
- पुराने भाजपाइयों और सिंधिया समर्थकों में समन्वय की कमी से बढ़ी टेंशन
भोपाल/प्रणव बजाज/बिच्छू डॉट कॉम। सूबे में भाजपा व उसकी सरकार को इन दिनों दो मोर्चों पर जूझना पड़ रहा है। पहला मामला है ओबीसी आरक्षण का तो दूसरा मामला है खांटी और आयतितों के बीच बनी खाई का न पट पाना। यही वजह है की भाजपा में इन दोनों को लेकर ही असमंजस की स्थिति बनी हुई है। इसकी वजह से ही भाजपा संगठन व सत्ता के बीच लगातार बैठकों का दौर चल रहा है , लेकिन बीच का रास्ता नहीं निकल पा रहा है।दरअसल दो साल बाद भी खांटी भाजपाई आयतित नेताओं व उनके समर्थकों को पचा नही पा रहे हैं। इसकी वजह भी है आयतित नेताओं की कार्यशैली जो संगठन से ज्यादा खुद के समर्थकों को ही महत्व देते हैं। अब प्रदेश में निकायों के साथ ही पंचायत चुनाव सिर पर हैं, ऐसे में मूल रुप से भाजपा नेताओं को उन इलाकों में अपना राजनैतिक भविष्य दांव पर लगता दिखना शुरू हो गया है , जहां पर आयतित नेताओं की तूती बोल रही है। इसकी वजह से ही भाजपा के तमाम दिग्गज नेताओं को लगातार माथाफोड़ी करनी पड़ रही है।
इस स्थिति को देखते हुए ही मैदानी स्तर पर चुनावी जमावट और नेताओं के बीच सुलह- सफाई और मान-मनौवल की कवायद तेज कर दी गई है। भाजपा के सामने सबसे अधिक मुसीबत मालवा और ग्वालियर-चंबल के अधिकांश जिलों में बनी हुई है। इसकी वजह है इन दोनों ही अंचलों में आयतित नेताओं की संख्या अधिक है। इसकी वजह से उन जगहों पर पुराने और आयतित भाजपाइयों के बीच सामंजस्य नहीं बन पा रहा है। जिला और प्रदेश स्तर की कोर कमेटियों की बैठक में भी यह मुद्दा प्रमुखता से छाया रहता है। यही वजह है की बड़े नेताओं को इसका समाधान निकालने को कहा गया है। संगठन में भी शीर्ष स्तर पर इस मुद्दे पर चिंता व्यक्त करते हुए पंचायत- निकाय चुनाव के पहले प्राथमिकता से इसका समाधान निकालने को कहा जा चुका है। इसकी वजह से ही भाजपा में इस मामले को लेकर लगातार चिंतन मनन के बीच बैठकों को दौर जारी है। हाल ही में भोपाल में बुलाई गई दो दर्जन जिले की कोर कमेटियों की बैठक में भी यह मामला प्रमुख रूप से चर्चा में बना रहा। संगठन के शीर्ष नेता बीएल संतोष, शिवप्रकाश, प्रभारी मुरलीधर राव से लेकर प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा और मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने भी सभी के बीच समन्वय बिठाने की इन बैठकों में समझाइश दी है। सह संगठन महामंत्री और प्रदेश प्रभारी की मौजूदगी में जिलों से जो मैदानी फीडबैक जो मिला उसमें भी अन्य मुद्दों के साथ नए-पुरानों के के बीच समन्वय का मामला प्रमुख रुप से चिंता का विषय बना रहा।
नहीं उठा सकती पार्टी कोई रिस्क
सत्ता-संगठन को इस बात की चिंता सता रही है कि पंचायत-निकाय चुनावों को प्रदेश में विधानसभा के सेमीफाइनल के रूप में देखा जा रहा है। इसलिए पार्टी इन चुनावों में किसी भी तरह का रिस्क लेने को तैयार नही है। दो दिन पहले भोपाल में हुई पार्टी की एक बड़ी बैठक में केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर और श्रीमंत के अलावा सत्ता-संगठन के अन्य दिग्गज नेताओं द्वारा भी उनके समर्थकों और निचले स्तर पर मैदानी कार्यकर्ताओं के बीच समन्वय को लेकर विचार मंथन किया जा चुका है। पार्टी के सामने सबसे बड़ी मुसीबत ग्वालियर चंबल अंचल में बनी हुई है। इस अंचल में दो नगर निगम ग्वालियर-मुरैना आते हैं। इनके अलावा नगर पालिकाओं के चुनावों से भी बड़े-बड़े नेताओं की साख जुड़ी रहती है। इस अंचल में अधिकांश मंत्री आयतित नेता हैं। उनका दबाव अपने समर्थकों को टिकट दिलाने पर बना हुआ है। यही स्थिति इंदौर धार जिलों में भी बनी हुई है। ऐसे में मूल कार्यकर्ताओं में टिकट न मिलने का भय बना हुआ है जिसकी वजह से उनके बीच की खाई कम होने की जगह अगर बढ़ती है तो पार्टी को बड़ा नुकासान संभावित है। पार्टी के सामने इस अंचल में दो बड़े नेताओं के बीच भी टिकट वितरण में सामंजस्य की बनी है। यह नेता है मूल भाजपाई नरेन्द्र सिंह तोमर और आयतित श्रीमंत । दरअसल यह दोनों ही नेता दोनों नगरनिगमों में अपने चेहेते लोगों को टिकट दिलाना चाहेंगे।
तोमर व श्रीमंत पर नजर
भारतीय जनता पार्टी में ग्वालियर-चंबल संभाग में नरेन्द्र सिंह तोमर व श्रीमंत बराबरी पर हैं। नरेंद्र सिंह तोमर केंद्रीय मंत्री हैं और भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में सदस्य हैं। श्रीमंत भी केंद्रीय मंत्री हैं और भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में सदस्य बनाए जा चुके हैं। अब सवाल यह है कि ग्वालियर चंबल संभाग क्षेत्र का क्षत्रप कौन होगा। वह कौन होगा जो टिकट वितरण करेगा। दोनों के बीच सीटों का बंटवारा हो जाए, ग्वालियर -चंबल की जमीन पर यह तो कतई संभव नहीं दिखता है। राजनीति में कुछ भी होता हो परंतु ग्वालियर-चंबल संभाग में राजा एक ही होता है। मार्च 2020 से पहले तक भाजपा के राजा नरेंद्र सिंह तोमर माने जाते थे , लेकिन जिस तरह से कांग्रेस के महाराजा भाजपा में आने के बाद एक के बाद एक चार प्रमोशन पा चुके हैं, उससे लग रहा है की श्रीमंत अब तोमर पर भी भारी पड़ सकते हैं। अंचल में श्रींमत अब तोमर के लिए बड़ा खतरा बन चुके हैं।