर पर फ्रंटल ऑर्गेनाइजेशन, विभागों, प्रकोष्ठों की जिला कमेटी के साथ चर्चा करेंगे। जिले में ब्लॉक वार संगठन की बैठकें करेंगे। इन बैठकों में स्थानीय सांसद, विधायक, लोकसभा और विधानसभा के प्रत्याशी, संगठन के ब्लॉक एवं मंडलम, पदाधिकारियों, के अध्यक्ष, पार्षद और पंचायती राज के कार्यकर्ताओं, स्थानीय नगर निकाय जनप्रतिनिधियों के साथ चर्चा करेंगे। एआईसीसी और पीसीसी के ऑब्जर्वर जिला, ब्लॉक स्तर के कार्यकर्ताओं से चर्चा के माध्यम से जिला अध्यक्ष के लिए मिले नामों का एक पैनल बनाएंगे। इसके बाद जिला अध्यक्ष के दावेदारों से चर्चा करेंगे। इस चर्चा में जिलाध्यक्ष के दावेदार से संगठन के प्रति उनकी समझ, कार्यप्रणाली को जानेंगे। जिला अध्यक्ष के पैनल को लेकर प्रदेश प्रभारी हरीश चौधरी, पीसीसी चीफ जीतू पटवारी और नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंघार के साथ 6 नाम देंगे। ऑब्जर्वर पैनल में उन्ही लोगों के नाम शामिल करेंगे, जो जमीनी कार्यकर्ता है और कहीं न कहीं आम लोगों से उनकी कनेक्टिविटी है। इसके अलावा आधा दर्जन नामों के पैनल में ओबीसी, एससी और एसटी वर्ग लोगों और एक महिला का नाम शामिल करना अनिवार्य होगा। आब्जर्वर जिलों से पैनल फाइनल करेंगे। प्रदेश कांग्रेस कमेटी और एआईसीसी को सौंपेंगे। अंतिम रूप से जिला अध्यक्ष के नाम का फैसला एआईसीसी के हाथों में रहेगा। राहुल की ओर से ऑल इंडिया कांग्रेस कमेटी से नियुक्त किए गए 61 ऑब्जर्वर्स को एक फोल्डर भी दिया। इस फोल्डर में ऑब्जर्वर को अलॉट किए गए जिले का पूरा जातिगत डेटा और समीकरण है। साथ ही उस जिले में कांग्रेस के मौजूदा संगठन की पूरी डिटेल भी दी गई है।
विभिन्न समीकरणों पर परखा जाएगा
गौरतलब है कि कांग्रेस कांग्रेस को फिर से खड़ा करने के लिए राहुल गांधी नए फॉर्मूले पर काम कर रहे हैं। यह फॉर्मूला है कांग्रेस को कैडरबेस बनाना। मप्र में इसकी शुरुआत की जा रही है। अगर ये फॉर्मूला हिट होता है तो पार्टी इसे देश के अन्य राज्यों में भी लागू करेगी। राहुल गांधी के इस फॉर्मूले में पार्टी की सबसे मजबूत कड़ी होंगे जिलाध्यक्ष। जिनकी पार्टी हाईकमान तक सीधी एंट्री होगी। अब विधानसभा और लोकसभा चुनाव में उम्मीदवारी इन जिलाध्यक्षों की रजामंदी से होगी। यानी क्षत्रपों की पार्टी कहे जाने वाली कांग्रेस में अब पदाधिकारियों के चयन की पूरी प्रक्रिया बदल रही है। राहुल गांधी की पहल पर चल रही इस कवायद से संदेश साफ है कि अब इस पार्टी क्षत्रपों और प_ाबाद से बाहर निकलना चाहती है। इसकी शुरूआत जिलाध्यक्षों के चयन से की जा रही है, जिसके लिए कांग्रेस आलाकमान ने पर्यवेक्षक नियुक्त कर दिए हैं। यह इस बात का संकेत है कि आंदोलन से उपजी कांग्रेस क्या भविष्य में कैडरबेस होगी। ऑब्जर्वर्स को जिले का जातिगत डेटा फोल्डर में देने के पीछे राहुल गांधी की यह सोच है कि जिले से अध्यक्ष के लिए जो नाम निकलकर आए हैं। उस जिले के जातिगत समीकरणी के हिसाब से अध्यक्ष फिट है या नहीं। इसके बाद पार्टी में उसकी परफॉर्मेंस, योगदान और दूसरे पैरामीटर देखे जाएंगे। कांग्रेस ने ऑब्जर्वर्स को इसके लिए 20 दिन का समय दिया है।
