
भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम। प्रदेश में विधानसभा चुनाव में अब दो माह का ही समय रह गया है, ऐसे में सभी राजनैतिक दलों में प्रत्याशी चयन को लेकर कवायद तेज हो चुकी है। इस बीच कुछ दलों द्वारा तो कुछ नामों का एलान तक कर दिया गया है। इस बीच कांग्रेस में प्रत्याशी चयन के लिए मंथन जारी है। अब पार्टी ने तय किया है कि वह प्रदेश में चुनावी जातिगत समीकरण साधने के लिए टिकट वितरण को एक प्रमुख हथियार के तौर पर उपयोग करेगी। यही वजह है कि अब पार्टी के नेता जातिगत समीकरण में फिट बैठने वाले जीत की संभावना वाले नेताओं की तलाश कर रहे हैं। इसके लिए पहले से ही कमलनाथ द्वारा अलग-अलग प्रकोष्ठों का गठन कर उन्हें सक्रिय कर दिया गया था। इस बीच पार्टी द्वारा अलग-अलग समाजों के सम्मेलन भी आयोजित किए जा चुके हैं। इन सम्मेलनों के बहाने कमलनाथ ने नेताओं की ताकत को भी तौला है। पार्टी का फोकस सर्वाधिक आदिवासी, दलित और पिछड़ा वर्ग के नेताओं पर बना हुआ है। पार्टी में अब तक हुए मंथन में समाज और जातियों के आधार पर सभी को प्रतिनिधित्व यानी टिकट देने का रोडमैप तैयार किया जा चुका है। अहम बात यह है कि इस रोडमैप को तैयार करने से पहले ही प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमल नाथ द्वारा विभिन्न समाज और जातियों के लोगों की जनसंख्या का अनुमान लगाने और उनके प्रभाव को लेकर निजी एजेंसी के जरिये सर्वे भी कराया है। माना जा रहा है कि इस रोडमैप पर 12 सितंबर को दिल्ली में होने वाली स्क्रीनिंग कमेटी की बैठक में भी चर्चा करने के बाद ही टिकटों को लेकर नाम तय किए जाएंगे।
हर सीट का खुद करवाया सर्वे
कमल नाथ द्वारा व्यक्तिगत रूप से हर सीट का जातिवाद पूरा सर्वे कराया है। इससे उनके पास हर सीट पर मौजूद जातिवार मतदाताओं तक की जानकारी उपलब्ध हो गई है। इस सर्वे से पार्टी को अंदाज लग गया है कि किस विधानसभा क्षेत्र में किस जाति के मतदाताओं की संख्या कितनी है। इस आधार को अब पार्टी टिकट वितरण का आधार बना रही है। इसी के तहत ही पार्टी ने प्रदेश में बंजारा, रजक, कोली-कोरी, सिंधी, मसीह, बुनकर, केश शिल्पी, तेली-साहू, विश्वकर्मा, बंगाली सहित अन्य समाजों के प्रकोष्ठ बनाकर उनका मैदानी स्तर तक का संगठन खड़ा किया है। इसका फायदा पार्टी को चुनाव के दौरान मिलना तय माना जा रहा है। इसके साथ ही पार्टी ने समन्वय पर भी फोकस कर रखा है। यही वजह है कि इसके लिए प्रदेश स्तर पर एक अलग से समाज समन्वय प्रकोष्ठ भी बनाया गया है। इसका काम सभी जाति के बीच समन्वय बनाना है। पार्टी की रणनीति यह है कि जिस जाति के प्रदेश में दस लाख से अधिक मतदाता हैं, उस वर्ग के व्यक्ति को अनिवार्य रूप से टिकट दिया जाए।
ढाई सालों से किए जा रहे हैं प्रयास
प्रदेश की सत्ता से वर्ष 2020 में कांग्रेस के बाहर होते ही कमल नाथ का फोकस सोशल इंजीनियरिंग पर शुरू हो गया था। यही वजह है कि उसके बाद से ही प्रदेश के कांग्रेस संगठन ने सामाजिक संगठनों, जाति आधारित संगठनों और उनके नेताओं को पार्टी से जोड़ने का काम शुरु कर दिया था। इसके तहत ही कमलनाथ ने पूर्व आईएएस अफसर देवेंद्र कुमार राय को उन नजजातियों का अध्ययन कर उन्हें आगे लाने का काम सौंपा था, जो राजनैतिक रूप से बेहद पिछड़ी हुई हैं। इसी कवायद के तहत ही कांग्रेस ने विशेष पिछड़ी जनजाति बैगा, भारिया और सहरिया, कोरकू, भील, भिलाला, गोंड, कोल सहित कई जातियों के सम्मेलन किए। उनके लिए पार्टी संगठन में अलग से प्रकोष्ठ भी गठित किए गए। यही नहीं इसके बाद प्रदेश के सामाजिक ताने- बाने का एक सर्वे भी कराया जा चुका है।