
भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम। उत्तर प्रदेश में दो दशक से अधिक समय तक चली जातीय राजनीति का असर मप्र के बुंदेलखंड अंचल पर भी पड़ा है। इसकी वजह से इस इलाके में भी दल से अधिक जीत के लिए जातिगत समीकरण मायने रखते हैं। यही वजह है कि तमाम राजनैतिक दल टिकट वितरण के दौरान इस समीकरण का विशेष ध्यान रखते हैं। हालांकि इस बार पार्टियों ने अपना कुछ हद तक टें्रड बदलने का प्रयास किया है , लेकिन फिर भी वे बगावत और विरोध के संकट से बच नहीं पा रहे हैं। इस अंचल के तहत विधानसभा की कुल 26 सीटें आती हैं, जिनमें से करीब एक दर्जन सीटों पर कांग्रेस एवं भाजपा के नेता बागी बने हुए हैं। यह नेता अब सपा, बसपा और आम आदमी पार्टी जैसे दलों के प्रत्याशी बनाकर चुनाव में ताल ठोक रहे हैं। इसकी वजह से इस अंचल में अब यह प्रत्याशी भाजपा एवं कांग्रेस के लिए बड़ी चुनौती बन गए हैं। प्रदेश के बुंदेलखंड अंचल के तहत आने वाले सागर संभाग में 6 जिले सागर, पन्ना, छतरपुर, टीकमगढ़, दमोह, निवाड़ी आते हैं। इन जिलों की कुल 26 सीटों में से 8 सीटें अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है। इन सीटों में से अभी भाजपा के पास आठ और कांग्रेस के पास पांच जबकि बसपा के पा एक सीट है। कुल सीटों को देखें तो इस अंचल की 26 सीटों में से 18 पर भाजपा और 7 सीट पर कांग्रेस और एक सीट बसपा का विधायक है। इस अंचल में कांग्रेस ने अधिकांश मौजूदा विधायकों को ही प्रत्याशी बनाया है। उधर, भाजपा ने कुछ विधायकों के टिकट काटकर नए चेहरों को प्रत्याशी बनाया है। इस बार भाजपा के सामने अपनी पुरानी सीटों को जीतने , तो वहीं कांग्रेस के सामने सीटों की संख्या बढ़ाने की चुनौती है। इसी तरह बसपा और सपा भी इसी अंचल से अच्छे परिणामों की उम्मीद में है, आम आदमी पार्टी भी बुंदेलखंड में अपना खाता खोलने के लिए लालायित बनी हुई है। इस बार भाजपा ने पीएम नरेंद्र मोदी से सागर में संत रविदास के मंदिर का शिलान्यास कराकर अनुसूचित जाति के वोटरों को साधने का दांव चला है। इसकी काट में कांग्रेस ने भी राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खडग़े से कांग्रेस की सरकार बनने पर संत रविदास के नाम पर यूनिवर्सिटी बनाने का ऐलान कराया। हाल ही में दमोह में प्रियंका गांधी भी चुनावी सभा कर चुकी हैं। इसमें उनके द्वारा बुदेलखंड के पिछड़ेपन और बुंदेलखंड पैकेज में हुए भ्रष्टाचार का मामला भी उठाया है।
जातिवाद का मुद्दा
हर चुनाव में इस अंचल में अशिक्षा, बेरोजगारी, गरीबी, भ्रष्टाचार, मुखा जैसे मुद्दे उठते हैं, लेकिन मतदान का दिन आते तक चुनाव जातिवाद में बदल जाता है। अंचल में दल से ज्यादा जातियों का जोर रहता है। जातियों में बटे वोटर अपने- अपने जाति-समाज के प्रत्याशियों के साथ खड़े नजर आने लगते हैं। यही वजह है कि इस बार सपा व बसपा ने भी जातीय समीकरणों को ध्यान में रखकर ही प्रत्याशी उतारे हैं।