
भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम। प्रदेश में फर्जी जाति प्रमाण पत्रों से नौकरी हथियाने का काम बड़े पैमाने पर किया गया है। यह हम नहीं कह रहे हैं, बल्कि सरकार के पास इस मामले में लंबित शिकायतों से यह बात स्पष्ट होती है। हद तो यह है कि ऐसे मामलों की शिकायतें कई- कई सालों से लंबित हैं, जिससे फर्जी जाति प्रमाण पत्र से नौकरी पाने वालों की बल्ले- बल्ले बनी हुई है। अगर लोक निर्माण विभाग की बात की जाए तो इस विभाग में ही एक सैकड़ा अफसरों को लेकर इसी तरह की शिकायतें विभाग के पास लंबे समय से लंबित बनी हुई हैं। इन पर न तो सरकार और न ही शासन ध्यान दे रहा है।
अहम बात यह है कि जिन अफसरों के खिलाफ इस तरह की शिकायतें हैं, उनमें विभाग के सचिव, प्रमुख अभियंता से लेकर छोटे स्तर के अफसर तक शामिल हैं। इन अफसरों की इस मामले की जांच छानबीन समिति के पास पड़ी हुई हैं। इस बीच जांच में होने वाली देरी की वजह से यह अफसर लगातार पदोन्नत भी होते जा रहे हैं। जांच के हालत इससे ही समझे जा सकते हैं कि फर्जी जाति के एक मामले में तो पीडब्ल्यूडी के प्रमुख अभियंता की सेवानिवृत्ति के दिन मंत्री ने नोटशीट लिखी थी कि यह बेहद गंभीर मामला है और इसकी जांच की जानी चाहिए, लेकिन जब तक विभाग में नोटशीट पहुंची, तब तक वह अफसर सेवानिवृत्त हो चुके थे। उधर, लोक निर्माण विभाग इन दिनों फर्जी जाति प्रमाण पत्रों की शिकायतों से परेशान है। विभाग के मुखिया ईएनसी से लेकर उपयंत्रियों के खिलाफ भी फर्जी जाति प्रमाण पत्र के आधार पर नौकरी और पदोन्नति के मामले लंबित हैं। पीडब्ल्यूडी में ईएनसी रहे नरेन्द्र कुमार के खिलाफ भी ऐसी कई शिकायतें हुइं, लेकिन चौंकाने वाली बात है कि विभागीय मंत्री ने उस दिन जांच के लिए नोटशीट लिखी, जिस दिन वह सेवानिवृत्त हो रहे थे। पीडब्ल्यूडी के सचिव और ईएनसी की भी इसी तरह की जाचें भी लंबित हैं।
समिति में 136 शिकायतें लंबित
छानबीन समिति में 136 शिकायतें लंबित पीडब्ल्यूडी अकेला ऐसा विभाग है, जहां के 136 इंजीनियरों के खिलाफ छानबीन समिति के पास शिकायतें लंबित हैं। जिन बड़े अधिकारियों की जाति प्रमाण पत्र की शिकायतें लंबित हैं, उनमें इंजीनियर आरके मेहरा सचिव पीडब्ल्यूडी, एससी वर्मा मुख्य अभियंता, जिले सिंह संयुक्त परियोजना संचालक पीआईयू, संजय खाण्डे प्रभारी मुख्य अभियंता, अपूर्व गौर, आशीष रघुवंशी और निशांत पचौरी के नाम शामिल हैं। फिलहाल इस मामले में न तो विभाग गंभीर दिखता है और न ही छानबीन समिति। सरकार व शासन की तो ऐसे मामलों में कोई रुचि ही नहीं दिखती है।