
भोपाल/रवि खरे/बिच्छू डॉट कॉम। सरकार द्वारा लागू किए गए शिक्षा के अधिकार अधिनियम पर इन दिनों गंभीर सवाल खड़े होना शुरू हो गए हैं। इसकी वजह है प्रदेश के स्कूलों में इन दिनों डेढ़ लाख के लगभग सीटों का खाली रह जाना। इसके लिए भले ही शिक्षा विभाग कोरोना को दोष दे रहा हो, लेकिन इसकी वजहें कुछ अलग हैं। दरअसल शिक्षा विभाग की कार्यशैली ऐसी है कि गरीब बच्चों की रुचि सरकारी स्कूलों में जाने से लगातार कम होती जा रही है।
इसके बाद भी स्कूलों में बच्चों को लाने के लिए विभाग द्वारा कोई गंभीर प्रयास नहीं किए जा रहे हैं। यही वजह है कि पहले करीब डेढ़ लाख सीटें रिक्त रह गई और जब दूसरी बार आवदेन मंगाए गए तो भी रिक्त सीटों की तुलना में आवेदन भी आधे से कम आए। यह बात सही है कि कोरोना संक्रमण के चलते लोग आर्थिक तंगी का बेहद सामना कर रहे हैं और बच्चों की पढ़ाई कराना उनके लिए मुश्किल होता जा रहा है। ऐसे हालातों में भी निजी स्कूलों में मनमानी फीस वसूली की जा रही है। अगर इस शिक्षा सत्र की बात की जाए तो इसके लिए 14 अगस्त को लॉटरी निकाली गई थी। प्रदेश में इसके माध्यम से आरटीई के तहत उपलब्ध दो लाख 81 हजार सीटों को भरा जाना था ,लेकिन इस बीच विभाग के पास महज एक लाख 99 हजार आवेदन ही आए। इनमें से दस्तावेज सत्यापन के बाद एक लाख 72 हजार 440 बच्चे ही प्रवेश के लिए पात्र पाए गए। इसकी वजह से सीटें खाली रह गई । अगर भोपाल जिले की बात की जाए तो जिले में कुल 11 हजार 500 आवेदन आए थे, जिनमें से पात्र बच्चों की संख्या 11 हजार रही। इनमें से भी 9 हजार 219 बच्चों को प्रवेश मिल सका। अब इन हालातों के चलते मप्र बाल संरक्षण आयोग द्वारा जांच कराकर इनके कारणों की जांच कराई जा रही है। इसके बाद आयोग द्वारा इसके नियमों में अगर परिवर्तन की जरूरत होगी तो उसके लिए अनुशंसा करेगी।
अब यह है लॉटरी की स्थिति
– आवेदन की आखिरी तारीख 20 सितंबर से आगे बढ़ा दी है
– अक्टूबर के दूसरे सप्ताह में निकाली जानी है लॉटरी
– प्रदेश में आरटीई के तहत उपलब्ध सीटें- दो लाख 83 हजार
– प्रदेश में कुल आवेदन- 82 हजार 773
– दस्तावेज सत्यापन के बाद पात्र पाए गए -69 हजार 338
इनका कहना है…
पहले चरण की लॉटरी में एक लाख से अधिक सीटें खाली रह गई थीं, वहीं इस लॉटरी में भी बड़ी संख्या में सीटें खाली रह जाने का अनुमान है। संक्रमण काल में बड़ी संख्या में पलायन हुआ है, लेकिन उनके प्रवेश किसी न किसी जिले में होने हैं, ऐसे में इस विसंगति के कारणों की पड़ताल करने की जरूरत है।
अजीत सिंह, प्रदेशाध्यक्ष, प्राइवेट स्कूल एसोसिएशन
इस विसंगति से यही निकलकर सामने आता है कि सरकार प्राइवेट स्कूलों के भरोसे बैठी है। आरटीई में भी यही उम्मीद की जाती है कि बच्चों को बड़े स्कूलों में नि:शुल्क प्रवेश मिल जाएगा और वे आसानी से पढ़ लेंगे, लेकिन व्यावहारिक तौर पर ऐसा संभव नहीं हो पाता है।
प्रबोध पंड्या, महासचिव, पालक महासंघ