भिंड जिले में औसतन हर नौ माह में बदल जाते हैं कलेक्टर

कलेक्टर
  • कई जिलों में तीन साल तक दिया जाता है मौका

भोपाल/हरीश फतेहचंदानी/बिच्छू डॉट कॉम। प्रदेश के कई जिले ऐसे हैं , जहां पर कोई भी कलेक्टर टिक नहीं पता है। ऐसे में सवाल बना हुआ है कि जिले की किस्मत खराब है या फिर उनमें पदस्थ होने वाले कलेक्टरों की। इसके अलावा यह सवाल भी बना हुआ है कि अधिकारी उम्मीदों पर खरे नहीं उतरे या फिर पोस्टिंग करने वाले उनका आंकलन करने में चूकते रहते हैं। शायद यही वजह है कि कई कलेक्टरों को एक जिले में महज तीन माह तक का ही समय काम करने का मिल सका है। ऐसे जिलों में सबसे खराब स्थिति भिंड जिले की है। इस जिले में औसतन हर नौ माह में कलेक्टर को हटा दिया जाता है। यह ऐसा जिला है, जहां पर बीते पांच साल में आठ कलेक्टर पदस्थ हो चुके हैं।
एक ही जिले में कलेक्टर पद पर हुए इतने अधिक तबादलों से सरकार की मंशा के साथ ही कलेक्टरों की कार्यप्रणाली पर भी सवाल उठना शुरु हो गए हैं। हालांकि किसी भी अफसर को मैदानी पदस्थापना के दौरान जिले की पूरी स्थिति समझने में समय लगता है, लेकिन कई अफसरों को स्थिति समझने तक का समय नहीं दिया गया है। इसके अलावा कई अफसर ऐसे हैं , जो एक ही जिले में तीन -तीन साल से अधिक समय तक पदस्थ रह चुके हैं। उनके तबादले भी अब जाकर तब किए हैं, जबकि चुनाव आयोग के नियम का पालन करना जरूरी हो गया। दरअसल कहा जाता है कि यह वे अफसर हैं, जिनसे जिले के दिग्गज सत्तारूढ़ नेताओं की पटरी अच्छी बैठ जाती है।  जिसकी वजह से उन्हें पदस्थापना के बाद पूरा समय दिया जाता है। जबकि जिनकी पटरी नहीं बैठती है, उन्हें कुछ समय बाद ही चलता कर दिया  जाता है। प्रदेश सरकार की बात करें तो पांच साल में दो दलों की सरकार रही है। चुनाव के बाद कांग्रेस की नाथ सरकार में पहले अफसरों के तबादले किए गए, लेकिन 15 माह बाद जैसे ही भाजपा की सरकार बनी तो एक बार फिर शिव सरकार ने जिलों की कमान अपने हिसाब से अफसरों को देने के लिए बड़े पैमाने पर तबादले किए। प्रदेश में भाजपा की  24 मार्च 2020 से सरकार है। इस दौरान कोरोना महामारी का प्रकोप भी रहा, इसके  बाद भी कई जिलों में कलेक्टरों को काम करने का मौका बहुत ही कम समय का मिल सका। अगर भिंड जिले की बात की जाए तो कानून व्यवस्था के हिसाब से यह जिला बेहद महत्वपूर्ण माना जाता है। यह जिला अवैध उत्खनन और परिवहन के लिए कुख्यात है। इसके अलावा राजनैतिक रूप से भी इसका महत्व है। इसकी वजह है विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष डॉ गोविंद सिंह व प्रदेश सरकार के कद्दावर मंत्री भी इसी जिले से आते हैं। चंबल के इस जिले में सर्वाधिक आठ कलेक्टर पांच साल में बदले हैं। इस जिले में आशीष कुमार 21 मई 2018 से 22 अक्टूबर 2018, धनराजू एस 22 अक्टूबर 2018 से 22 दिसम्बर 2018, छोटे सिंह 22 दिसंबर 2018 से 17 मार्च 2019 कलेक्टर रहे। इसके बाद डॉ विजय कुमार जे 18 मार्च 2019 से 31 मई 2019, छोटे सिंह 31 मई 2019 से 1 