
- मप्र पदोन्नति फार्मूला विवाद: 15 जुलाई को होगी हाईकोर्ट में सुनवाई
भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम
प्रदेश सरकार द्वारा 9 साल से बंद पदोन्नति प्रक्रिया को शुरू करने के लिए पदोन्नति नियम 2025 लागू किया है। जिसके तहत पदोन्नति की प्रक्रिया भी शुरू हो गई। इस बीच हाई कोर्ट ने पदोन्नति नियम पर 15 जुलाई तक रोक लगाते हुए सरकार से जवाब मांगा है। हाईकोर्ट का आदेश आते ही पदोन्नति प्रक्रिया की फाइलें बंद कर अधिकारी पदोन्नति नियम के पक्ष में जवाब पेश करने में जुट गई है। शासन स्तर पर बैठकें शुरू हो गई हैं। जल्द ही विधि विशेषज्ञों के साथ चर्चा होगी। वहीं हाईकोर्ट के आदेश के बाद मप्र सरकार ने कर्मचारियों की पदोन्नति के पुराने नियम (वर्ष 2002) और नए नियम (वर्ष 2025) की जानकारी कोर्ट में प्रस्तुत करने की तैयारियां तेज कर दी हैं। सामान्य प्रशासन विभाग के अधिकारियों से पदोन्नति के नए और पुराने नियमों की विस्तार से जानकारी लेने के बाद महाधिवक्ता कार्यालय (एजी ऑफिस) दोनों नियमों में अंतर के संबंध में तुलनात्मक चार्ट तैयार कर रहा है। दोनों नियमों में अंतर संबंधी तुलनात्मक चार्ट को 15 जुलाई को होने वाली सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट में पेश किया जाएगा।
गौरतलब है कि पदोन्नति मामले में 8 अप्रैल, 2025 को सीएम डॉ. मोहन यादव ने पहली बार कर्मचारियों की पदोन्नति पर नौ साल से लगी रोक हटाने की घोषणा की। 17 जून को मोहन कैबिनेट ने मप्र लोकसेवा पदोन्नति नियम-2025 को मंजूरी दी। 19 जून को सरकार ने नए पदोन्नति नियमों के संबंध में गजट नोटिफिकेशन जारी किया। 26 जून को मुख्य सचिव ने एसीएस, पीएस, सचिव, आयुक्त और विभागाध्यक्षों के साथ बैठक कर 31 जुलाई से पहले डीपीसी की बैठकें करने के निर्देश दिए। 29 जून को सपाक्स की ओर से नए पदोन्नति नियमों के विरोध में हाईकोर्ट में पहली याचिका दायर की गई। उधर, मंत्रालय में पदोन्नति नियम 2025 को लेकर वरिष्ठ अधिकारियों की अनौपचारिक बैठक के बाद अब सरकार विधि विशेषज्ञों से चर्चा कर रही है। अगली सुनवाई से पहले सरकार न्यायालय में पदोन्नति नियम के पक्ष में विधिक जवाब पेश करेगी। इसके लिए सर्वोच्च न्यायालय के वकीलों से भी चर्चा की जा रही है। बताया गया कि मुख्य सचिव जल्द ही पदोन्नति नियम के संबंध में चुनिंदा अधिकारियों के साथ बैठक करेंगे। इससे पहले इसका अध्ययन किया जा रहा है कि पदोन्नति नियम 2025 के खिलाफ लगाई गई याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान न्यायालय ने क्या-क्या आपत्ति की और सरकार की अेार से क्या जवाब दिया गया। सरकार के वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि जरूरत पडऩे पर सर्वोच्च न्यायालय के वकीलों को पदोन्नति नियम 2025 का पक्ष के लिए खड़ा किया जा सकता है।
पुराने और नए पदोन्नति नियमों में अंतर
पुराने नियमों में पदोन्नति के लिए कर्मचारी की पिछले पांच साल की सीआर देखी जाती थी। नए नियमों में प्रावधान किया गया है कि यदि कर्मचारी की आखिरी के दो साल की सीआर उपलब्ध नहीं है, तो जिस वर्ष से सीआर देखी जा रही है, उससे पूर्व के दो साल की सीआर मान्य की जाएगी। पदोन्नति के पुराने नियमों में विचारण क्षेत्र 7 गुना था, जबकि विचारण क्षेत्र दोगुना कर दिया गया है। पुराने नियमों में पदोन्नति में परिभ्रमण की व्यवस्था थी, नए पदोन्नति नियमों में परिभ्रमण की व्यवस्था समाप्त की गई है। इससे पदोन्नति के लिए अधिक पद हो सकेंगे। प्रतिनियुक्ति पर भेजे गए कर्मचारी (जो आगामी वर्ष अर्थात पदोन्नति वर्ष में उपलब्ध नहीं होंगे) के पद के विरुद्ध पदोन्नति का प्रावधान किया गया है। पूर्व के नियमों में यह प्रावधान नहीं था।
