सरकार बजट खर्च करने में फिसड्डी, कांग्रेस हमलावर

  • प्रदेशवासियों को पूरी तरह नहीं मिलता योजनाओं का लाभ

भोपाल/विनोद उपाध्याय/बिच्छू डॉट कॉम। प्रदेश में भले ही डबल इंजन की सरकार हो, लेकिन इसका फायदा प्रदेशवासियों को पूरी तरह से मिलता नहीं दिख रहा है। इसकी वजह है बजट में मिलने वाली राशि का पूरी तरह से खर्च न हीं हो पाना। अब इस मामले में विपक्षी दल कांग्रेस पूरी तरह से हमलावर हो गई है। कांग्रेस की तरफ से इस मामले की कमान अब पूर्व मंत्री व विधायक जयवर्धन सिंह ने संभाली है। उनके द्वारा इस मामले में केंद्र और मप्र सरकार पर जमकर निशाना साधा गया है। उनका कहना है कि बीते सालों में भाजपा के एक वरिष्ठ नेता ने मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को घोषणावीर की उपाधि दी थी, क्योंकि मुख्यमंत्री के वक्तव्य और व्यवहार में जमीन-आसमान का अंतर रहता है। वे जहां जाते हैं, अपने पुराने वादों पर पानी फेरते जाते हैं और नई घोषणाएं करते जाते हैं। उनका कहना है कि आज एक बार फिर से सदन में प्रदेश सरकार का बजट में नई योजनाओं और वादों का ढिंढोरा पीटा जाएगा। उन्होंने कहा कि जब हमने बीते वर्ष 2021-22 के बजट के एप्रोपिएशन अकाउंट, जिसका मूल्यांकन कैग ने 6 दिसंबर, 2022 को किया है, का अध्ययन किया और केंद्र प्रायोजित योजनाएं जिससे प्रदेश का समावेशी विकास सुनिश्चित होता है, का मूल्यांकन किया, तब भाजपा सरकार के तथाकथित विकास की पोल खुल गई। मप्र की भाजपा सरकार ने मप्र के विकास के लिए अपने बजट में (सप्लीमेंट्री सहित) 2 लाख 82 हजार 779.6 करोड़ रुपए से प्रदेश के विकास का ढिंढोरा पीटा था। कैग के विनियोग लेखा में चौंकाने वाला तथ्य यह है कि इस उपरोक्त बजट में से शिवराज सरकार ने 2021-22 में 39 हजार 786.2 करोड़ रुपए खर्च ही नहीं किए, जिसमें से रेवेन्यू ही नहीं किए, जिसमें से रेवेन्यू अकाउंट के हिस्से में 23 हजार 2 करोड़ और कैपिटल अकाउंट में 16 हजार 784 करोड़ रुपए खर्च ही नहीं किए। रेवेन्यू अकाउंट में इतनी बड़ी राशि खर्च नहीं करने का अर्थ यह हुआ कि गरीबों के विकास की योजनाओं पर सीधा आघात किया गया, साथ ही कैपिटल अकाउंट में खर्च नहीं करने का अर्थ है कि प्रदेश की अधोसंरचना विकास के साथ धोखा किया गया। विधायक सिंह ने बताया कि केंद्र प्रायोजित योजनाओं में 47 हजार 458 करोड़ रुपए वर्ष 2022-23 में खर्च किये जाने थे, जिसमें से केंद्र सरकार द्वारा 32 हजार 556.34 करोड़ रुपए प्रदेश को मिलने थे और राज्य सरकार द्वारा 14 हजार 901.7 करोड़ रुपए खर्च किए जाने थे, मगर 31 जनवरी 2023 तक केंद्र सरकार द्वारा अपने हिस्से में से सिर्फ 16 हजार 792 करोड़ रुपए ही जारी किए। उन्होंने कहा, इससे साबित होता है कि भाजपा सरकारों ने खोखले विज्ञापनों, झूठी घोषणाओं और बड़बोले भाषणों से मप्र के विकास को गर्त में डाल दिया है।
हर साल महज सात लोगों को दी शिव सरकार ने नौकरी
सूबे में युवाओं को रोजगार देने के सरकार के तमाम दावों के बीच बेरोजगारी के चौंकाने वाले आंकड़ों का खुलासा हुआ है। प्रदेश में वर्तमान में 38 लाख 93 हजार 149 युवा बेरोजगार पंजीकृत हैं। इनमें से प्रदेश के रोजगार कार्यालयों में 37 लाख 80 हजार 679 शिक्षित और 1 लाख 12 हजार 470 अशिक्षित आवेदक रजिस्टर्ड हैं। रोजगार कार्यालयों के माध्यम से 1 अप्रैल 2020 से अब तक यानी तीन साल में सिर्फ 21 आवेदकों को सरकारी और अद्र्ध सरकारी कार्यालयों में रोजगार दिलाया गया है। कांग्रेस विधायक मेवाराम जाटव के लिखित सवाल के जवाब में खेल व युवा कल्याण मंत्री यशोधरा राजे सिंधिया ने यह जानकारी विधानसभा को दी। हालांकि उनके द्वारा बताया गया है कि इसके अलावा निजी क्षेत्र के निवेशकों द्वारा रोजगार मेलों के जरिए 2 लाख 51 हजार 577 आवेदकों को ऑफर लेटर दिए गए। खास बात यह है कि वर्ष 2020-21 में रोजगार कार्यालयों के संचालन पर 16 करोड़ 74 लाख 71 हजार रुपए खर्च किए गए।
फीस नियामक आयोग गठन का प्रस्ताव नहीं
स्कूल शिक्षा मंत्री इंदर सिंह परमार ने सदन को बताया कि प्रदेश में निजी स्कूलों द्वारा वसूली जाने वाली फीस, बस्तों के बोझ कम करने और शिक्षा के व्यवसायीकरण पर रोक लगाने के लिए किसी तरह के नियामक आयोग के गठन की तैयारी नहीं है। कांग्रेस विधायक आरिफ अकील के सवाल के लिखित जवाब में राज्य मंत्री परमार ने इस बात से भी इनकार किया है कि भोपाल संभाग में अशासकीय स्कूलों में कोर्स, ड्रेस, स्वेटर, ब्लेजर, शूज आदि में हर साल मामूली बदलाव कर नया सामान खरीदने और अनुशासन के नाम पर छात्रों और अभिभावकों पर आर्थिक बोझ डालने की कोई शिकायत 2019-20 और 2021-22 में प्राप्त नहीं हुई है।

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