जून 2020, वीएस रावत 2 जून 2020 से 2 मार्च 2021 सतीश कुमार एस 2 मार्च 21 से 30 जुलाई 2023 तक कलेक्टर रहे। वर्तमान में संजीव श्रीवास्तव कलेक्टर हैं। इसी तरह से दिग्विजय के गृह जिले गुना में पांच साल में छह कलेक्टरों की पदस्थापना की गई है। इनमें श्री विजय दत्ता 18 अप्रैल से 27 दिसम्बर 2018 तक, 27 दिसंबर 18 से 13 मार्च 2020 तक भास्कर लक्षकार, 13 मार्च 2020 से 17 जुलाई 2020 तक एस विश्वनाथन, 17 जुलाई 2020 से 3 मई 2021 तक कुमार पुरुषोत्तम और 8 मई 21 से 31 जुलाई 23 तक फ्रैंक नोबल ए कलेक्टर रहे। अब तरुण राठी कलेक्टर हैं। दमोह में कई पावर सेंटर बनने से  बीते विधानसभा चुनाव के बाद दमोह में पदस्थ किए गए नीरज कुमार सिंह के बाद कलेक्टर लंबे समय तक टिक नहीं पा रहे। नीरज कुमार 24 दिसम्बर 2018 से 4 जून 2019 तक, उनके बाद तरुण राठी 4 जून 2019 से 8 मई 2021 तक यहां कलेक्टर रहे।
जबलपुर में भी हर साल बदल जाते हैं कलेक्टर
जबलपुर में भी चार साल में पांच कलेक्टर बदले जा चुके हैं। इसकी वजह से जिले में यह चर्चा बनी रहती है कि आखिर क्या वजह है कि यहां पर लंबे समय तक कोई कलेक्टर क्यों नही पदस्थ रह पता है। लोग तो यह तक पूछ रहे हैं कि क्या बेहतर काम करने वाले अधिकारियों को जबलपुर में रहने का हक नहीं है? या फिर यहां आने वाले आईएएस बेहतर काम नहीं कर पा रहे है।  बीते दिनों नौ मह के अंदर ही वहां पर पदस्थ कलेक्टर डॉक्टर इलैयाराजा टी का तबादला कर दिया गया था।  इसके पूर्व लंबे अरसे बाद जबलपुर कलेक्टर के रूप में एक महिला आईएएस अधिकारी छवि भारद्वाज की पदस्थापना हुई थी। उन्हें भी विधानसभा चुनाव परिणाम आते ही हटा दिया गया था। उनकी जगह भरत यादव की पदस्थापना की गई थी। उन्हें भी कुछ समय बाद अचानक हटा कर कर्मवीर शर्मा को पदस्थ किया गया था। लेकिन, उन्हें भी अचानक हटाकर भोपाल ऊर्जा विभाग में पदस्थ कर दिया गया था।
इन्हें मिला भरपूर समय
जिन अफसरों को एक ही जिले में कलेक्टरी करने का भरपूर समय मिला है उनमें सबसे ऊपर कलेक्टर संजय कुमार का नाम है। संजय कुमार भांडेर विधानसभा उपचुनाव के पहले दतिया में बतौर कलेक्टर आए थे, लेकिन उपचुनाव में भांडेर प्रत्याशी फूल सिंह बरैया की शिकायत पर उन्हें महीने भर के अंदर ही निर्वाचन आयोग ने हटा दिया था। जैसे ही उपचुनाव संपन्न हुए, अगले ही दिन संजय कुमार वापस दतिया में तैनात कर दिए गए। वे 12 नवंबर 2020 से दतिया से हाल ही में हटाए गए हैं। उनका तीन साल का कार्यकाल नवंबर में पूरा होना था। इसी तरह से पन्ना कलेक्टर संजय कुमार मिश्रा को हाल ही में हटाया गया है । उनका कार्यकाल इसी माह में तीन साल का हो रहा था। इस मामले में टीकमगढ़ कलेक्टर सुभाष कुमार द्विवेदी भी भाग्यशाली रहे हैं। वे वहां पर 16 जून 2020 से पदस्थ थे। इन सभी को चुनाव आयोग ने एक स्थान पर पदस्थ तीन अधिकारियों को हटाने के निर्देश दिए थे, जिसके पालन में उन्हें हटाना मजबूरी हो गई थी।

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