पदोन्नति प्रक्रिया बंद
पदोन्नति नियम 2025 लागू होने के बाद सरकार ने 31 जुलाई तक सभी विभागों में पदोन्नति की प्रक्रिया शुरू करने का लक्ष्य रखा है। मुख्य सचिव अनुराग जैन से पिछले महीने के आखिरी में सभी विभागों के अपर मुख्य सचिव, प्रमुख सचिव, सचिव, विभागाध्यक्ष समेत सभी कलेक्टर एवं संभागायुक्तों की बैठक ली। जिसमें उन्होंने पदोन्नति की प्रक्रिया 31 जुलाई तक पूरी करने के निर्देश दिए थे। इसके तत्काल बाद ही विभागों में पदोन्नति की प्रक्रिया शुरू कर दी थी। मंत्रालय स्तर पर भी पदोन्नति को लेकर विभागीय पदोन्नति बैठकें शुरू हो गईं। हालांकि उच्च न्यायालय द्वारा रोक लगाने के एक दिन बाद ही सभी सरकारी कार्यालयों में पदोन्नति की फाइलें बंद कर दी गई हैं। सामान्य प्रशासन विभाग के अधिकारियों का कहना है कि वर्ष 2002 और वर्ष 2025 के पदोन्नति के नियमों में 15 से ज्यादा प्रकार के अंतर हैं। इनके संबंध में विस्तृत जानकारी महाधिवक्ता कार्यालय को दे दी गई है, जिनके आधार पर कार्यालय तुलनात्मक चार्ट तैयार कर रहा है। अधिकारियों का कहना है कि पदोन्नति में विवाद की मुख्य वजह 2002 के पदोन्नति नियमों में एससी-एसटी वर्ग को आरक्षण दिया जाना है और इसी को लेकर पूर्व में कर्मचारी हाईकोर्ट गए थे, जिस पर कोर्ट ने 2016 में पदोन्नति में आरक्षण पर रोक लगाने और इन नियमों के तहत आरक्षण पाने वाले रिजर्व कैटेगरी के कर्मचारियों को पदावनत करने का आदेश दिया था। नए नियमों में भी रिजर्व कैटेगरी के कर्मचारियों को आरक्षण दिया गया है और पूर्व में पदोन्नति पा चुके कर्मचारियों को पदावनत करने का प्रावधान नहीं किया गया है।
विवाद की मूल जड़ बरकरार
सपाक्स के प्रदेश अध्यक्ष डॉ. केएस तोमर का कहना है कि पदोन्नति के नए नियमों में विवाद की मूल जड़ बरकरार है। सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से पूर्व में दायर याचिका वापस लिए बगैर पदोन्नति के नए नियम बना दिए। सरकार ने नए नियमों में अंतर के नाम पर कुछ छोटे-छोटे बिंदु जोड़ दिए हैं, जिनका कोई औचित्य नहीं है। बता दें कि नए पदोन्नति नियमों में विरोध में कुछ कर्मचारी हाईकोर्ट चले गए थे। गत 7 जुलाई को कर्मचारियों की याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने कर्मचारियों की पदोन्नति प्रक्रिया पर अगली सुनवाई (15 जुलाई) तक रोक लगा दी थी। सुनवाई के दौरान कोर्ट ने सरकार को अगली सुनवाई में वर्ष 2002 और 2025 के पदोन्नति नियमों में अंतर संबंधी तुलनात्मक चार्ट प्रस्तुत करने का आदेश दिया था। कोर्ट के फैसले के बाद विभागीय पदोन्नति समिति की बैठकें रोक दी गई हैं। सपाक्स के नेतृत्व में अनारक्षित वर्ग के कर्मचारी पदोन्नति के नए नियमों में एससी-एसटी वर्ग के लिए क्रीमीलेयर का सिद्धांत लागू नहीं करने, एससी-एसटी वर्ग को 36 प्रतिशत आरक्षण देने के बाद उन्हें अनारक्षित वर्ग के लिए बची सीटों पर मेरिट के आधार पर पदोन्नत करने, पदोन्नति में एफिशिएंसी टेस्ट का प्रावधान नहीं किए जाने जैसे नियमों के विरोध में कोर्ट गए हैं।